कंचनपुर में स्वामी जी के आते ही पूरा क्षेत्र जयकारे से गूंज उठा। कंचनपुर यज्ञ समिति के लोगों ने स्वामी जी महाराज का आने पर भव्य तरीके से गाजे-बाजे और फुल माले के साथ स्वागत किया। मीडिया प्रभारी अखिलेश बाबा ने बताया कि सुबह से ही लोग काफी संख्या में जुटे हुए थे। और स्वामी जी का इंतजार कर रहे थे। ज्योंहीं स्वामी जी का आगमन कंचनपुर में यज्ञ स्थल पर हुआ लोगों के जयकारे से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा।उन्होंने बताया कि 1 जनवरी को काफी संख्या में भक्त गणों की आने की संभावना है। उन्होंने बताया कि बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश आदि जगहों से काफी संख्या में लोग स्वामी जी के दर्शन करने हेतु जुटेंगे। जिसको लेकर यज्ञ समिति की तरफ से भव्य तरीके से प्रसाद की व्यवस्था की गई है। और पूरे क्षेत्र में उत्साह का माहौल है।
श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि सुकदेव जी महाराज ने बताया कि मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना। जैसे की किसी का विवाह हो रहा हो उसकी भूत, भविष्य, वर्तमान की कामना करना ही मंगलाचरण है। इसके लिए पितरों को गीत गाकर, ऋषियों को, भगवान को, देवताओं को गोहराना ही मंगलाचरण होता है। इसी प्रकार श्री शुकदेवजी ने भी बाद में मंगलाचरण किया कि जो मै कह रहा हूं उससे समाज में परिवार में जो सुनने वाला हो उसका मंगल हो। इसीलिए मंगलाचरण किया जाता है। चाहे भजन के रूप में हो स्तुति के रूप में हो।
शुकदेवजी ने परिक्षित को बताया कि जो अच्छे सदाचारी ब्राम्हण हो उसे भगवान का मुख बताया गया है। भगवान के मुख का पूजा करने का मतलब अग्नि का पूजन, रोम का पूजा का मतलब वृक्ष तथा नाड़ी का पूजा से नदियों का, स्वास जो है भगवान का वायु है। भगवान की गति जो है संसार का महायज्ञ का फल मिल गया। भगवान के नेत्र के ध्यान का मतलब अंतरिक्ष का ध्यान कर लिया। उनकी पलकों का ध्यान का मतलब उनकी पलकों का ध्यान करना है। भगवान के पैर के तलवे को ध्यान करते हुए यह मानना चाहिए कि यह पताल लोक है। पैर के अग्र भाग रसातल लोक, दोनो एडी का ध्यान का मतलब महातल का दर्शन, जांघो के ध्यान का मतलब महीतल लोक का दर्शन। दोनो पेंडुली का दर्शन परासर लोक की पूजा, घुटनों का दर्शन सुतल लोक का दर्शन, नाभी का दर्शन करने का मतलब हमने आकाश का, भगवान के वक्षस्थल का पूजा करने का मतलब स्वर्गलोक का दर्शन कर लिया। मुख का दर्शन करने का मतलब जन लोक, ललाट का दर्शन करने का मतलब तपोलोक का दर्शन, सिरोभाग का दर्शन सत् लोक है। भगवान की भुजा की पूजा करने का मतलब इन्द्र की, कान का ध्यान करने का मतलब दिशा का पूजन, इस प्रकार भगवान के अंगो का ध्यान करने से अलग अलग लोकों के परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है। यदि सारे दुनिया के तीर्थ व्रत देवी देवता की पूजा करने की क्षमता नही है तो केवल एक मात्र भगवान नारायण की पूजा कर लिया तो तैंतीस कोटि देवता हैं सभी देवताओं को सातों लोक की अराधना कर लिया।