आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 22 फरवरी 2022 : पंचायत चुनाव में मतदानकर्मियों के खाने और दूसरे व्यवस्थाओं को लेकर किस तरह पैसों का खेल हुआ, इसकी पोल खुल गई है। चुनाव के दौरान मतदान और पुलिसककर्मी पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल के सिर्फ 13 जिलों में खाने पर सात करोड़ रुपए खर्च किए गए। इससे भी चौंकानेवाली बात यह है कि इस राशि का बड़ा हिस्सा सिर्फ जलेबी और दूसरे मिठाइयों के खाने पर खर्च किए गए। हाल में संपन्न हुए बिहार पंचायत चुनाव में बेतहाशा खर्च किया गया। शानो-शौकत ऐसी कि बिहार के एक कोने में होनेवाले चुनाव में राज्य के दूसरे कोने से खाना खिलाने वाले वेंडर आए तो उत्तर प्रदेश भी टेंट-शामियाना मंगवाया गया। चुनाव में हुए खर्च का जो बिल जमा किया गया है, इसके एवज में जमा किए गए कई बिलों में जीएसटी नंबर भी नहीं है और सीरियल नंबर भी गलत निकला है।

चौंकानेवाली बात यह है कि बिहार के सीमाओं से जुड़े इन जिलों के लिए जिन वेंडरों को टेंडर दिया गया, उनमें अधिकतर पटना के रहनेवाले हैं। तात्पर्य यह है कि पटना से इन जिलों के लिए खाने के सामान पहुंचाए गए। यहां दरभंगा के वेंडर से खाने की आपूर्ति करवाई गई थी। भोजन और नास्ता भी साधारण किस्म का था। चुनाव के दौरान सर्वाधिक खर्च भी इसी जिले में लगभग 13 करोड़ रुपये हुआ। जिन 13 जिलों में सात करोड़ रुपए खाने पर खर्च किए गए, उनमें सिर्फ सहरसा जिले से ही दो करोड़ रुपए के खाने के बिल जमा किए गए हैं. यहां दरभंगा के वेंडर से खाने की आपूर्ति करवाई गई थी। भोजन और नास्ता भी साधारण किस्म का था। चुनाव के दौरान सर्वाधिक खर्च भी इसी जिले में लगभग 13 करोड़ रुपये हुआ। वहीं पूर्णिया में खाने पर 1.20 करोड़ खर्च किए गए। जमा किए गए कई विपत्रों पर जीएसटी नंबर नहीं है, जबकि लेखा विभाग के प्रावधान के अनुसार बिल पर जीएसटी नंबर होना जरूरी है। पंचायत चुनाव के दौरान सबसे कम खर्च लखीसराय जिले में हुआ, लेकिन यह छोटा जिला भी है।

खाने के बिल में गड़बड़ी के रहस्य से पर्दा नहीं उठे, इस कारण अधिसंख्य वरीय अधिकारियों ने लोकल वेंडर को काम दिया ही नहीं। टेंट, शामियाना व अन्य सामग्री की आपूर्ति करने वाले अधिसंख्य वेंडर पटना के थे। इस वेंडर की सेटिंग इतनी मजबूत थी कि एक साथ उसने कई जिलों में आपूर्ति का काम किया। हैरानी तो इस बात की है कि एक जिले में उत्तर प्रदेश के वरीय अधिकारी तैनात थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के वेंडर का विपत्र जमा करवाया। इसने टेंट-शामियाने से लेकर खाने तक की आपूर्ति की।

चुनाव में मनमाने तरीके से खर्च करने का मामला सिर्फ पंचायत चुनाव में ही नहीं हुआ है। इससे पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी फर्जी बिल जमा करने का मामला सामने आया था। बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए पटना जिले में 7346 मतदान केंद्र बनाए गए थे। इसके लिए अर्द्धसैनिक बलों की 215 कंपनियां आई थीं। इन्हें ठहराने के लिए 400 जगह चिह्नित किए गए थे। यहां हुए खर्च के लिए एजेंसियों ने 42 करोड़ रुपये का बिल दे दिया था। बाद में सत्यापन कमेटी ने इसे घटाकर 31 करोड़ 40 लाख कर दिया।

सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश और पटना से सामान ढोकर लाने में काफी अधिक किराया लगता है। ऐसे में उस वेंडर ने किस स्थिति में काम किया होगा, यह सोचने वाली बात है। इन खर्च के बिल के सामने आने के बाद बिहार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी भी हैरान हैं। उन्होंने कहा है कि मामले की जांच कर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। वैसे, यह काम चुनाव आयोग का है।

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