आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 10 मार्च 2022 : मोहनिया : मोहनिया में प्रवचन करते हुये श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा की सृष्टि के आदि में ब्रम्हा जी द्वारा मनु सतरूपा हुए। इन दोनो से गृहस्थ मर्यादा द्वारा तीन कन्या तथा दो पुत्र प्रकट हुए। पृथ्वी के प्रथम सम्राट मनु जी महाराज है और प्रथम राजरानी सतरूपा जी हैं। उस समय कोई भी न देश था, न कोई प्रदेश था, न कोई दूसरा राजा था। आकुति, देवहुति तथा प्रसूति। दो पुत्र हुए प्रियव्रत और उतानपाद, मनु जी महाराज ने मर्यादा से अपने पुत्र पुत्रियों को पालन पोषण करने लगे। धन्य हैं मनु सतरूपा जो अपने पुत्र पुत्रियों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दिए। माता पिता को जहां तक सामर्थ्य हो अपने संतान को शिक्षा दें और शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दें। आज हम शिक्षा तो दे रहें हैं परंतु संस्कार नही दे रहें हैं। जबकि शिक्षा और संस्कार दोनो एक साथ होना चाहिए। शिक्षा के साथ यदि संस्कार होता है तो वह शिक्षा हमारी साधना में परिणत हो जाती है। समाधान में परिणत हो जाती है। हमारे जीवन के लिए श्रृंगार बन जाती है। हमारे जीवन के लिए उपहार बन जाती है। यदि शिक्षा के साथ साथ संस्कार नही हो तो वह शिक्षा जो है हमारे लिए बोझ बन जाती है। केवल शिक्षा हो संस्कार नही हो तो वह शिक्षा हमारे लिए विनाश का कारण बन जाती है। बेटा हो या बेटी लोग कहते हैं मेरा बेटा बेटी इंजीनियरिंग, डाॅक्टरी पढ़ रही है। अच्छी बात है लेकिन ज्यों ही रिजल्ट आने की बात हुई और तत्काल बेटे बेटी के यहां से ऑफर आ जा रहा है। अपनी शादी स्वयं से कर ले रहें हैं। इसका कारण है कि शिक्षा के साथ संस्कार नही दिया गया। यह कैसा शिक्षा, किस प्रकार की शिक्षा। संस्कार के अभाव में यही कारण है कि 15 दिनों में ही शादी टुट जाती है। यदि शिक्षा के साथ संस्कार नही होगा तो करोड़ो दुशासन पैदा होगें हर घर की लज्जा लुट ली जाएगी।

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