शेख हसीना 5वीं बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनेंगी. मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और उसके सहयोगियों के बहिष्कार के बीच हुए चुनावों में अवामी लीग ने बहुमत हासिल किया है.

आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 08 जनवरी 2024 : बांग्लादेश की 12वीं नेशनल असेंबली चुनाव में मुख्य विपक्ष दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के बहिष्कार के बीच सत्तारूढ अवामी लीग ने बहुमत हासिल कर लिया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी ने 300 सदस्यीय संसद में 223 सीटों पर जीत दर्ज की है. हसीना ने गोपालगंज-3 संसदीय सीट पर फिर से शानदार जीत दर्ज की है. उन्हें 2,49,965 वोट मिले. उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के उम्मीदवार शेख अबुल कलाम को 460 वोट मिले. एक अन्य उम्मीदवार महाबूर मोल्ला 425 वोट पाकर इस केंद्र में तीसरे स्थान पर रहे. वह जेकर की पार्टी के उम्मीदवार हैं. संसदीय सीट पर 2,90,300 मतदाता हैं. इनमें 1,48,691 पुरुष और 1,41,608 महिलाएं हैं.

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 गोपालगंज हसीना की जन्मभूमि है. हसीना 1991 से इस केंद्र से चुनाव लड़ रही हैं. हर बार उनकी जीत हुई. हालांकि इस बार मिले वोटों ने पिछली छह बार का रिकॉर्ड तोड़ दिया. बांग्लादेश में 2009 से सत्ता हसीना के हाथों में है. उन्होंने लगातार चौथा कार्यकाल हासिल किया है, वहीं प्रधानमंत्री के रूप में यह उनका अब तक का 5वां कार्यकाल होगा. इस बार लगभग 40 प्रतिशत मतदान हुआ. इससे पहले 2018 के आम चुनाव में 80 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था.

बांग्लादेश की 12वीं नेशनल असेंबली का चुनाव रविवार को हुआ. कुल 300 सीटों पर मतदान होना था. लेकिन एक उम्मीदवार की मौत हो गई थी. इस कारण नौगांव-2 केंद्र का मतदान रद्द हो गया था. इस कारण रविवार को 299 केंद्रों पर वोटिंग हुई.

मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने इस चुनाव का बहिष्कार किया और इसे “फर्जी” करार दिया. बीएनपी ने 2014 के चुनाव का भी बहिष्कार किया था लेकिन इसने 2018 में चुनाव लड़ा था. इसके साथ ही 15 अन्य राजनीतिक दलों ने भी चुनाव का बहिष्कार किया. बांग्लादेश के 12वें राष्ट्रीय संसद चुनाव में 28 राजनीतिक दलों ने भाग लिया. कुल उम्मीदवारों की संख्या 1969 हैं. कुल मतदाताओं की संख्या 11 करोड़ 96 लाख 89 हजार 289 लोग हैं.

चुनाव से पहले बांग्लादेश में हिंसा की कई घटनाएं घटी हैं. बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी, लेफ्ट अलायंस जैसे विपक्षी खेमों ने हसीना सरकार की देखरेख में होने वाले किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लेने का ऐलान किया. उन्होंने चुनाव का बायकॉट और 48 घंटे की हड़ताल की थी. इस कारण चुनाव के दौरान वोटिंग का प्रतिशत बहुत ही कम रहा है.

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