रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 15 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भले ही आरजेडी को 25 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल की कुर्सी दे दी हो, लेकिन असली तस्वीर कहीं अधिक चौंकाने वाली है। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि इन 25 में से 15 सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी की जीत का अंतर 10,000 वोट से कम है। यानी हल्का-सा वोट स्विंग भी इन सीटों को विपक्ष को सौंप सकता था। यदि ये 15 सीटें निकल जातीं—तो आरजेडी महज 10 सीटों पर सिमटकर रह जाती।

पतली बढ़त क्यों खतरनाक संकेत है?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कम मार्जिन वाली जीत यह दर्शाती है कि संबंधित क्षेत्र में पार्टी का जनाधार कमजोर हो रहा है। जहाँ बड़े स्तर पर आवेग या नाराज़गी हो, अगला चुनाव इन सीटों को आसानी से हाथ से निकाल सकता है।

इस चुनाव ने साफ दिखा दिया कि आरजेडी अपनी पारंपरिक वोटबैंक पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह पा रही है।

M–Y समीकरण भी कमजोर पड़ा

इस चुनाव में कई जगह मुस्लिम–यादव (M-Y) समीकरण अपेक्षा के अनुरूप सक्रिय नहीं दिखा।

•             कोसी क्षेत्र में आरजेडी का जनाधार खिसकता दिखा।

•             मगध में वोट ट्रांसफर कमजोर रहा।

•             मिथिलांचल में नए युवा मतदाताओं ने अन्य विकल्पों को चुना।

पार्टी जिस सामुदायिक समर्थन पर वर्षों से भरोसा करती आई है, वह इस बार पूरी ताकत से सक्रिय नहीं दिखा।

 अगर 5–6 बूथों पर वोटिंग ज्यादा हो जाती…

आरजेडी की कई सीटों पर जीत का अंतर इतना कम है कि

•             सिर्फ कुछ बूथों पर अधिक मतदान,

•             थोड़े से स्थानीय मुद्दों का असर,

•             या उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि का फर्क

नतीजों को पूरी तरह उलट सकता था।

यानी परिणामों की यह सतह “मजबूत जनादेश” नहीं, बल्कि “हाशिये की जीत” है।

आरजेडी के लिए चेतावनी

यह चुनाव एक बड़ा संकेत है कि जनता अब सिर्फ जातिगत समीकरणों से वोट नहीं कर रही।

अब भूमिका निभाती है—

✔ उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि

✔ स्थानीय मुद्दे

✔ विकास की विश्वसनीयता

✔ युवाओं और महिलाओं का रुझान

इस बार दोनों वर्गों ने आरजेडी को उतना समर्थन नहीं दिया, जितनी उम्मीद पार्टी को थी।

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