कविराज वैद्य रामलखन सिंह के सुपुत्र हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 16 जनवरी 2022 : पटना : बिहार का अतीत बहुत ही समृद्ध एवं गौरवशाली रहा है। युगों के अंतराल में मानव प्रतिभा यहाँ अभिनव रूपों में व्यक्त होती रही है, जिससे सारा विश्व लाभान्वित हुआ है। बिहार की इसीपावन धरती पर कई ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी पैदा हुए जिन्होंने अपनी इमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा एवंराष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए अंग्रजों को खदेड़ा। आज ऐसे वीर सपूतों की वीर गाथा को इतिहास में जगह मिल रही है, तो कुछ अभी भी इतिहास के पन्नों से गायब हैं। आज आवश्यकता है ऐसे वीर पुरूषों की जीवन गाथा को उजागर कर आमजन तक पहुँचाने की। समय की बदलती धारा को आत्मसात्‌ करने वाला इतिहास” स्वयं भी लेखन के दृष्टिकोण से बदलता रहा है। कभी राजाओं-महाराजाओं की जीवनी को आधार प्रदान करने वाला इतिहास अब आमलोगों तक प्रवेश कर चुका है। किसानों और मजदूरों का शोषण भी इतिहास में दर्ज हो रहा है, तो दलितों और आदिवासियों की अमानवीय स्थिति भी इतिहास के पन्नों में जगह पा रही है।आधुनिक भारतीय इतिहास-लेखन में भी यह परिवर्तन सद्यः द्र॒ष्टव्य है। पहले इतिहास की व्याख्या रेखीय गति से न करते हुए चकीय गति से किया जाता था। लेकिन राजतरंगिणो के लेखन के पश्चात्‌ भारत में इतिहास लेखन का स्वरूप बदला। ब्रिटीश काल में आधुनिक इतिहास लेखन का स्वरूप उभरा। आगे चलकर मार्क्सवादियों ने भारतीय इतिहास लेखन को वस्तुतिष्ठ आधार मिलना प्रारंभ हो गया है। हाल में उपाश्रयवादी इतिहास लेखन का आरंभ हुआ जिसमे अधोस्तरीय सामाजिक वर्गों को इतिहास लेखन की मुख्य धारा में शामिल किया गया। हाल ही में बिहार के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के द्वारा प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी कविराज रामलखन सिंह, शहीद नाथून प्रसाद यादव, शीलभद्र याजी, मोगल सिंह एवं डुमर प्रसाद सिंह के सम्मान में नगर परिषद्‌ क्षेत्र बख्तियारपुर के अंतर्गत स्थापित प्रतिमा स्थल पर प्रत्येक वर्ष 17 जनवरी को राजकीय समारोह का आयोजन किये जाने का निर्णय स्वागत योग्य है। प्रस्तुत है प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी कविराज रामलखन सिंह की जीवनी :-

वर्तमान नालन्दा जिला के कल्याण बिगहा गाँव में वैद्य रामलखन सिंह काजन्म 25 अक्टूबर 1940 ई. में एक अत्यंत मध्यम परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम किशोरीशरण सिंह था एवं दादा का नाम सीताराम सिंह था। सीताराम सिंह एक मध्यवर्गीय किसान थे। 49वींसदी के अंत में वे अपने परिवार के साथ तेलमर गाँव से कुछ किलोमोटर दूर एक छोटे से गाँव कल्याणबिगहा में आकर बस गये और वहाँ उन्होंने 6 एकड़ कृषि योग्य जमीन खरीदी। इस जमीन के सहारे ही वे अपना जीवन-यापन करने लगे। उनके पुत्र किशोरी शरण सिंह बड़े आदर्शवादी व्यक्ति थे। उनके ऊपर आर्य समाज का गहरा प्रभाव था। आर्य समाज को राष्ट्रवादी विचारधारा एवं जातिविहीन समाज की स्थापना के विचारों से वे अभिभूत थे। उन्होंने आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति का स्वयं अध्ययन किया और गाँव में ही गरीब मरीजों का इलाज करने लगे। गरीब लोगों से कम पैसा लेने और अच्छा इलाज करने के कारण उनकी प्रतिष्ठा अगल-बगल के इलाकों में फैल गयी।किशोरी शरण सिंह अपने पुत्र रामलखन सिंह को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे। इस हेतु उन्होंने रामलखन सिंह को अपने घर से चार किलोमीटर दूर हरनौत भेजा। हरनौत में उन्होंनेइतिहास, दर्शन, साहित्य एव विज्ञान की अच्छी शिक्षा हासिल की | इसके उपरांत उनका दाखिला दानापुर स्थित आर्य समाज के द्वारा स्थापित गुरूकुल में करवा दिया गया। गुरूकुल में चार वर्षों के अध्ययन के दौरान उनमें राष्ट्रवादी भावना कूट-कूट कर भर गयी। वे आर्य समाज में दीक्षित हो गये। उनमें आध्यात्मिक गुणों का भी संचार हुआ। उन्होंने जीवनपर्यन्त मूर्तिपूजा एवं अन्य बाह्याडम्बरों में विश्वास नहीं किया लेकिन अपने परिवार के अन्य लोगों को मूर्तिपूजा करने से उन्होंने कभी मना नहीं किया।गुरूकुल में शिक्षा पूरी करने के उपरांत रामलखन सिंह ने अपने पिता के पेशे को अपनाने का निश्चय किया। उन्होंने पटना के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज में नामांकन करवाया।शीघ्र ही वे देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति आकर्षित हो गये। 1928 ई. में साइमन कमीशनका दौरा दिसम्बर महीने में पटना में हुआ। राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में लोगों ने काला झंडा दिखाकरप्रदर्शन किया और साइमन वापस जाओ का नारा लगाया। रामलखन सिंह ने भी अपने साथियों केसाथ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया और गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दियागया। अदालत में उन्होंने अपना पक्ष रखा और अदालत ने उनके निष्कासन को अवैध करार किया।उन्होंने कॉलेज में दुबारा दाखिला लिया लेकिन इस कम में उनका एक वर्ष बर्बाद हो गया।जिस समय रामलखन सिंह गुरूकुल के छात्र थे उनका विवाह परमेश्वरी देवी के साथ हो गया। परमेश्वरी देवी एक कर्त्तव्यपरायण महिला थीं। उन्होंने पूरी शालीनता के साथ अपनेपति का साथ दिया। उनके पाँच बच्चे हुये। पहली पुत्री का नाम उषा, दूसरी का नाम प्रभा, तीसरे पुत्र का नाम सतीश, चौथे पुत्र का नाम नीतीश एवं पाँचवीं पुत्री का नाम इन्दू था। इन बच्चों की परवरिश में माँ की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी। वह अपने बच्चो के लालन-पालन के साथ-साथ अपने पति के राजनीतिक एवं सामजिक गतिविधियों में भी अपने ढंग से सहयोग करती रहीं। पति के स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में जेल चले जाने पर उनके ऊपर परिवार चलाने का सारा दायित्व चला आता था |रामलखन सिंह शुरू से ही महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों में भाग ले रहे थे। 1934 ई. में वे कल्याणबिगहा से बख्तियारपुर आ गये। उससमय भी कांग्रेस के प्रति उनका प्रेम बना रहा। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता विधिवत ग्रहण कर ली थी। अस्तु पटना जिला प्रशासन के रकार्डस में उनका नाम दर्ज किया गया था और उनके ऊपर विशेष नजर रखी जा रही थी। इससे उनका मनोबल टूटा नहीं। वे स्थानीय लोगों को संगठित करते रहे और गाँधी के आजादी के संदेश को फैलाते रहे।रामलखन सिंह ने जीविकोपार्जन के लिए बख्तियारपुर में एक छोटे सेआयुर्वेदिक चिकित्सालय की स्थापना की। बहुत ही कम समय में ही उन्होंने एक छोटा एकमहला मकान खरीदा। इसी मकान के आगे वाले कमरे में उन्होंने दवाखाना खोला और एक वैद्य के रूप में प्रैक्टिस करना भी शुरू किया। उस समय पूरे बख्तियारपुर शहर में वे एकमात्र वैद्य थे। अपने पिता की तरह गरीब मरीजों के प्रति रहमदिली के कारण वे अगल-बगल के इलाके में भी लोकप्रिय हो गये और बड़ीसंख्या में लोग उनके घर पर जुटने लगे।वैद्य रामलखन सिंह सादगी और सहजता की प्रतिमूर्ति थे। उनका मानना था कि व्यक्ति को हर तरह के बाह्याडम्बर से दूर रहना चाहिए और अपनी आकांक्षा को एक सीमा से आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। माया और मोह विनाश का कारण बनता है, इसलिए मनुष्य को उसके पीछे भागना नहीं चाहिए। बख्तियारपुर में एक छोटे से मकान के अतिरिक्त उन्होंने खेती करने योग्य जमीन के कुछ टुकड़े भी खरीदे। कल्याणबिगहा में भी उन्होंने कुछ जमीन खरीदा लेकिन अपने नाम पर नहीं। इस जमीन को उन्होंने अपने पिता के नाम से खरीदा। कुछ बहुत निकट संबंधियों ने उनके इस कदम कोमूर्खतापूर्ण माना और कहा कि आगे चलकर जब इस जमीन का बंटवारा होगा तो उसमें उनके भाई का हिस्सा होगा। उनके बड़े भाई को लोग पुजारीजी कहकर संबोधित करते थे। पुजारीजी ने कभी भी परिवार के दायित्व को अपने ऊपर नहीं लिया और वे हमेशा तीर्थ यात्रा में ही लगे रहते थे। रामलखन सिंह ने शुभचिन्तकों की सलाह को नजरअंदाज कर दिया और कहा कि परिवार एक है। वे कभी भी अपने नाम से जमीन खरीदना सोच भी नहीं सकते थे। यदि वे वैसा करते तो परिवार को बाँटने के अपराधी होते। चालीस वर्षों से अधिक वे बख्तियारपुर में रहे लेकिन उन्होंने कभी भी संपत्ति अर्जित करनेके विषय में नहीं सोचा। जब उनके बच्चे बड़े होन लगे तब उन्होंने उसी पुराने एकमहले मकान के ऊपर दूसरे तल्‍ले का निर्माण करवाया।1936 ई. में रामलखन सिंह ने पटना जिला से कांग्रेस डेलीगेट के चुनाव मेंप्रसिद्ध नेता शीलभद्र याजी को पराजित किया। उसी समय बख्तियारपुर में जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ किसानों का प्रतिरोध शुरू हुआ। किसानों का साथ समाजवादी एवं साम्यवादी नेतागण दे रहे थे।रामलखन सिंह ने भी किसानों के प्रति अपनी पुरी सहानुभूति का प्रदर्शन किया लेकिन वे चाहते थे कि किसान अपने विरोध का प्रदर्शन कांग्रेस के नेतृत्व में ही करें। कांग्रेस ही किसानों की समस्या का समाधान कर सकती थी। वे कभी भी कांग्रेस की परिधियों से बाहर नहीं जाना चाहते थे। यद्यपि समाजवादी और साम्यवादी नेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध अत्यंत मधुर थे। उनके हृदय में जमींदारी प्रथा के प्रति कोई विशेष आक्रोश नहीं था।रामलखन सिंह का घर देखते ही देखते कांग्रेसी नेताओं का पड़ाव स्थल बन गया। बड़ी संख्या में कांग्रेसी उनके घर पर जुटते और भावी योजना तैयार करते। प्रांतीय नेता उनके घर आते और चाय पीते, जब वे पटना से कहीं आ जा रहे होते। इन व्यस्तताओं के बीच भी वैद्य रामलखन बाबू अपने मरीजों को भी देख लेते। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने अत्यंत सक्रियता के साथ भाग लिया। उन्होंने अपनी प्रैक्टिस छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। उनकी निष्ठावान पत्नी परमेश्वरी देवी को समझ में नहीं आया कि वे किस तरह से अपने बच्चों का पालन-पोषण करें। उनके ससुर किशोरी शरण सिंह चार वर्ष पहले गुजर गये थे। उन्होंने हिम्मत से काम लिया।1947 ई. में देश आजाद हुआ और 1952 ई. में देश में पहला आम चुनाव हुआ। रामलखन सिंह की कांग्रेस के प्रति निष्ठा एवं प्रतिबद्धता को देखकर यह आसानी से कहा जा सकता था कि बख्तियारपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र या विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रस का कोई योग्यतम प्रत्याशी थे तो वह रामलखन सिंह थे। सीधे-सादे हृदय के रामलखन सिंह कांग्रेस की सियासी खेल को नहीं समझ सके। पटना पूर्वी लोकसभा क्षेत्र के लिए उनका नाम काटकर तारकेश्वरी सिन्हा का नाम आगे बढ़ा दिया गया। यहाँ तक बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया। उनके स्थान पर लाल बहादुर शास्त्री की बहन सुन्दरी देवी को टिकट दिया गया। वे मर्माहत हुए फिर भी उन्होंने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने व्यक्तिगत हितों की कुर्बानी दी और सुन्दरी देवी को विजयी बनाने के लिए दिलोजान से मेहनत किया। सुन्दरी देवी भारी मतों से विजयी हुयीं। वे चाहते तो निर्दलीय सदस्य के रूप में चुनाव लड़कर विधानसभा आसानी से पहुंच सकते थे लेकिन उन्होंने वैसा कभी नहीं किया। एक समर्पित सिपाही की तरह वे अपने कर्त्तव्य कापालन करते रहे।1957 ई. में जब भारतीय राजनीति के क्षितिज पर कांग्रेस के दो घटक जब आपस में टकरा रहे थे तो रामलखन सिंह की बातों को सुननेवाला कोई नहीं था। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं के द्वारा किये गये वायदे को याद दिलाया लेकिन एक बार पुनः वे टिकट मिलने से वंचित रह गये। उनके सब्र का बाँध टूट गया और कांग्रेस के प्रति विरक्ति का भाव सा पैदा हो गया। उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया एवं कुटिल नेताओं को सबक सिखाने का निश्चय किया। उनका साथ स्थानीय नेता आचार्य जगदीश ने दिया। वे अब रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह की जनतापार्टी में शामिल हो गये। उन्हें जनता पार्टी ने बाढ़ विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी घोषित किया।रामलखन सिंह जानते थे कि उनके जीतने की उम्मीद कम है लेकिन वे कांग्रेस प्रत्याशी सुन्दरी देवी को पराजित करने में सफल रहे। निश्चित रूप से वे 1952 से लेकर 57 के बीच कांग्रेस की राजनीति काशिकार हुए। वैद्य रामलखन सिंह अपने अधूरे सपने को अपने पुत्र के द्वारा साकार करने की सोचते थे।लेकिन वह यह भी चाहते थे कि उनका पुत्र पहले अपनी इंजिजियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ले। वैद्यरामलखन सिंह एक कर्मठ सिद्धांतवादी योद्धा थे। जिन दिनों बिहार में संपूर्ण क्रांति का आंदोलन पूरे उफान पर था वे एक दिन बिना किसी को कुछ कहे पटना स्थित जयप्रकाश नारायण के निवास स्थल महिला चर्खा समिति पहुँचे। जयप्रकाश उन्हें आजादी के संघर्ष के दिनों से पहचानते थे और आजादी केएक दशक के राजनीतिक हलचल में उनकी भूमिका से भी परिचित थे। रामलखन सिंह ने उनसे कहाकि वे कांग्रेस के साथ बहुत लंबे समय तक जुड़े रहे यहाँ तक कि वे जयप्रकाश से भी ज्यादा समयतक कांग्रेस में रहे और उसे अपना सब कुछ समर्पित किया। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें कभी उचित स्थाननहीं दिया और आजादी के बाद की सरकारों ने सारे आदर्शों को ताख पर रख दिया। उन्होंने जयप्रकाश को अपने पूरे समर्थन का आश्वासन दिया।वैद्य रामलखन सिंह के इच्छानुसार कुछ हुआ भी ऐसा ही। वर्षों बाद नीतीश कुमार बाढ़ संसदीय क्षेत्र से चार बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, तारकेश्वरी सिन्हा को पराजितकिया। उन्होंने भारत सरकार में मंत्री के पद को सुशोभित किया। वे कई वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री हैंएवं बिहार को विकास के क्षितिज पर पहुँचाने का काम किया है।वैद्य रामलखन सिंह ने राजनीति के अतिरिक्त सामाजिक एवं शैक्षणिकगतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने कुछ अन्य समाजसेवियों के साथ मिलकरबख्तियारपुर में श्रीगणेश हाई स्कूल की स्थापना की और स्वयं उस स्कूल के वर्षों तक सचिव भी रहे।वे जनसाधारण के कष्टों को सुनते और प्रयास करते कि उनका अधिकाधिक निवारण हो जाए। 29नवम्बर 1978 ई. को उनकी मृत्यु हो गयी।

https://youtu.be/pBmhsXhWq4I

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