मनुष्य बनने के लिए कुछ सिस्टम बनाया गया है। कुछ कारण है सिद्धांत है। ऐसे ही हम मनुष्य नही बनते हैं। मनुष्य बनने के लिए शास्त्र में बताया गया है कि केवल मनुष्य के घर जन्म ले लेने से हम मनुष्य नही हैं। मनुष्यता प्राप्त करने के लिए हमें अलग से शिक्षा प्रणाली पर ध्यान देना पड़ेगा। जैसे गाड़ी खरीद करके सीखा जा सकता है। परंतु सीखने का व्यवस्था गाड़ी के सो रूम में नही है। उसी प्रकार हम संसार में ॠषि संतान हैं। मनुष्य हैं। लेकिन मनुष्य हो ऐसा करके हमारे में मनुष्यता है कि नही इसके लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इसीलिए रावण ने वरदान मांगा कि नर और वानर के सिवाय किसी दूसरे से नही मरें। क्योंकि वह जानता था कि दुनिया में कोई मनुष्य हो हीं नही सकता है।
माता-पिता को कष्ट देने वालों का कुछ काम नही बनता है।
जन्म लेते ही तीन प्रकार के ऋण से हम घिर जाते हैं।
जिस दिन से हम और आप जन्म लेते हैं तीन प्रकार के ऋण हमारे उपर हो जाता है। माता पिता का कर्ज, ऋषि का कर्ज, देवताओं का कर्ज। इसी को हमलोग पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण भी कहते हैं। माता पिता के तेज से हमलोग पैदा हुए हैं। तो हमलोग माता-पिता का कर्जदार हुए। माता-पिता के ऋण से उऋण होने के लिए यह बताया गया है कि कितना भी माता-पिता कड़े स्वभाव के हों बर्दाश्त कीजिए। क्योंकि आपको माता-पिता भी बर्दाश्त किए हैं। पत्नी के प्रति स्नेह रखिए, लेकिन माता-पिता नही होते तो पत्नी से स्नेह नही होता। जो व्यक्ति माता पिता को उदास किया,निराश किया, अपमान किया, अवहेलना किया,मारा पीटा, गाली-गलौज किया चाहे वह साक्षात् इन्द्र भी आकर कुछ नही कर सकते। कुछ भी काम नही बनेगा। ऐसा करने वाला नरक का भागी होता है। इसलिए माता-पिता को कष्ट नही दीजिए। गृहस्थ आश्रम में माता-पिता के ऋण से उऋण होने का उपाय है की बडे होकर शादी विवाह करके अच्छे संतान पैदा करें।दुसरा है कि हमें ऋषि ऋण से मुक्त होने का उपाय है। पूजा-पाठ करना, हवन करना, ऋषियों को भोजन कराना इत्यादि।