रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : सीता भारतीय नारी-भावना का चरमोत्कृष्ट निदर्शन है, जहाँ नाना पुराण निगमागमों में व्यक्त नारी आदर्श सप्राण एवं जीवन्त हो उठे हैं । नारी पात्रों में सीता ही सर्वाधिक, विनयशीला, लज्जाशीला, संयमशीला, सहिष्णु और पातिव्रत की दीप्ति से दैदीप्यमान नारी हैं । समूचा रामकाव्य उसके तप, त्याग एवं बलिदान के मंगल कुंकुम से जगमगा उठा है । सीता एक ओर भारतीय आदर्श पत्नी है, जिनमें पति-परायणता, त्याग, सेवा, शील और सौजन्य है, तो दूसरी ओर वे युग-जीवन की मर्यादा के अनुरूप श्रमसाध्य जीवन-यापन में गौरव का अनुभव करने वाली नारी हैं।

जीव व ब्रह्म को उदर में धारण करने वाली नारी परमसत्ता की अत्यंत समर्थ, कोमल व निर्दोष अभिव्यक्ति है। मंत्रदृष्टा ऋषिकाओं से लेकर आधुनिक भारत के सृजन में मातृ सत्ता का अतुलनीय योगदान है …। परिवार के केन्द्र में नारी है। परिवार के सारे घटक उसी के चतुर्दिक घूमते हैं, वहीं पोषण पाते हैं और विश्राम। वही सबको एक माला में पिरोये रखने का प्रयास करती है। किसी भी समाज का स्वरूप वहाँ की नारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि उसकी स्थिति सुदृढ़ एवं सम्मानजनक है तो समाज भी सुदृढ़ एवं मजबूत होगा। भारतीय महिला सृष्टि के आरंभ से अनन्त गुणों की आगार रही है। पृथ्वी की सी सहनशीलता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की गम्भीरता, पुष्पों जैसा मोहक सौन्दर्य, कोमलता और चन्द्रमा जैसी शीतलता महिला में विद्यमान है। वह दया, करूणा, ममता, सहिष्णुता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। बाल्यावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त वह हमारी संरक्षिका बनी रहती है। सीता, सावित्री, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महान नारियों ने इस देश को अलंकृत किया है। निश्चित ही महिला इस सृष्टि की सबसे सुन्दर कृति तो है ही, साथ ही एक समर्थ अस्तित्व भी है। वह जननी है, अतः मातृत्व महिमा से मंडित है। वह सहचरी है, इसलिए अर्धांगिनी के सौभाग्य से श्रृंगारित है। वह गृहस्वामिनी है, इसलिए अन्नपूर्णा के ऐश्वर्य से अलंकृत है। वह शिशु की प्रथम शिक्षिका है, इसलिए गुरु की गरिमा से गौरवान्वित है। महिला घर, समाज और राष्ट्र का आदर्श है। कोई पुण्य कार्य, यज्ञ, अनुष्ठान, निर्माण आदि महिला के बिना पूर्ण नहीं होता है। सशक्त महिला सशक्त समाज की आधारशिला है। महिला सृष्टि का उत्सव, मानव की जननी, बालक की पहली गुरु तथा पुरूष की प्रेरणा है। यदि महिला को श्रद्धा की भावना अर्पित की जाए तो वह विश्व के कण-कण को स्वर्गिक भावनाओं से ओतप्रोत कर सकती है। महिला एक सनातन शक्ति है। पुरातन कालीन भारत में महिलाओं को उच्च स्थान प्राप्त था। पुरूषों के समान ही उन्हें सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक कृत्यों में भाग लेने का अधिकार था। वे रणक्षेत्र में भी पति को सहयोग देती थी। देवासुर संग्राम में कैकेयी ने अपने अद्वितीय रणकौशल से महाराज दशरथ को चकित कर दिया था। याज्ञवल्क्य की सहधर्मिणी गार्गी ने आध्यात्मिक धन के समक्ष सांसारिक धन तुच्छ है, सिद्ध करके समाज में अपना आदरणीय स्थान प्राप्त किया था। विद्योत्तमा की भूमिका सराहनीय है, जिसने कालिदास को संस्कृत का प्रकाण्ड पंडित बनाने में सफलता प्राप्त की। तुलसीदास जी के जीवन को आध्यात्मिक चेतना देने में उनकी पत्नी का ही बुद्धि चातुर्य था। मिथिला के महापंडित मंडनमिश्र की धर्मपत्नी विदुषी भारती ने शंकराचार्य जैसे महाज्ञानी व्यक्तित्व को भी शास्त्रार्थ में पराजित किया था …।
उन्नत राष्ट्र की कल्पना तभी यथार्थ का रूप धारण कर सकती है, जब महिला सशक्त होकर राष्ट्र को सशक्त करें। महिला स्वयं सिद्धा है, वह गुणों की सम्पदा हैं। आवश्यकता है इन शक्तियों को महज प्रोत्साहन देने की। यही समय की मांग है। नारी के सशक्तिकरण से ही पुरुष का सशक्तिकरण संभव है। संसार की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः विश्व की सुख-शांति और समृद्धि में उनकी भूमिका भी विशेष रुप से रेखांकनीय हैं। भारतीय-चिन्तन-परम्परा में यह तथ्य प्रारंभ से ही स्वीकार किया जाता रहा है। इसलिए भारतीय-संस्कृति में नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरुपा है; देवी रुप में प्रतिष्ठित है।

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