रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 22 नवंबर 2025: गुरुवार को जब नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो यह शपथ उनके पहले के सभी कार्यकालों से अलग दिखाई दी। शपथ के दौरान उनके शब्दों के उच्चारण में हल्की कठिनाई दिखी—जो पहले कभी उनके साथ नहीं हुआ।

नीतीश कुमार हमेशा आत्मविश्वास से भरे, धाराप्रवाह और प्रभावी वक्ता के रूप में जाने जाते रहे हैं। लेकिन इस बार उम्र का असर पहली बार सार्वजनिक रूप से स्पष्ट दिखा।

इसके बावजूद बिहार में एक सच्चाई जस की तस है:

👉 नीतीश कुमार अभी भी राजनीति के सबसे प्रासंगिक नेता हैं और बिहार में उनका वास्तविक विकल्प नजर नहीं आता।

 क्यों अब भी नीतीश ही सबसे महत्वपूर्ण?

1️⃣ 2005 से सत्ता का गणित – जिस पक्ष में नीतीश, सत्ता उसी की

• 2005 से अब तक जिस गठबंधन में नीतीश शामिल रहे, सत्ता वही हासिल करता रहा।

• पिछले 20 वर्षों में

✔ बीजेपी अकेले सत्ता में नहीं आ सकी

✔ आरजेडी भी अकेले सत्ता में नहीं लौटी

• सत्ता बदलती रही लेकिन सत्ता की चाबी नीतीश के हाथ में ही रही।

नीतीश बिहार की राजनीति में वह केन्द्रीय धुरी रहे हैं, जिसके बिना कोई भी गठबंधन सरकार बनाने की सोच नहीं सकता।

38 वर्षों का राजनीतिक अनुभव

नीतीश कुमार 1985 में पहली बार विधायक बने और तब से:

• केंद्र में मंत्री

• बिहार में कई बार मुख्यमंत्री

• सात पार्टियों के साथ सफर

• हर परिस्थिति में तालमेल की क्षमता

उनका लंबा अनुभव उन्हें हर राजनीतिक संकट में “डैमेज कंट्रोलर” बनाता है।

‘एंटी-इन्कम्बेंसी’ पर नीतीश का अनोखा फॉर्मूला

राज्य में 19 साल सत्ता में रहने के बाद भी:

• लोगों में नीतीश के प्रति नाराज़गी भर कम दिखाई देती है

• वजह → गठबंधन बदलकर एंटी-इन्कम्बेंसी को रीसेट कर देना

यह बिहार की राजनीति का नीतीश मॉडल है:

➡ गठबंधन बदलो

➡ राजनीति का समीकरण बदल दो

➡ जनता को नया चेहरा दिखाई दे

और ऐसे में नाराजगी सिस्टम से हटकर दूसरे साझेदारों की तरफ चली जाती है।

बीजेपी और आरजेडी – दोनों के लिए “सबसे उपयोगी समीकरण”

नीतीश कुमार एक दुर्लभ नेता हैं:

• जिन्हें आरजेडी भी स्वीकारती है

• और बीजेपी भी

• और जनता भी उन्हें “कामकाजी चेहरा” मानती है

यही कारण है कि दोनों राष्ट्रीय दलों के पास नीतीश को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम नहीं है।

जमीनी स्तर पर प्रशासनिक भरोसा

नीतीश के नाम पर:

• कानून-व्यवस्था मजबूत हुई

• सड़क, शिक्षा और पंचायत स्तर पर सुधार

• शराबबंदी जैसे सामाजिक कदम

भले राजनीतिक समीकरण बदलते रहें,

जमीनी स्तर पर लोग मानते हैं कि “काम करने वाला प्रशासन नीतीश ही देते हैं।”

बिहार में अभी कोई “तुलनात्मक चेहरा” नहीं

तेजस्वी यादव भले उभरते नेता हैं,

लेकिन:

• उम्र

• अनुभव

• प्रशासनिक पकड़

तीनों में वे अभी नीतीश से कमतर माने जाते हैं।

बीजेपी के पास भी कोई ऐसा चेहरा नहीं जो नीतीश के बराबर स्वीकार्यता रखता हो।

इसलिए फिलहाल विकल्प न होना भी नीतीश की ताकत है।

निष्कर्ष

नीतीश कुमार:

• बढ़ती उम्र

• शारीरिक चुनौतियों

• बदलते राजनीतिक समीकरणों

के बावजूद अभी भी बिहार में सत्ता का सबसे प्रासंगिक चेहरा हैं।

जब तक:

• कोई बड़ा वैकल्पिक चेहरा नहीं आता

• गठबंधन राजनीति चलती रहती है

• और नीतीश का अनुभव सबके लिए जरूरी रहता है

तब तक बिहार की राजनीति में उनकी केंद्रीय भूमिका कायम रहेगी।

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