महा प्रधानाचार्य प्रो.शशिप्रताप शाही ने कहा कि साहित्य अकादमी द्वारा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन महाविद्यालय के लिए गौरव की बात

रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : 04 दिसंबर 2021 : पटना ।  ए. एन. कॉलेज ,पटना के पुस्तकालय सभागार में शनिवार को साहित्य अकादमी,नई दिल्ली के तत्वावधान में  आचार्य श्री रंजन सूरिदेव: व्यक्तित्व और कृतित्व विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में स्वागत वक्तव्य देते हुए श्री अजय कुमार शर्मा,सहायक संपादक, साहित्य अकादमी ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों का उद्देश्य छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाना और उन पर सार्थक परिचर्चा आयोजित करना होता है। साहित्य अकादमी द्वारा बिहार की धरती पर बिहार के प्रमुख साहित्यकार आचार्य श्री रंजन सूरिदेव पर परिसंवाद आयोजित कराने का प्रमुख उद्देश्य यही है कि स्थानीय लोग सूरिदेव जी के साहित्यिक साधना से परिचित हों।

इसके पूर्व महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो.शशिप्रताप शाही ने सम्मानित अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी द्वारा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन महाविद्यालय के लिए गौरव की बात है। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य रंजन सूरिदेव की रचनाओं में राष्ट्र गौरव और बिहारी अस्मिता को महसूस किया जा सकता है।सूरिदेव जी अक्षर पुरुष थे।वे एक साथ संस्कृत,प्राकृत और हिन्दी भाषा के बड़े विद्वान थे। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।वे अनुभव और ज्ञान के विशाल भंडार थे।प्रो.शाही ने प्रो.अरुण कुमार भगत जी को आचार्य सूरिदेव पर लिखी गई आलोचनात्मक लेखों का संपादन कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के लिए विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया।

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इस परिसंवाद के मुख्य अतिथि श्री अवधेश नारायण सिंह, माननीय सभापति, बिहार विधान परिषद ने कहा कि तकनीक के सम्पर्क से साहित्य और भी तेजी से विकसित होता है।आज साहित्यिक राजधानी के रूप में पटना, वाराणसी आदि शहर तेजी से विकसित हो रहा है। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा और उसके व्यवहारिक रूप को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि सरल भाषा में लिखा गया साहित्य ही लोकप्रिय और श्रेष्ठ होता है। साहित्य सारे बंधनों को तोड़ता हुआ समाज में समरसता स्थापित करता है। उन्होंने आचार्य सूरिदेव द्वारा रचित शब्दकोश को प्रकाशित करवाने में हर संभव मदद का भी आश्वासन दिया।


वहीं इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, माननीय सदस्य, बिहार विधान परिषद अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य सूरिदेव से उनका व्यक्तिगत संपर्क था।उनका व्यक्तित्व उदार था। बिहार की धरती पर पढ़ लिखकर हिन्दी के प्रचार-प्रसार में उनकी अविस्मरणीय भूमिका रही है। श्री गुप्ता ने मैथिली भाषा और विशेष कर उसकी लिपि पर गंभीर संकट के उदाहरणों को सामने रखते हुए हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास और संवर्धन के लिए सबों को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाने की जरूरत है।


वहीं बीज वक्तव्य रखते हुए प्रो. अरुण कुमार भगत, माननीय सदस्य, बिहार लोक सेवा आयोग ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य श्री रंजन सूरिदेव हिन्दी भाषा और साहित्य के गौरव पुरुष थे।वे महत्वपूर्ण कवि,कुशल गद्यकार और श्रेष्ठ संपादक थे। उनके साहित्य में रचनात्मकता की त्रिवेणी , निर्झरणी की भांति प्रवाहित है।आचार्य सूरिदेव भाषा की दृष्टि से त्रिभाषा के प्रतीक पुरुष थे। हिन्दी, संस्कृत और प्राकृत की त्रिधारा का विलक्षण संगम उनके साहित्य में देखा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य शिवपूजन सहाय, आचार्य नलिन विलोचन शर्मा और लक्ष्मी नारायण सुधांशु आचार्य सूरिदेव के तीन आदर्श साहित्यकार थे।वे वैदिक ज्ञान परंपरा, बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन के विद्वान आचार्य थे। छायावादोत्तर कवियों में नवीन भाषाई प्रयोग के वे प्रयोक्ता थे।प्रो.अरुण कुमार ने आचार्य सूरिदेव द्वारा प्रतिपादित मौलिकता के विसर्जन के सिद्धांत को भी विस्तार से समझाया।


अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो.नंदकिशोर पांडेय, अधिष्ठाता, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने कहा कि यह बिहार के लिए गौरव की बात है कि एक समय आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा, नलिन विलोचन शर्मा, दिनकर, रेणु, नागार्जुन, आचार्य सूरिदेव जैसे अनेक साहित्यकार एक साथ लिख रहे थे। उन्होंने कहा कि आचार्य रंजन सूरिदेव जी की अप्रकाशित रचनाएं शीघ्र प्रकाशित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आचार्य सूरिदेव जी को राहुल सांकृत्यायन, आचार्य रामचंद्र शुक्ल और काशी प्रसाद जायसवाल की परंपरा में पढ़ने की जरूरत है। इस सत्र का मंच संचालन श्री गौरव सुन्दरम और श्री अभिजीत कश्यप ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.प्रवीण चंद्र राय ने किया।

इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कुणाल कुमार ने कहा कि श्रेष्ठ रचना वही होती है जिसे पढ़ने के बाद पाठकों के मन कोई क्रांति घटित होती है। उन्होंने कहा कि आचार्य सूरिदेव नये नये शब्द गढ़ते थे।वे श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ साथ स्नेह की प्रतिमूर्ति थे। वहीं गुंजन अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने सर्वाधिक पुस्तकों की भूमिका, समीक्षा लिखी। उन्होंने अनेक पत्र भी लिखा। सभी का संकलन आवश्यक है।इस सत्र के विशिष्ट वक्ता प्रख्यात साहित्यकार प्रो.कुमुद शर्मा ने कहा कि आचार्य शब्द सबके साथ नहीं जुड़ता। आचार्य रंजन सूरिदेव विनम्रता और विद्वत्ता के संगम थे।वे बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे।

परिसंवाद के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए श्री अनिल शर्मा जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिन्दी संस्थान ने कहा कि आचार्य रंजन सूरिदेव ने 26 वर्ष तक परिषद पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य के एक युग का निर्माण किया। लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व के बीच  एकरूपता के अद्भुत उदाहरण थे।इस सत्र का संचालन जहां डॉ.अशोक कुमार ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन श्री शोभित सुमन किया।

विशिष्ट वक्ता प्रख्यात समालोचक कैलाश प्रसाद सिंह स्वच्छंद,प्रख्यात साहित्यकार डॉ.शिवनारायण और समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार डॉ.उदय प्रताप सिंह ने आचार्य रंजन सूरिदेव के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।इस सत्र में मंच संचालन जहां डॉ.ध्रुव कुमार ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन श्री गौरव रंजन ने किया।इस अवसर पर साहित्य अकादमी नई दिल्ली के अनेक पदाधिकारी उपस्थित थे।साथ ही प्रो.बबन कुमार सिंह,प्रो.शैलेश कुमार सिंह ,प्रो.नरेन्द्र कुमार,डॉ.संजय कुमार सिंह ,डॉ.विद्या भूषण,डॉ.मणिभूषण,डॉ.भारती कुमारी सहित महाविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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