सुप्रसिद्ध चिकित्सक और साहित्यकार डा रंगी प्रसाद सिंह रंगम की जयंती और डा शिववंश पाण्डेय की ९० पूर्ति पर आयोजित अभिनन्दन एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह

डा शिववंश पाण्डेय की रचनाओं में सागर की गहराई, पूनम आनंद में प्रेम के हिलोरें ९० पूर्ति पर डा पाण्डेय का हुआ अभिनन्दन और चार पुस्तकों का लोकार्पण,पूनम आनंद की पुस्तक ये नन्हें परिंदें का भी हुआ लोकार्पण, दी गई विद्या वारिधि की उपाधि,जयंती पर डा रंगी प्रसाद सिंह रंगम किए गए स्मरण ।

आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 21 फरवरी 2022 : पटना । डा रंगी प्रसाद रंगम एक सुख्यात रेडियोलौजिस्ट थे और बिहार में उन्हें कैंसर चिकित्सा के प्रणेता के रूप में स्मरण किया जाता है। एक चिकित्सक होने के साथ ही वे एक प्रतिभाशाली साहित्यकार भी थे। उन्होंने चिकित्सा-विज्ञान समेत रचनात्मक साहित्य की भी अनेक विधाओं में प्रचुर लेखन किया। साहित्य सम्मेलन के विद्वान प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय का स्थान देश के अग्र-पांक्तेय विद्वानों में परिगणित होता है। विदुषी कवयित्री श्रीमती पूनम आनंद की पुस्तक ये नन्हें परिंदे भारत के बच्चों को सन्मार्ग पर चल कर देश के महान सपूत बनने की प्रेरणा देगी। यह बातें, सोमवार को, सुप्रसिद्ध चिकित्सक और साहित्यकार डा रंगी प्रसाद सिंह रंगम की जयंती और डा शिववंश पाण्डेय की ९० पूर्ति पर आयोजित अभिनन्दन एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह का उद्घाटन करते हुए, सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कही। श्री प्रसाद ने कहा कि समाज में नारी-शक्ति की महिमा से हम अवगत हैं। भारतीय समाज आदि काल से स्त्री-जाति के प्रति श्रद्धा से नत रहा है। नारी प्रकृति है, जननी है, धारण करनेवाली धारयित्री है। पुस्तक की लेखिका श्रीमती पूनम आनंद बधाई की पात्र हैं।महामहिम राज्यपाल ने डा पाण्डेय को वंदन-वस्त्र, पुष्प-हार और पुष्प-गुच्छ देकर अभिनन्दन किया। उन्होंने डा पाण्डेय की चार पुस्तकों, निबन्ध निधि, स्मृतियों के द्वार से, रूप एक रंग अनेक तथा रोते हंसते क्षण और विदुषी कवयित्री पूनम आनंद के काव्य-संग्रह ये नन्हें परिंदें का लोकार्पण तथा श्रीमती आनंद को, सम्मेलन की उच्च उपाधि विद्या वारिधि से अलंकृत भी किया।समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार के उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद ने दोनो साहित्यिक विभूतियों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए कहा कि हम सभी मानते हैं कि जब-जब राजनीति लड़खड़ाती है, साहित्य उसे संभाल लेता है। साहित्यकारों से मेरा सदा ही विनम्र आग्रह रहता है कि जब भी सत्ता के कदम लड़खड़ाए, आप आगे बढ़कर उसे संभाल लीजिए। गिरने से बचाइए।समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि डा पाण्डेय का संपूर्ण जीवन साहित्य की साधना में व्यतीत हुआ है। इनकी विद्वतापूर्ण समालोचना, पांडित्य पर बिहार को गौरव है। इनकी रचनाओं में ज्ञान का सागर और महासागर की गहराई है। वहीं विदुषी कवयित्री पूनम आनंद की रचनाओं में प्रेम के हिलोरें हैं। वस्तुतः पूनम जी प्रेम और वात्सल्य की कवयित्री हैं। इनका प्रेम लोक-मंगलकारी है। ये नन्हे परिंदें उनके प्रेम-प्रसूत वात्सल्य के गीत गाते हैं।विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद, दूरदर्शन, बिहार के प्रमुख डा राज कुमार नाहर तथा साप्ताहिक पत्र गनादेश के संपादक राघवेंद्र ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे तथा धन्यवाद-ज्ञापन पूनम आनंद ने किया। आरंभ में सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह, वैशाली ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष शशिभूषण कुमार, उत्पल कुमार, डा मनदीप कुमार, डा सुधीर कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुषमा कुमारी तथा आनंद मोहन झा ने अतिथियों का अंग-वस्त्रम तथा पुष्पगुच्छ देकर अभिनन्दन किया।इस अवसर पर वीरेंद्र यादव, आराधना प्रसाद, डा ध्रुब कुमार, ओम् प्रकाश पाण्डेय प्रकाश, बच्चा ठाकुर, डा रमेश चंद्र पाण्डेय, रत्नावली कुमारी, प्रेमलता सिंह, आचार्य विजय गुंजन, कमला प्रसाद, अधिवक्ता पंडित जी पाण्डेय, बाँके बिहारी साव, नरेंद्र झा, प्रो राम विलास चौधरी, डा बी एन विश्वकर्मा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा सुमेधा पाठक, डा मनोज संढवार, अजय गुप्ता, प्रवीर कुमार पंकज, डा शकुंतला अरुण, डा सीमा यादव, डा रमेश पाठक, डा पूनम देवा, नूतन सिन्हा, डा सत्येंद्र सुमन, डा मुकेश कुमार ओझा, श्रीकांत व्यास, अरविन्द कुमार सिंह, ई अशोक कुमार, नरेंद्र कुमार झा, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा रणजीत कुमार, श्वेता मिनी, समेत बड़ी संख्या में सुधीजन उपस्थित थे।

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