पांच साल में 9 लाख भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता MEA

रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | नई दिल्ली | Updated: 12 दिसंबर 2025: भारत से विदेशों की ओर लगातार बढ़ता प्रवासन एक बार फिर चर्चा में है। विदेश मंत्रालय की ओर से गुरुवार को संसद में प्रस्तुत आंकड़ों ने इस विषय पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में विदेश राज्य मंत्री किर्ती वर्धन सिंह ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में तकरीबन 9 लाख भारतीय नागरिकों ने भारतीय नागरिकता त्याग दी और दूसरे देशों की नागरिकता ग्रहण कर ली।

यह आंकड़ा न केवल प्रवास के रुझान को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भारतीय नागरिकों में विदेशी पासपोर्ट अपनाने की इच्छा लगातार बढ़ रही है।

पांच साल में बढ़ती प्रवृत्ति — साल दर साल कितने भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता?

विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक डेटा के अनुसार:

• 2020 — 85,256

• 2021 — 1,63,370

• 2022 — 2,25,620 (इस वर्ष सबसे अधिक नागरिकता त्याग)

• 2023 — 2,16,219

• 2024 — 2,06,378

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2020 के बाद से विदेशी नागरिकता ग्रहण करने वाले भारतीयों की संख्या तेजी से बढ़ती गई। 2022 तो बीते दशक में सबसे ऊंचे स्तर का वर्ष रहा।

2011 से 2019 के बीच 11.89 लाख भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता

इसके साथ ही, मंत्री ने बताया कि 2011 से 2019 के बीच लगभग 11,89,194 भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता त्याग चुके थे।

इस अवधि के आंकड़े इस प्रकार हैं:

• 2011 — 1,22,819

• 2012 — 1,20,923

• 2013 — 1,31,405

• 2014 — 1,29,328

• 2015 — 1,31,489

• 2016 — 1,41,603

• 2017 — 1,33,049

• 2018 — 1,34,561

• 2019 — 1,44,017

इन संख्याओं से स्पष्ट है कि पिछले एक दशक से नागरिकता छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी है और हर साल मोटे तौर पर 1.2–1.4 लाख भारतीय नागरिकता त्याग रहे हैं।

विदेशों में रहने वाले भारतीयों की शिकायतें — 2024–25 में कुल 16,127 मामले दर्ज

राज्यसभा में प्रस्तुत दूसरे जवाब में विदेश मंत्रालय ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2024–25 में विदेशों में रहने वाले भारतीयों की कुल 16,127 शिकायतें दर्ज की गईं।

इनमें:

• 11,195 शिकायतें ‘मदद’ पोर्टल पर

• 4,932 शिकायतें CPGRAMS के माध्यम से

दर्ज हुईं।

किस देश से सबसे अधिक संकट संदेश आए?

विदेश राज्य मंत्री के अनुसार, सबसे अधिक शिकायतें मध्य पूर्व देशों से दर्ज की गईं, जहाँ बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी कामगार रहते हैं।

शीर्ष 10 देश जहाँ से सबसे ज्यादा शिकायतें मिलीं:

1. सऊदी अरब — 3,049

2. यूएई — 1,587

3. मलेशिया — 662

4. अमेरिका — 620

5. ओमान — 613

6. कुवैत — 549

7. कनाडा — 345

8. ऑस्ट्रेलिया — 318

9. ब्रिटेन — 299

10. कतर — 289

सबसे बड़ी संख्या गल्प देशों से आई, जहाँ भारतीय प्रवासियों को श्रम विवाद, पासपोर्ट जब्ती, वेतन बकाया, और अवैध भर्ती एजेंटों के धोखे जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

विदेश मंत्रालय का तंत्र — कैसे सुलझाई जाती हैं ये शिकायतें?

मंत्री किर्ती वर्धन सिंह के अनुसार, सरकार ने विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए एक “मजबूत और बहु-स्तरीय प्रणाली” विकसित की है, जिसमें शामिल हैं:

• 24×7 बहुभाषी इमरजेंसी हेल्पलाइन

• भारतीय दूतावासों में वॉक-इन सुविधा

• सोशल मीडिया के माध्यम से त्वरित सहायता

• मदद पोर्टल

• संकटग्रस्त प्रवासी कामगारों के लिए ICWF (Indian Community Welfare Fund)

उन्होंने कहा कि—

• अधिकांश शिकायतें सीधे संवाद

• नियोक्ताओं से मध्यस्थता

• स्थानीय प्रशासन से समन्वय

के जरिये जल्दी निपटा दी जाती हैं।

कुछ मामलों में देरी क्यों होती है?

मंत्री के अनुसार इन कारणों से देरी होती है:

• अधूरी जानकारी

• नियोक्ताओं का सहयोग न मिलना

• स्थानीय अदालतों में पेंडिंग केस

• दूतावास की कानूनी सीमाएँ

इन स्थितियों में ICWF के तहत पैनल वकीलों के माध्यम से प्रवासियों को कानूनी सहायता दी जाती है।

सरकार ने दोहराया — प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता

विदेश मंत्रालय ने आश्वस्त किया कि—

• प्रवासी भारतीय सहायता केंद्र

• कांसुलर कैंप

• और समर्पित संकट प्रकोष्ठ

लगातार विदेशों में भारतीयों को मार्गदर्शन, सहायता और कानूनी सहयोग प्रदान कर रहे हैं।

भारत दुनिया में सबसे बड़े प्रवासी समुदायों में से एक है, और सरकार का कहना है कि हर भारतीय नागरिक की सुरक्षा और सम्मान उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

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