आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 01 मार्च 2023 : मनुष्य के अंदर कामना उत्पन्न होते हीं अपने कर्तव्य से तथा अपने भगवान से विमुख हो जाता है। और नाशवान संसार के समीप चला जाता है। साधक को न तो लौकीक इच्छाओं की पूर्ति की आशा रखनी चाहिए और ना ही परमार्थी की इच्छा की पूर्ति से निराशा ही होनी चाहिए। कामनाओं के त्याग में स्वतंत्र अधिकारी योग्य और समर्थ है परंतु कामनाओं की पूर्ति में कोई भी स्वतंत्र अधिकारी योग्य और समर्थ नहीं है।जैसे-जैसे कामनाएं नष्ट होती जाती है वैसे वैसे साधुता आती है। और जैसे-जैसे कामनाएं बढ़ती जाती है वैसे-वैसे साधुता आती होती जाती है। कामना मात्र से कोई भी पदार्थ नहीं मिलता अगर मिलता भी है तो सदा साथ नहीं रहता। ऐसी बात प्रत्यक्ष होने पर भी पदार्थों की कामना रखना प्रमाद ही है। मेरे मन की हो जाए इसको कामना कहते हैं। यह कामना ही दुख का कारण है इसका त्याग किए बिना कोई सुखी नहीं रह सकता।

जब हमारे अंतरण में किसी प्रकार की कामना नहीं रहेगी तब हमें भगवत प्राप्ति की भी इच्छा नहीं करनी पड़ेगी। प्रत्यूत भगवान स्वत: प्राप्त हो जाएंगे। संसार की कामना से पशुता का और भगवान की कामना से मनुष्यता का आरंभ होता है। मनुष्य की जीवन तभी कष्ट में होता है जब उसके मन में सुख की इच्छा होती है और मृत्यु तभी कष्टमई होती है जब जीने की इच्छा होती है। यदि वस्तु की इच्छा पूरी होती हो तो उसे पूरी करने का प्रयत्न करते और यदि जीने की इच्छा पूरी होती तो मृत्यु से बचने का प्रयत्न करते। परंतु इच्छा के अनुसार ना तो सब वस्तुएं मिलती है और नाहीं मृत्यु से बचाव ही होता है। इच्छा का त्याग करने में सब स्वतंत्र हैं कोई पराधीन नहीं है और इच्छा की पूर्ति करने में सब पराधीन है कोई स्वतंत्र नहीं है। सुख की इच्छा आशा और भोग यह तीनों संपूर्ण दुखों के कारण है। हमको बहुत सम्मान मिले इसी कारण जीवन में अपमान मिल जाता है।

किसी भी चीज की मन में चाह रखना ही दरिद्रता है। लेने की इच्छा करने वाला सदा दरिद्र ही रहता है। मनुष्य को कर्मों का त्याग नहीं करना है बल्कि कामना का त्याग करना है। मनुष्य को वस्तु गुलाम नहीं बनाती उसकी इच्छा गुलाम बनाती है। यदि शांति चाहते हो तो कामना का त्याग करो कुछ भी लेने की इच्छा भयंकर दुख देने वाली है। जिसके पास भी ईक्षा है उसको किसी न किसी के पराधीन होना ही पड़ेगा। अपने लिए सुख चाहना राक्षसी वृति है। भोग और संग्रह की इच्छा पाप कराने के सिवा और कुछ नहीं कराती। अतः इस इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। अपने लिए भोग और संग्रह की इक्षा करने से मनुष्य पशुओं से भी नीचे गिर जाता है तथा इक्षा का त्याग करने से देवताओं से भी ऊंचे उठ जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! Copyright Reserved © RD News Network