पीड़ा का अनुवाद है कविता, खुद से इक संवाद है कविता

रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : 31 अक्टूबर 2021 : पटना । पीड़ा का अनुवाद है कविता/ खुद से इक संवाद है कविता– शीतल पानी कूप का और नीम की छांव– शोर शहर का कनपका दिल में गाता गाँव— इधर उधर तू भटक मत, बाहर कुछ भी नाहिं– अल्लाह, राम, मसीह सब, भीतर ही मिल जाहिं जैसी संवेदना से ओत-प्रोत पंक्तियों के साथ आज बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मंच पर, राष्ट्रीय मंचों के लोकप्रिय कवि डा सुरेश अवस्थी उपस्थित हुए। उनके सम्मान में रविवार को सम्मेलन की ओर से एक अभिनन्दन काव्य-गोष्ठी आयोजित की गई थी।सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस काव्य-गोष्ठी में,डा अवस्थी ने अनेक भावों की कविताएँ पढ़ी, जिनका प्रबुद्ध श्रोताओं ने बार-बार तालियों से स्वागत किया।

डा अवस्थी ने गीत को काव्य की सर्वाधिक रागात्मक विधा बताते हुए अनेक गीत पढ़े और कहा – पीड़ा का अनुवाद है कविता– खुद से इक संवाद है कविता। उन्होंने अनेक दोहे भी पढ़े। दोहा छंद में उन्होंने देश और समाज की पीड़ा को भी अभिव्यक्त किया और कहा – रोम रोम हर्षित हुआ, पुलकित होता गात–सूने घर से जब कारी, बचपन वाली बात–धूप सयानी हो गई, बौनी होती छांव–मालरोड पर खोजते कहाँ खो गया गाँव।उन्होंने विषाद के क्षणों में कहीं अन्यत्र जाने के स्थान पर स्वयं के भीतर समाधान ढूँढने की सलाह दी और कहा कि भरा भरा जब जी लगे, रह रह मन अकुलाय– खुद से खुद की बात कर, समाधान मिल जाय। बेटियों की हिफ़ाज़त को वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत बताते हुए उन्होंने कहा – छाते हो जो सबके दिलों में जगह बने अपनी–भूल कर भी बेटा-बेटी में फ़र्क़ मत करना।वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र करुणेश ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि – अब रहा क्या डर हक़ीक़त जब कहानी हो गई–हमने जिसको आग समझा था वो पानी हो गई–रफ़्ता-रफ़्ता काले-काले सारे बादल छँट गए –आसमां की शक्ल फिर से आसमानी हो गई।

शायरा आराधना प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल यों पढ़ी कि पत्थरों को रास्ते से हर कदम हटाना है/ मंज़िलें बुलाती हैं रास्ता बनाना है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष दा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल का सस्वर पाठ करते हुए अपने दिल की बात कही कि साथ यादों के इतने सायें हैं–कसे कहदें कि हम अकेले हैं– शौक़ हमने भी कैसे पाले हैं–चोट खाते और मुस्कुराते हैं।

अभिनन्दन काव्य-गोष्ठी में व्यंग्य के कवी ओम् प्रकाश पाण्डेय प्रकाश, डा अर्चना त्रिपाठी, डा दिनेश दिवाकर, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा आर प्रवेश, कुंडन आनंद,जय प्रकाश पुजारी, श्रीकांत व्यास, डा कुंदन सिंह, रेखा भारती, पूजा ऋतुराज, प्रेमलता सिंह राजपूत, अमरेन्द्र कुमार तथा अर्जुन प्रसाद सिंह ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को हाथ खोलने को विवश किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, धनयवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह तथा मंच संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने किया। इस अवसर पर सम्मेलन के भावन अभिरक्षक डा नागेश्वर प्रसाद यादव, शोभाकांत झा, प्रणव कुमार समाजदार, अभिषेक कुमार, अमित कुमार सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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