सरसों तेल की आसमान छूती कीमत को देख किसानों ने बक्सर जिले में 2 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सरसों की खेती की है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली सरसों की उपज से किसानों की आर्थिक हालात सुधरेंगे. साथ ही खाद्य तेल की कीमतों में भी गिरावट आएगी. पढ़ें रिपोर्ट..
आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 24 जनवरी 2022 : बक्सर: इस साल किसानों ने गेहूं की पारंपरिक खेती को छोड़ बड़े पैमाने पर बक्सर में सरसों की खेती की है. जिसे देख कृषि विभाग के अधिकारी से लेकर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक गदगद हैं. आसमान छूती सरसों तेल की कीमत को देखते हुए कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिए जिले में किसानों ने 2 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर जिले के ग्यारह प्रखंडों में सरसों फसल की खेती की है. जिसको देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जब किसानों की खेतों में फसल तैयार हो जाएगा तो खाद्य तेल की कीमत में गिरावट आएगी और लोगों को महंगाई से राहत मिलेगी.
वहीं, जिले के किसान सरकार की दोहरी नीति से नाराज हैं. जिले के किसानों की माने तो मई-जून 2021 में जहां सरसों ₹ 9000 प्रति क्विंटल बाजारों में बिक रहा था, लेकिन जब किसानों के खेतो में फसल तैयार होने का समय आया तो सरकार ने उसका कीमत 5,500 रुपए प्रति क्विंटल फिक्स कर दी है. जिसका आर्थिक नुकसान किसानों को उठाना पड़ेगा. खाद्य तेल की बढ़ती कीमत को देख इस बार जिले के कई किसानों ने 2000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर लाही और सरसों फसल की खेती की है. ताकि महंगे दाम में खाद्य तेल न खरीदना पड़े, जिस किसान के द्वारा 5 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच सरसों फसल की बुवाई की गई है. उनकी फसल तैयार होने की कगार पर है. लेकिन, अधिकांश किसानों ने धान की फसल कटने के बाद सरसों फसल की बुवाई किया है, जिनके फसल पर माहू किट का प्रकोप भी मंडराने लगा है. जिसको देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक ग्रामीण इलाकों का दौरा कर माहू किट से सरसों फसल को बचाने के लिए रासायनिक दवाओं का छिड़काव करने की सलाह किसानों को दे रहे हैं.
जिले के सदर प्रखंड के जगदीशपुर पंचायत के किसान लालबिहारी गोंड़ ने बताया कि 22 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से 2 एकड़ भूमि मालगुजारी पर जमींदार से लिया था, जिसमें सरसों फसल की खेती किया है. फसल में दाना भी आ गया है, लेकिन सरकार की दोहरी नीति के कारण इस साल भी किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा.
”जब अक्टूबर महीने में फसल की बुवाई किया था. उस समय बाजारों में सरसों की कीमत ₹8,800 प्रति क्विंटल था, लेकिन जब किसानों की फसल तैयार हो गया, तो सरकार ने सरसों की दर 5,500 प्रति क्विंटल निर्धारित कर दी है. ऐसे में किसानों की आर्थिक हालात कैसे सुधरेगी. व्यापारियों पर सरकार कोई अंकुश नहीं लगाती है. किसानों के हाथों से जब फसल निकल जाती है, तो उसकी कीमत दोगुनी हो जाती है और जब किसान को बेचना रहती है तो सरकार मालिक बनकर दर निर्धारित कर देती है.”- लालबिहारी गोंड़, किसान
किसानों के खेतों में लहलहाते सरसों की फसल को देख कृषि वैज्ञानिक भी गदगद है. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर देवकरण सिंह ने बताया कि इस साल बड़े पैमाने पर जिले के सभी प्रखंडों में किसानों ने सरसों फसल की खेती की है. जिसके दो फायदे किसानों को मिलेंगे. एक फसल चक्र प्रणाली अपनाने से खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ती है और दूसरा जिस खेत में किसान सरसों की फसल की खली खाद के रूप में इस्तेमाल कर देते हैं. उस खेत की किसी भी फसल में मिट्टी जनित या वायु जनित रोग का कोई प्रभाव नहीं दिखता है.
”कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली इस फसल से किसानों के आर्थिक हालात सुधरेंगे. 5000 से लेकर 6000 रुपए प्रति क्विंटल सरसों की बिक्री हो रही है, जिन किसानों ने अक्टूबर माह में सरसों की बुवाई कर दी, उनकी फसल पर रस चूसक कीटों का कोई प्रभाव नहीं है, लेकिन इस जिले को पूरे देश मे धान उत्पादन के लिए जाना जाता है. अधिकांश किसानों ने धान की फसल काटकर सरसों की बुवाई की है. जिनकी फसल पर लाही का प्रकोप दिखाई दे रहा है. कृषि वैज्ञानिकों की टीम निरन्तर अलग-अलग गांवों का दौरा कर किसानों को उचित सलाह दे रही है, जिससे अन्नदाताओं को किसी तरह की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े.”-डॉक्टर देवकरण सिंह, कृषि वैज्ञानिक
गौरतलब है कि जिले में 2 लाख 9 हजार रजिस्टर्ड किसान है. 1 लाख 6 हजार हेक्टेयर भूमि पर रबी फसल की खेती की गई है. बड़े पैमाने पर सरसों फसल की खेती को देखकर अभी से ही यह कयास लगाई जा रही है कि जब किसानों के खेतों में सरसों की फसल तैयार हो जाएगा, तो खाद्य तेल की कीमतों में गिरावट आएगी और लोगों को महंगाई से राहत मिलेगी.