आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 19 फरवरी 2024 : प्रख्यात श्रीवैष्णव परिव्राजक संत श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी ने रोहतास के परसथुआं में आयोजित श्रीलक्ष्मीनारायण महायज्ञ में श्रद्धालुओं को संबोधित अपने प्रवचन में कहा कि कथा जीवन का संविधान है, उसे संस्कारित करती है। प्रवचन के द्वितीय दिन मानव जीवन और कथा की आवश्यकता पर बोलते हुए पूज्य स्वामी जी ने कहा कि कथा कुमार्ग पर भटके या भटकने को प्रस्तुत मनुष्य को सत्पथ पर लाती है। उन्होंने कहा कि एक दुर्दांत अपराधी को नियंत्रण में लाने के लिए व्यवस्था और समाज अनेक प्रयत्न करते हैं करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। लेकिन कथा में, सत्संग में, यज्ञ में शामिल कर यदि उसका हृदय परिवर्तन कर दिया जाय तो समाज का कितना भला होगा। कथा संसाधनों के सदुपयोग की प्रेरणा देती है।

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क्रूर डाकू रत्नाकर कै महर्षि वाल्मीकि बनने की कथा कै माध्यम से स्वामी जी ने बताया कि सप्त ऋषियों के सत्संग, प्रेरणा और राम मंत्र नै रत्नाकर डाकू को महर्षि वाल्मीकि बना दिया। वै अनंतकाल तक भगवान राम की संतति के शिक्षक और आदि कवि कै रुप में अनंतकाल तक कै लिए प्रतिष्ठित हो गए। स्वामी जी ने डाकू अंगुलिमाल को महात्मा बुद्ध और संत तुलसीदास को उनकी धर्मपत्नी रत्नावली द्वारा दिए गए उपदेश और उलाहना का उल्लेख करते हुए बताया कि बिना आत्म बोध के व्यक्ति का जीवन नहीं सुधरता। यज्ञ, तप, दान यह सब समाधान की प्रक्रिया हैं। जब हम अपने मन, वाणी, इन्द्रियों और आत्मा सै किए गए कर्मों को परमात्मा को अर्पित कर दैतै हैं तब कल्याण हीं कल्याण होता है।

स्वामी जी ने उद्धव, विदुर और दत्तात्रेय जी का उदाहरण देकर समझाया कि जीवन को सफल करने में गुरु का अत्यंत महत्व है। गुरु आत्मा और परमात्मा कै बीच संपर्क और संचार का माध्यम है। व्यक्ति गुरु को अपनी आत्मा समर्पित कर उनकी कृपा से इहलोक मैं सुखी जीवन व्यतीत कर अंतत: ईश्वर को प्राप्त करता है। संस्कृत भाषा को सनातन संस्कृति कै समस्त ज्ञान विज्ञान की संरक्षिका बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि इस भाषा में लिखै ग्रंथों में जीवन कै शाश्वत सूत्र संरक्षित हैं। कथा इन्हीं सूत्रों से हमें अवगत कराती है। हमारा जीवन सफल बनाती है। देवर्षि नारद की प्रेरणा से महर्षि वेदव्यास द्वारा श्रीमद्भागवत की रचना की पूर्व परिस्थितियों की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि महान उद्देश्य और तदनन्तर ईश्वर की प्राप्ति कै लिए समर्पित उत्कंठा एवं समर्पण आवश्यक है। साथ हीं मर्यादा और संस्कार भी आवश्यक हैं जिनके अभाव में देव याजक महापंडित त्रिलोक विजेता रावण का सर्वनाश हो गया। वास्तविक धर्म की व्याख्या करते हुए स्वामी जी नै कहा कि वास्तविक धर्म मानव धर्म है जो पचास हजार करोड़ वर्ष पूर्व सृष्टि कै प्रारंभ से शुरू हुआ। बाकी सभी प्रचलित मान्यताएं दर्शन हैं जो मूल धर्म कै इच्छित सिद्धांतों को लेकर बने हैं। दर्शन किसी व्यक्ति द्वारा किसी विशेष मान्यता कै आधार पर प्रवर्तित किया गया होता है जिसके शुरू करने वाले का नाम और समय सबको ज्ञात है। किन्तु मूल धर्म सृष्टि का धर्म है जिसे किसी मनुष्य नै शुरू नहीं किया और वही सनातन है, सत्य है। स्वामी जी कै परमशिष्य जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्रीअयोध्यानाथ स्वामी, श्री मुक्तिनाथ स्वामी, श्री वैकुंठनाथ स्वामी एवं श्री पुण्डरीक स्वामी जी नै अपने प्रवचन में विभिन्न शास्त्रों कै व्यावहारिक उद्धरणों सै धर्ममय जीवन की सफलता कै सूत्र बताए ।

प्रवचन में आयोजन समिति अध्यक्ष मंजीव मिश्र, स्वामी जी कै परम भक्त रमेश तिवारी टाईगर, मुखिया अमरेन्द्र कुमार सिंह उर्फ चट्टान जी, ओम प्रकाश गुप्ता, अनिल तिवारी, चिण्टू शुक्ल सहित हजारों श्रद्धालु-भक्त उपस्थित थे।

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