रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : 22 नवम्बर 2021 : बिक्रमगंज(रोहतास) : धान का कटोरा कहे जाने वाले बिहार के जिला रोहतास में अधिकतम धान पैदा होने के बाद उसका पुआल किसानों के लिए एक समस्या हो जा रही है , जिसका गेहूं की बुवाई असर पड़ता है । इस असर को कम करने के लिए अनेकों तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा है । जिसमें बेलर से बेल बनाना, उस बेल को डेयरी फार्मो को बेचना एवं बायो डी कंपोजर के द्वारा फसल अवशेष को ही खेत में डीकंपोज करने का प्रयास करना साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के निर्देशन में एक बायोचार यूनिट का निर्माण किया है । जिसमें बायोचार का निर्माण किसानों के खेतों से प्राप्त पराली के माध्यम से किया जाएगा । यह पराली 2 से 3 दिनों में इस में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पायरो लिसिस के माध्यम से पराली का अपघटन होगा जिससे हमें बायोचार प्राप्त होगा जो कि खेत के लिए एक अमृत की तरह काम करेगा अर्थात जैसे हम लोग वर्मी कंपोस्ट गोबर की खाद इत्यादि का प्रयोग करते हैं । उसकी उसी तरह खेती में 10 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से उपयोग कर करेंगे तो हमारे विभिन्न फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होगी साथ ही हमारी मिट्टी की स्वास्थ्य में सुधार होगा । बायोचार की एक खास गुणवत्ता है कि एक बार खेत में जाने के बाद सैकड़ों वर्ष तक नष्ट नहीं होगा जिससे मिट्टी में कार्बन की मात्रा में बढ़ोतरी होगी और विभिन्न पोषक तत्व के उपयोग क्षमता में वृद्धि होगी । अतः बायोचार बनाकर हम अपने मिट्टी का स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं साथ ही अपनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाकर हम अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर पाएंगे ।

कैसे करते हैं बायोचार यूनिट का निर्माण

11 फिट गोलाई में 15 इंच मोटी दीवार का निर्माण ईट एवं गारे की सहायता से प्रारंभ करते हुए 11 फीट ऊंचाई तक ले जाते हैं और ऊपर की तरफ दीवाले पतली होती जाती है ।सबसे ऊपर 3 फीट का जगह छोड़ते हैं और साथ ही नीचे में 5 फीट तक त्रिभुजाकार दरवाजा रखते हैं ।

कैसे डालेंगे पुआल

बिक्रमगंज कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान रविंद्र कुमार जलज ने बताया कि सर्वप्रथम नीचे वाले दरवाजे के माध्यम से पुआल या फसल अवशेष डालना प्रारंभ करते हैं और ऊपर की तरफ ले जाते हैं । अंत में ऊपर से भी वालो को डालकर पूरी तरह से दबाते हुए भर देते हैं । ऊपर बचे हुए 3 फीट जगह से जलाकर एक मोटे लोहे की चादर से ढक देते हैं और मिट्टी की सहारे अच्छी तरह से लिपाई कर देते है । धीरे – धीरे 12 से 18 घंटे में वालों का पायरोलिसीस हो जाता है और 11 – 12 वर्ग फिट वाले क्षेत्रफल में लगभग 16 क्विंटल वालों लगता है एवं उससे 12 क्विंटल बायोचार की प्राप्ति होती है । प्राप्त बायो चारकोप 1 एकड़ खेत में उपयोग कर सकते हैं जिससे मिट्टी को अत्यधिक लाभ प्राप्त होता ।

नियंत्रित कक्ष में वालों की पैरालिसिस करने से प्रदूषण से निजात

कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास के वैज्ञानिक डॉ रमाकांत सिंह के अनुसार खुले में बाल जलाने पर मिट्टी में उपलब्ध जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं ।जिससे पोषक तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती । साथ ही पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड इत्यादि नामक जहरीले गैस वातावरण में पहुंचने पर वातावरण प्रदूषित होता है । इसके साथ – साथ पार्टिकुलेट मैटर ही वातावरण में पहुंचते हैं । जो कि सामान्य जन जीवन के लिए अत्यधिक घातक है । अतः अगर बायोचार बनाकर उसका खेत में प्रयोग करें तो वातावरण में हो रहे प्रदूषण के साथ-साथ मिर्जा के स्वास्थ्य में गिरावट से बचा जा सकता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! Copyright Reserved © RD News Network