आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 04 नवम्बर 2022 : सबसे पहले तो अनर्थ जो जीवन तथा जीवन के व्यवहार में जिस कारण से होता हो उस पर अंकुश लगाएं। अहंकारमय जीवन न हो। जरूर हम करते हैं लेकिन कराने वाला उसी प्रकार से हैं जैसे किसी कठपुतली के नाच को देखा होगा। भले वह नाचते हैं लेकिन नचाने वाला कोई दूसरा है। उसी के इशारे पर कठपुतली नाचता है। ठीक उसी प्रकार हमारे आपके साथ है। हम चाहे जो कुछ भी करते हैं वह परमात्मा अपनी शक्ति के द्वारा हमलोगों को कठपुतली के समान नचाते हैं। उनकी इच्छा नही होती है नचाने के लिए तो अपने आप से तो इस दुनिया में निस्तार हो जाते हैं। किसी के योग्य नही होते हैं। ऐसा विचार कर अनर्थों को त्याग दे। कर्तव्य करें, लेकिन मैं ही करने वाला हूं, मेरे ही द्वारा होता है। ऐसा भाव नही होना चाहिए। 

गुरू केवल कोई एक व्यक्ति,शरीर नही, गुरू एक व्यक्ति के अलावा एक दिव्य संदेश, एक उपदेश होता है।

गुरू और ईश्वर में भक्ति होनी चाहिए। गुरू हमारे जीवन का वह कंडिशन हैं, वह  एक स्थिति हैं, वह एक स्तर हैं जिसके माध्यम से हम अपने भटके भूले, अटके जीवन को समाधान करने में प्रयाप्त हो जाते हैं। गुरू केवल कोई एक व्यक्ति और केवल शरीर नही, गुरू एक व्यक्ति के अलावा एक दिव्य संदेश होता है। एक उपदेश होता है, एक दिव्य आदेश होता है। एक दिव्य आचरण होता है, जिसके द्वारा हम प्रशस्त मार्गों के अधिकारी होते हैं। व्यवहारिक रूप में गुरू शब्द का मतलब जिसके संरक्षण, छत्रछाया, संवर्धन या जिनके सहवास से हमारे जीवन की किसी प्रकार की जो अधूरापन हो, किसी प्रकार की खामियां हो उन खामियों पर हम अफसोस करें, पश्चाताप करें और अपने जीवन में अच्छे मार्गों पर चलने के लिए संकल्प करें, बाध्य हो जाएं,  ऐसे जिसके द्वारा आदेश प्राप्त होता हो, संदेश प्राप्त होता  हो, चाहे वह धोती कुर्ता में रहने वाला हो चाहे वह गेरूआ कपड़ा वाला हो उसी का नाम गुरू है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !! Copyright Reserved © RD News Network