राजा परीक्षित ने गंगा के तट पर श्री शुकदेवजी से पुछा की जो व्यक्ति मरने की तैयारी नही किया हो ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए। निर्माण पुरूष का क्या कर्तव्य होता है। तो शुकदेवजी ने बताया कि यह पुरे संसार का प्रश्न है। कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में जीने के लिए नही आया है मरने के लिए आया है। जिस दिन से हम जन्म लेते हैं उसी दिन से हमारी मृत्यु शुरू हो जाती है। रोज हम मर ही रहें है। मृत्यु का मतलब है परिवर्तन। जो दुनिया हर क्षण, हर पल परिवर्तन होती है। यानि जो अभी है वह आधे घंटे बाद नही रहेगा।

कलयुग में भगवान को प्रसन्न करने का सहज उपाय है ध्यान करना।

शास्त्र में बताया गया है कि  मनुष्य सतयुग में 1 लाख वर्ष जीते थे। 21 हाथ लम्बा होते थे। समाधि लगाकर भगवान को प्रसन्न करते थे। त्रेतायुग में दस हजार वर्ष जीते थे। चौदह हाथ लम्बा होते थे। यज्ञ यज्ञादि द्वारा अपना कल्याण करते थे। द्वापर में एक हजार वर्ष की आयु बताई गई है। उस समय मंदिर पूजा द्वारा अपना कल्याण करते थे। कलयुग में 100 वर्ष की आयु बतायी गई थी। इसमें भगवान को पाने का सबसे सहज और सरल उपाय है परमात्मा की गुण, भजन, ध्यान करना, जप करना।

कलयुग में यज्ञ करना कठिन काम है। 

तुलसीदास जी ने बताया है कि कलयुग में यज्ञ करना कठिन काम है। कोई नास्तिक है। कुपंथी है। कोई कहेगा हम संत नही मानते है, हम धर्म नही मानते हैं।  कोई कहेगा इतना पैसा जला दिया। कई तरह के लोग कई प्रकार की बातें कहते हैं। वहीं शराब पीने में वेश्यावृत्ति करने में, गांजा पीकर धुआं उडा दिया जाता है। परंतु नास्तिक लोग उसको नही मानेगा। परंतु यज्ञ होगा तो उपदेश देना शुरू कर देता है। इसीलिए तुलसीदास जी ने सोचा कि कलयुग में नालायक लोग भी हो जाऐंगे। इसीलिए भगवान के नामों का जपने से तीर्थ यात्रा, यज्ञ तथा समाधि का फल मिल जाता है।

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