काराकाट गच्छहीं: इस दुनिया में हम रहते हैं। दुनिया में जो कुछ भी वस्तु व्यवस्था, व्यवहार है, उनमें कोई न कोई कर्ता और कारण को ध्यान में रखते हुए तब व्यवहारिक कार्यों को किया जाए, वह अध्यात्मवाद है। अध्यात्मवाद शयन करने से ले करके कपड़ा पहनने से लेकर, भोजन करने से ले करके, चलने से ले करके, बोलने से ले करके, सुनने से लेकर, व्यापार से लेकर, परिवार पत्नी बाल बच्चों से लेकर सबमें कोई न कोई कर्ता नियामक, नियंत्रक मानता है। हम नही हैं एक ऐसा कारक है, एक ऐसा कर्ता हैं, नियामक हैं जो अपने द्वारा हमें व्यवस्थित करता है। ऐसा मान करके जीवन जीता है वह अध्यात्मवाद है। सही मायने में हमें शांति का अनुभव कराती है।

भगवान की आत्मा ब्रम्हा हैं।

ब्रम्हा का आत्मा हीं जो है उससे आकाश तत्व प्रकट हुआ। आकाश तत्व के कारण ही हम बातचीत करता हैं। जहां आकाश तत्व का अभाव है वहां एक फीट की दुरी से भी आवाज सुनाई नही देता है। आकाश तत्व से नाद प्रकट हुआ। नाद से ओउम् उत्पन्न हुआ। यहीं ओउम् शब्द से स्वर तथा व्यंजन का उत्पति हुआ।

समर्पण का भावना ही नमस्कार है।
मेरा कुछ नही है इस प्रकार समर्पण की भावना ही नमस्कार कहा जाता है। अर्थात मै कुछ नही हुं।अपने जानने के बावजूद भी दुसरे से पुष्ट होना बड़प्पन है।

नारद जी जानने के बावजूद भी ब्रम्हा जी से सृष्टि के आरंभ के बारे में पूछते हैं। बड़े लोग अपने जानने के बावजूद भी दुसरे से जानकारी प्राप्त कर पुष्ट होते हैं। मान लीजिए कोई लंबी यात्रा कर रहे हों रास्ते की जानकारी होने के बावजूद दूसरों से पुछ कर पुष्टि करते हैं  ये बड़प्पन कहलाता है। परंतु जो समान्य व्यक्ति है वह जानता अधूरा है परंतु  अपने को कन्फर्म और पुष्टि मानता है। यही कारण है कि वह भटक जाता है। तब जाकर नारद जी ने कहा कि पिताजी परमात्मा ही कुसंग से बचा सकते हैं। हम तीर्थ करें, पूजा करें, दान करें लेकिन परमात्मा ही हमें कुसंग से बचा सकते हैं। वह परमात्मा यदि कुसंग से नही बचाते हैं तो हम कितना ही पूजा-पाठ साधना करें कुसंग से नही बच पाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! Copyright Reserved © RD News Network