तेलंगाना ने 2014 और कर्नाटक ने 2015 में जातीय जनगणना कराई थी

आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 23 मई 2022 : पटना : बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक की तारीख तय कर दी है।  27 मई जातिगत जनगणना के स्वरूप और प्रक्रिया विमर्श होगा।इसके लिए सभी पार्टियों के नेताओं को फोन पर बैठक की जानकारी दी जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बात का खुलासा किया है कि जातीय जनगणना को लेकर बुलाई जाने वाली सर्वदलीय बैठक को लेकर अभी सबकी सहमति नहीं मिली है।हालांकि  सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि जातीय जनगणना को लेकर विधानसभा से प्रस्ताव पारित किया जा चुका है लेकिन बिहार में इसे लागू करने के लिए सबकी सहमति जरूरी है। 27 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाई जाने की खबरों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि फिलहाल सभी दलों की सहमति बैठक को लेकर नहीं मिल पाई है। सहमति मिलने के बाद ही बैठक बुलाई जाएगी। इस बैठक में अगर सबकी राय बनती है तो कैबिनेट के पास सरकार के स्तर से प्रस्ताव लाया जाएगा। कैबिनेट की मुहर लगने के बाद बिहार में जातीय जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी।

जातीय जनगणना को लेकर नीतीश आज जो कुछ कह गए उसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी कहीं ना कहीं अभी भी नीतीश कुमार के साथ खड़ी नहीं है। तेजस्वी यादव भले ही नीतीश कुमार के साथ जातीय जनगणना को लेकर केंद्र पर दबाव बना रहे हो, भले ही बिहार में जातीय जनगणना कराने की मांग कर रहे हो लेकिन बीजेपी के सरकार में रहते यह फैसला काफी मुश्किल लग रहा है। ऐसे में नीतीश कुमार जातीय जनगणना पर आगे क्या स्टैंड लेंगे इसे लेकर सबकी नजरें टिकी हुई है लेकिन, नीतीश कुमार ने आज जो कुछ खुद कहा है उसका मतलब यही है कि सर्वदलीय बैठक पर ना तो अब तक सबकी सहमति बन पाई है और ना ही इस पर बहुत जल्द कोई फैसला हो जाए इसकी उम्मीद की जा सकती है। दरअसल, नीतीश कुमार ने खुद कहा है कि सबकी सहमति के बाद ही सरकार की तरफ से कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाएगा। ऐसे में अगर बीजेपी जातीय जनगणना का विरोध करती है तो बिहार में इसे कराना मुश्किल होगा।

पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने आज दिल्ली में इसकी पुष्टि की । उन्होंने कहा कि आज सुबह ही उन्हें इस संबंध में फोन आया है। 27 तारीख को  बैठक है। सीएम नीतीश कुमार ने  कुछ दिन  पहले कहा था कि बहुत जल्द सर्वदलीय बैठक बुलाई जायेगी। बिहार में जातिगत जनगणना की रुपरेखा कैसी होनी चाहिए, बैठक में सभी पार्टियों के नेताओं के बीच इस पर चर्चा की जाएगी। जिसके आधार पर राज्य सरकार जनगणना का काम कराएगी। केंद्र सरकार के इनकार के बाद बिहार सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि जातिगत जनगणना अपने स्तर से करायेंगे। 


बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर लगभग आठ माह से बैठक का इंतजार किया जाता रहा है। किसी न किसी वजह से बैठक टलती  रही। बीजेपी की राय को लेकर भी बैठक टलता रही।आखिरकार यह तय हो गया कि आगामी 27 मई को सर्वदलीय बैठक होगी।तेलंगाना ने 2014 और कर्नाटक ने 2015 में जातीय जनगणना कराई थीजातिगत जनगणना को राजनीतिक लाभ-हानि के दृष्टिकोण से भी इसका समर्थन और विरोध हुआ। जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की वास्तविक का पता चल पाएगा। इससे उन जातियों के लिए विकास की योजनाएं बनाने में आसानी होगी।भारत में आखिरी बार जातीय जनगणना साल 1931 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान हुई थी। 1931 में हुई थी जातिगत जनगणना अंग्रेज़ों के दौर में भारत में जातियों के हिसाब से लोगों को गिना जाता था. आखिरी बार 1931 में जाति जनगणना हुई थी. 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े पब्लिश नहीं हुए थे. इसकी वजह तब के जनगणना कमीशनर एम डब्ल्यू यीट्स ने बताई थी कि पूरे देश की जाति आधारित टेबल तैयार नहीं हो पाई थी. इसके बाद अगली जनगणना से पहले देश आज़ाद हो गया था. 1951 में सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया. यानी अंग्रेज़ों वाले जनगणना के तरीके में बदलाव कर दिया. जनगणना का ये ही स्वरूप कमोबेश अभी तक चला आ रहा है.आजाद भारत में कभी भी जातीय जनगणना नहीं हुई है। हालाँकि जातीय जनगणना एक ऐसी मांग है, जिसे समय-समय पर कई नेताओं द्वारा उठाया जा चुका है। वैसे देखा जाए तो साल 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए गए। इसके अलावा साल 2011 में यूपीए के शासनकाल में भी जातीय जनगणना हुई थी, लेकिन रिपोर्ट में कमियां बता कर उसे जारी ही नहीं किया गया ।  लोगों को आशंका है कि जातीय जनगणना से देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का खतरा  है।


मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर ही ज्यादा पिछड़ी जातियों की पहचान की. कुल आबादी में 52 फीसदी हिस्सेदारी पिछड़े वर्ग की मानी गई. आयोग ने पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की.साल 2010 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे ने संसद में जातिगत जनगणना की मांग की थी. लेकिन अब सरकार में आने के बाद भाजपा सरकार जातीय जनगणना से पीछे हटती दिखाई दे रही है. इसके अलावा कांग्रेस सरकार ने भी साल 2011 में शरद पवार, लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के दबाव में जातीय जनगणना करवाई जरूर थी, लेकिन उसके आंकड़े ही जारी नहीं किए.बिहार का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल सीएम नीतीश के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात किया। भारत सरकार ने जब जातिगत जनगणना कराने से इंकार कर दिया, इसके बाद मुख्यमंत्री ने अपने स्तर से जनगणना कराने की बात कह दी। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लगातार इस संबंध में सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करते रहे। कुछ दिन पहले भी तेजस्वी ने सीएम नीतीश से मुलाकात की थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने ऐलान कर दिया कि वे बहुत जल्द ऑल पार्टी मीटिंग बुलाने जा रहे हैं। मीटिंग में सभी दल के नेताओं से राय लेकर सरकार आगे बढ़ेगी।   

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