साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए कबीर मठ जैसी संस्था का विकास आवश्यक है – अशोक चौधरी
सद्गुरु कबीर ने प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनाने के लिए अंतिम संदेश दिया – हृदय नारायण झा
आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 07 जनवरी 2023 : पटना । कबीरपंथी आश्रम के सद्गुरु कबीर साईं मन्दिर में नव वर्ष के अवसर पर आयोजित सात दिवसीय कबीर कथा के सातवें दिन कथा व्यास योग विशेषज्ञ श्री हृदय नारायण झा का व्यास पीठ पर स्वागत एवं व्यास पूजन महन्थ ब्रजेश मुनि महाराज, विवेक मुनि, विशिष्ट अतिथि बिहार विधान सभा के सचेतक रत्नेश सादा, पूर्व विधायक सतीश कुमार, सायण कुणाल ने किया।
कथा विश्राम के मुख्य अतिथि राज्य के भवन निर्माण मन्त्री अशोक चौधरी ने कहा – वर्तमान में जाति धर्म भेद भाव से मुक्त समाज मे प्रेम और सौहार्द का वातावरण कायम करने के लिए कबीर मठ जैसे संस्था का विकास आवश्यक है। मंत्री जी ने कबीरपंथी आश्रम मीठापुर का सामुदायिक कल्याण की दृष्टि से विकास के लिए हर संभव सहयोग का वचन दिया।
सद्गुरु कबीर प्राकट्य धाम लहरतारा के संत अनुपम साहेब ने गाया – तेरी शरण में आके मैं धन्य हो गया हूँ। भाव विभोर हुए श्रोता श्रद्धालु।
सातवें दिन कथा के अंतिम सत्र में हृदय नारायण झा ने कहा कि हिंदू के देवता मुसलमान के पीर थे संत कबीर समाज में जो भ्रांति थी काशी में मरने से हैं स्वर्ग प्राप्त होता है लेकिन सतगुरु कबीर साहिब ने बताया कि यह भ्रांति हैं क्योंकि परमात्मा को बजने वाला व्यक्ति चाहे काशी में मरे या मगहर में मरे या अपने घर में मरे उन्हें स्वर्ग और मोक्ष जरूर मिलता है इसीलिए सदगुरु कबीर साहिब ने कहा क्या काशी क्या मगहर उसर जो ह्रदय राम बस मोरा जो काशी तनत बजे कबीरा राम कोन निहारा इसीलिए सदगुरु कबीर साहेब ने जो समाज में भ्रातीय थी उसे मिटाने के लिए काशी छोड़ा अपने शिष्यों के साथ संवत १५७५ में माघ शुक्ल एकादशी को मगहर के लिए प्रस्थान किए वास्तव में सद्गुरु कबीर को मगहर का कलंक मिटाना था सदगुरु ने उसर मगहर को हरा-भरा करने हेतु आमी नदी को प्रकट किया लगभग १० महीने की सदगुरु कबीर मगहर में रहे अंत में सतगुरु कबीर ने हिंदू मुसलमान सभी शिष्यों को अंतिम संदेश सुनाया प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनाने के लिए काहा
पश्चात सद्गुरु कुटीर में प्रवेश आसन पर लेट गए शिष्य ने उन्हें चादर ओढाई द्वार बंद किया शिष्य बाहर आए सभी शिष्य अंतिम क्रिया हेतु विचार करने लगे हिंदू अग्नि संस्कार करना और मुसलमान दफनाना चाहते थे दोनों ने सद्गुरु पर अपना अधिकार बताया वह सद्गुरु का अंतिम संदेश भूल गए दोनों में युद्ध ठन गया उसी समय आकाशवाणी हुई- खोलो परदा हे नहीं मुरदा युद्ध अवस्था कर डाली यह सुनते ही सब स्तब्ध हो गए उन्होंने अंदर जाकर देखा चादर के नीचे केवल पुष्पों का देर था शरीर नहीं था हिंदू और मुसलमानों ने चादर और फूलों को आधा-आधा बांट लिया हिंदू – शिष्यों ने विधिपूर्वक फूलों की समाधि बनवाई मुसलमानों ने मजार बनाई आज भी समाधि और मजार सद्गुरु कबीर की लीला की गवाही देते हुए को प्रेम और एकता का संदेश देती है।