छल,कपट चोरी, बेईमानी, अनीति, उपद्रव द्वारा धन, संपत्ति इत्यादि संग्रह नही करना चाहिए, अनीति के वृक्ष पर पाप के फल का सुख का स्वाद बहुत दिनों तक कामयाब नही रहेगा। कुछ दिनों के लिए हो सकता है की अनीति पर चलने से हम बढ़ जाए लेकिन कामयाब नही होगा। इसी का नाम अस्तेय है।
अपने से कम औकात वाले लोग पर ध्यान देना चाहिए।
कभी भी व्यक्ति अपने आगे बढ़ना चाहता हो तो नीति वाक्य है कि अपने से जो कम औकात वाले जो लोग हैं उन पर ध्यान दीजिए। तब उसको पता चलेगा कि हमारे उपर भगवान की क्या कृपा है। हमलोगों को भोजन भी मिल जाता है। ऐसे भी दुनिया में लोग हैं कि आज खाएंगे तो कल क्या खाएं यह सोचना है। कम से कम भगवान ने इतना कृपा किया है न कि हमें दोनों समय भोजन तो मिल रहा है।
परिवार के लोगों का तबतक संबंध रखें, जब तक परिवार के लोग अपना समझें।
जगत् तथा जगत् की वस्तु में आसक्ति का त्याग। होना चाहिए। हींग के डिब्बे से हींग खत्म होने के बाद भी हींग का सुवास खत्म नही होता है। यहीं आसक्ति है। परिवार के लोगों का तबतक भरण-पोषण संबंध रखना चाहिए, जब तक परिवार के लोग अपना समझें। जब परिवार के लोग आपसे जब सबंध को तोड़ दें या परिवार के लोग आपसे कुछ नही चाहते हों उन्हे भी बहुत कुछ सलाह नही दीजिए। जो भोजन मिले उसे खा लीजिए, जो कपड़ा मिले पहन लीजिए, जहां रहने को कहे वहां रहीए बाकी विशेष कुछ मत कहिए।