शांति समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और उल्फा के अरबिंद राजखोवा समर्थक गुट के एक दर्जन से ज्यादा टॉप नेता मौजूद रहे. अधिकारियों के मुताबिक, इस समझौते में असम से लंबे समय से जुड़े राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर गौर किया जाएगा. इसके अलावा समझौते के तहत मूल निवासियों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार भी दिया जाएगा.
आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 30 दिसंबर 2023 : नई दिल्ली। गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में शुक्रवार 29 दिसम्बर को उल्फा ने त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। संप्रभु असम की मांग के साथ उल्फा का गठन 1979 में संप्रभु असम की मांग के साथ किया गया था। तब से यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था। उल्फा के साथ भारत सरकार ने कई बार बात करनी चाही, लेकिन उल्फा में आपसी टकराव से इस कोशिश में बाधा पैदा होती रही। 2010 में उल्फा दो भागों में बंट गया। एक हिस्से का नेतृत्व अरबिंद राजखोवा ने किया, जो सरकार के साथ बातचीत के पक्ष में था और दूसरे का नेतृत्व परेश बरुआ कर रहे थे, जो बातचीत के विरोध में था। उल्फा, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राजखोवा गुट 2011 को शांति वार्ता में शामिल हुआ।
भारत सरकार, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और असम सरकार के बीच त्रिपक्षीय शांति समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर हो गए। गृहमंत्री अमित शाह ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इससे असम में शांति का नया द्वार खुलेगा। एक समिति बनाकर समझौते का समयबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाएगा। इसके तहत शांति का रास्ता अपनाने वालों को रोजगार मुहैया कराया जाएगा, उनके पुनर्वास के लिए विशेष पैकेज दिया जाएगा, साथ ही उनके सांस्कृतिक हितों का संरक्षण किया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया कि उल्फा की मांगों को पूरा करने के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम और इसकी मॉनीटरिंग के लिए एक समिति बनाई जाएगी। भारत सरकार ने एक बहुत बड़े पैकेज और असम की विकास परियोजनाओं को भी सहमति दी है। गृह मंत्रालय का कहना कि भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम है। मोदी सरकार समझौते की हर बात पर पूरी तरह अमल करेगी।
गौरतलब है कि करीब 40 वर्ष में पहली बार सशस्त्रत्त् उग्रवादी संगठन उल्फा, भारत और असम सरकार के बीच समाधान समझौता मसौदे पर हस्ताक्षर हुए हैं। उल्फा के एक धड़े के 20 नेता एक हफ्ते से दिल्ली में थे। भारत सरकार और असम सरकार के आला अधिकारी इस समझौते पर हस्ताक्षर के लिए उन्हें तैयार कर रहे थे। समझौते को लेकर दिल्ली में अहम बैठक हुई, जिसमें उल्फा के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। बैठक में गृहमंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, गृह सचिव अजय भल्ला, असम के डीजीपी जीपी सिंह सहित उल्फा के वार्ता समर्थक प्रतिनिधिमंडल के 29 सदस्य मौजूद थे। 2011 से हथियार नहीं उठाए उल्फा के जिस धड़े ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, वह अनूप चेतिया गुट का है। 2011 से इस उल्फा गुट ने हथियार नहीं उठाए हैं। यह पहली बार है जब दोनों पक्षों ने हस्ताक्षर किए हैं। पूर्वोत्तर में सशस्त्रत्त् उग्रवादी संगठनों से इस वर्ष भारत सरकार का यह चौथा बड़ा समझौता है। पांच वर्षों में नौ शांति समझौते गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राज्य और उत्तर-पूर्व में पिछले कई दशकों से हिंसा देखी जा रही है। जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, हम पूर्वोत्तर को हिंसा मुक्त बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में पूर्वोत्तर में नौ शांति समझौते हुए। शाह ने कहा, उल्फा द्वारा दशकों तक की गई हिंसा में 10,000 लोग मारे गए। यह असम में उग्रवाद का संपूर्ण समाधान है। उन्होंने कहा कि समझौते की शर्तों को समयबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।यह असम के भविष्य के लिए एक उज्ज्वल दिन है। अब त्रिपक्षीय समझौते से असम में हिंसा का समाधान हो सकेगा। असम के 85 प्रतिशत इलाकों से अफ्स्पा हटाया गया।
कैडरों का आत्मसमर्पण
गृह मंत्रालय के अनुसार, 2014 के बाद असम में हिंसक घटनाओं में 87, मृत्यु में 90, अपहरण में 84 कमी आई। असम में अब तक 7500 कैडरों ने सरेंडर किया है, जिसमें आज 750 और जुड़ जाएंगे।
बरुआ गुट शामिल नहीं
परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस त्रिपक्षीय समझौते का हिस्सा नहीं है। परेशा बरुआ गुट ने सरकार द्वारा प्रस्तावित समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया है।