
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 22 नवंबर 2025: बिहार की राजनीति में अब “राजा का बेटा राजा” वाली कहावत बदलकर “राजनेता का बेटा ही राजा” हो चुकी है। सत्ता अब विचारधारा, संघर्ष और जनता के भरोसे से कम, और राजनीतिक परिवारों की विरासत से अधिक संचालित दिखती है। आज हालत यह है कि पिता राज्यसभा में, मां विधानसभा में और बेटा सीधे मंत्री पद पर – और जनता हर बार बस नए चेहरे देखती रहती है।
यह तस्वीर सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे बिहार की है। बिहार विधानसभा में ऐसी करीब 24 सीटें उन नेताओं के पास हैं जिनका राजनीतिक आधार उनकी पारिवारिक पहचान है। सत्ता समीकरण बदलते रहते हैं, लेकिन परिवारों का प्रभाव अपरिवर्तित रहता है।
उपेंद्र कुशवाहा फिर बने उदाहरण – सांसद हारकर भी मिली राज्यसभा, बेटा बना मंत्री
लोकसभा चुनाव काराकाट से हारने के बावजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा राज्यसभा पहुंच गए।
विधानसभा में उनकी पार्टी रालोमो के 4 विधायकों की शक्ति ने उन्हें एनडीए में अहम बना दिया।
नतीजा:
• खुद राज्यसभा में
• पत्नी विधायक
• बेटे दीपक प्रकाश सीधे मंत्रिमंडल में शामिल
हालांकि दीपक ने चुनाव भी नहीं लड़ा – फिर भी मंत्री बन गए। यही आज की राजनीति की बदलती सच्चाई है।
बिहार का परिवारवादी राजनीतिक मॉडल: ताज़ा आंकड़े
पार्टी ————–परिवारवाद की हिस्सेदारी
हम (HAM)——लगभग 80%
RJD करीब——–40%
JDU लगभग—— 22%
BJP करीब——–23%
RLSP/रालोमो–लगभग 50%
स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति अब:
✔ जनसंघर्ष से नहीं
✔ जमीनी नेतृत्व से नहीं
✔ विचारधाराओं से नहीं
बल्कि वंशानुगत उत्तराधिकार की सीढ़ियों पर चल रही है।
बिहार मंत्रिमंडल में परिवारवाद की एक-एक कहानी
◼ संतोष सुमन मांझी
• पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र
• पत्नी विधायक
• पूरा परिवार राजनीति में मजबूत पकड़
◼ सम्राट चौधरी
• उपमुख्यमंत्री
• पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के पुत्र
• अब गृह विभाग संभालते हुए सबसे प्रभावशाली चेहरा
◼ दीपक प्रकाश
• उपेंद्र कुशवाहा के बेटे
• मां विधायक
• चुनाव लड़े बिना सीधे मंत्री
◼ श्रेयसी सिंह
• पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह और सांसद पुतुल कुमारी की बेटी
◼ रमा निषाद
• पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी
• पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण निषाद की पुत्रवधू
◼ विजय कुमार चौधरी
• पूर्व विधायक जगदीश प्रसाद चौधरी के पुत्र
◼ अशोक चौधरी
• पूर्व मंत्री महावीर चौधरी के पुत्र
• खुद अपनी बेटी को सांसद बनवाने वाले
◼ नितिन नवीन
• पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा के पुत्र
• बीजेपी में वंशवाद का मजबूत उदाहरण
◼ सुनील कुमार
• पूर्व मंत्री चंद्रिका राम के पुत्र
◼ लेसी सिंह
• स्वर्गीय भूटन सिंह की पत्नी
• स्थानीय राजनीति में परिवार का दबदबा
परिवारवाद का बढ़ता साम्राज्य – राजनीति “Public Service” से “Family Business” तक
अब स्थिति यह है कि:
• जैसा किसी कंपनी में चेयरमैन का बेटा MD बनता है,
• वैसा ही राजनीति में नेता का बेटा विधायक, सांसद या मंत्री बन जाता है।
कई मामलों में:
• जनता वोट देती है
• लेकिन सत्ता परिवार को मिल जाती है
उपेंद्र कुशवाहा के बेटे का मंत्री बनना इसे सबसे स्पष्ट रूप से दिखाता है
लोकतंत्र मजबूत होगा या कमजोर?
बिहार की राजनीति में:
• बाप सांसद
• मां विधायक
• बेटा मंत्री
यानी राजनीति अब प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह दिखने लगी है।
सवाल यही उठता है—
➡ क्या जनता ने विचारधारा को वोट दिया था या परिवारों को?
➡ क्या लोकतंत्र जनता से बड़ा हो चुका है?
➡ क्या राजनीति अब सिर्फ वंश को आगे बढ़ाने का माध्यम बन गई है?
समय बताएगा कि यह बदलाव बिहार को मजबूत करेगा या लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर करेगा।


