आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 30 मार्च 2022 : करगहर(रोहतास)। केवल विवाह नही करने वाला ही ब्रम्हचारी नही है बल्कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी एक नारी का परिवार,समाज व देश के प्रति अपने सुकर्मों को समर्पित करे वो ब्रम्हचारी है।ब्रम्हचारी ही दुनिया में सुख शांति से जीने का अधिकारी है।प्रखंड क्षेत्र के नादो गांव में सोमवार को श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के तीसरे दिन लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने अपने उपदेश में कहीं।उन्होंने कहा कि सदाचार से जीना,सात्विक भोजन करना,परोपकार एवं दया का भाव रखना,सरलता,अच्छे आचरण एवं सही कर्म ब्रम्हचारी के लक्षण है।उन्होंने विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्कारित ढंग से विवाह के बंधन में बंधकर अपनी पत्नी के साथ गृहस्थ जीवन का पालन करना भी ब्रम्हचर्य कहा जाता है।जीयर स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को 25 साल के बाद 50 वर्ष की आयु तक समर्पित रूप में जीवन जीना अपने आप मे ब्रम्हचर्य है।सामाजिक बंधन की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि अपनी पत्नी के बाद समान उम्र की नारी को बहन,छोटी उम्र को बेटी और बड़े उम्र की नारी को माँ के रूप में स्वीकार करना भी ब्रम्हचारी के लक्षण है।उन्होंने नारी की महत्ता अंकित करते हुए कहा कि स्त्रियां जगत की संस्कृति है।स्त्रियां सृजक एवं पालक दोनों होती है।आज जो भी योगी,सन्यासी और बड़े लोग देखे सुने जाते हैं वे सब उन्हीं माताओं की देन हैं अन्यथा संसार महापुरुषों से शून्य हो जाता।इसलिए स्त्रियों को विशेष आचरण युक्त जीवन जीना चाहिए।किसी उपलब्धि के लिए यथोचित प्रयास की जरूरत बतलाते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ कमाना और याचना से लक्ष्य पाना संभव नहीं।यह स्थिति सिर्फ बाल्यकाल में ही उचित है बालक रोकर ही अभिभावकों से अपनी हर कामना पूर्ति कराने का प्रयास करता है लेकिन बाल काल के बाद इस विधि से किसी चीज की प्राप्ति की कामना नही करें।व्यक्ति को लक्ष्य के स्वरूप के अनुकूल ही प्रयास करना पड़ता है।यदि लक्ष्य ऊंचा है तो उसके लिए असाधारण प्रयास करना पड़ेगा।मानव जीवन में आत्मा या परमात्मा की उपलब्धि सर्वोच्च उपलब्धि है।इसके लिए मनुष्य को कई जन्मों तक साधना करनी पड़ती है।आज के भौतिक युग मे आर्थिक उपलब्धि को ही महान उपलब्धि लोग मानते हैं।लेकिन आध्यात्मिक उपलब्धि की तुलना में अर्थोप्लब्धि नगण्य है।आध्यात्मिक पुरूष के पीछे लक्ष्मी स्वंय लग जाती है।