रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | सासाराम | Updated: 24 नवंबर 2025:

जस्टिस सूर्यकांत – साधारण शुरुआत से देश के 53वें CJI तक

10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत का सफर भारत की न्यायपालिका में प्रेरणादायक मिसाल माना जाता है। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे सूर्यकांत ने छोटी जगह से वकालत शुरू की, लेकिन मेहनत, ईमानदारी और कानूनी समझ ने उन्हें देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुँचा दिया।

उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से LLM में “फर्स्ट क्लास फर्स्ट” प्राप्त कर अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता का भी प्रमाण दिया।

सुप्रीम कोर्ट में बड़ी भूमिकाएँ – संविधान और नागरिक अधिकारों से जुड़े फैसले

जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक और संवैधानिक मामलों की बेंच का हिस्सा रहे, जिनमें शामिल हैं:

1️⃣ अनुच्छेद 370 हटाने पर सुनवाई

सूर्यकांत उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे जिसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने की वैधता पर सुनवाई की। यह मामला स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे बड़ा संघीय और संवैधानिक प्रश्न माना गया।

2️⃣ देशद्रोह कानून (Sedition Law) पर ऐतिहासिक रोक

जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने:

• भारत में IPC की धारा 124A (देशद्रोह कानून) को फिलहाल स्थगित किया,

•             केंद्र सरकार से इसके पुनर्विचार तक नई FIR दर्ज न करने का आदेश दिया।

यह आदेश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक नई दिशा देने वाला माना गया।

3️⃣ बिहार से जुड़ा बड़ा आदेश – वोटर लिस्ट डेटा सार्वजनिक करने का निर्देश

एक महत्वपूर्ण आदेश में जस्टिस सूर्यकांत ने:

• चुनाव आयोग से 65 लाख हटाए गए मतदाताओं का पूरा डेटा सार्वजनिक करने का निर्देश दिया।

यह आदेश पारदर्शिता और लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना गया और उनके काम का सीधा “बिहार कनेक्शन” भी।

हाईकोर्ट जज से CJI तक – तेज गति से बढ़ता सफर

• 2018: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

• सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति

• 30 अक्टूबर 2024 को भारत के 53वें CJI के रूप में नामित

उनका कार्यकाल फरवरी 2027 तक चलेगा।

न्यायिक दृष्टि – नागरिक स्वतंत्रता के पक्ष में स्पष्ट रुझान

विशेषज्ञों का मानना है कि जस्टिस सूर्यकांत:

• लोकतांत्रिक अधिकार,

• राज्य शक्तियों की पारदर्शिता,

• नागरिक स्वतंत्रता

के मामलों में बैलेंस्ड और प्रोग्रेसिव दृष्टिकोण रखते हैं।

निष्कर्ष

जस्टिस सूर्यकांत का सफर केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय न्यायपालिका में:

• न्याय की मजबूती,

• नागरिक अधिकारों की सुरक्षा,

• संवैधानिक मूल्यों की निरंतरता का पर्याय है।

अनुच्छेद 370 से लेकर देशद्रोह कानून और बिहार चुनाव पारदर्शिता तक – उन्होंने कई बड़े मामलों में देश की दिशा तय करने में भूमिका निभाई है।

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