
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 21 नवंबर 2025: नीतीश कुमार ने गुरुवार को इतिहास रचते हुए 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह भारतीय राजनीति में अब तक किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा प्राप्त किया गया अभूतपूर्व रिकॉर्ड है। इस भव्य शपथग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 20 राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद थे। समारोह में मौजूद सबसे चर्चित और विशिष्ट व्यक्तियों में से एक रहे—बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, जिन्होंने नीतीश कुमार को शपथ दिलाई। परंतु आरिफ मोहम्मद खान सिर्फ एक संवैधानिक पदाधिकारी भर नहीं हैं। वे भारतीय राजनीति के उस युग के अहम किरदार हैं, जब शाहबानो प्रकरण ने देश की राजनीति, समाज और धार्मिक बहस को हिला कर रख दिया था।
कौन हैं आरिफ मोहम्मद खान?
आरिफ मोहम्मद खान का जन्म 18 नवंबर 1951 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ। उन्होंने—
• अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से स्नातक,
• लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा
प्राप्त की।
छात्र जीवन से ही वे राजनीति में सक्रिय रहे और AMU छात्र संघ के महासचिव और अध्यक्ष भी बने।
वे शुरुआत से ही—
• इस्लाम में कट्टरपंथ का विरोध,
• व्यक्तिगत कानूनों में सुधार
• और महिलाओं के अधिकार
की खुलकर वकालत करते रहे।
उनकी राजनीतिक यात्रा—
• चौधरी चरण सिंह
• फिर कांग्रेस
• केंद्रीय मंत्री
• जनता दल
• बीएसपी
• और अंततः भाजपा
तक रही।
कांग्रेस से नाता क्यों टूटा? – शाहबानो विवाद की पूरी कहानी
क्या था शाहबानो केस?
1978 में इंदौर की 62 वर्षीय शाहबानो को उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने घर से निकाल दिया। पांच बच्चों के पालन-पोषण के लिए जब शाहबानो ने गुजारा-भत्ता मांगा, तो उन्हें तलाक दे दिया गया। पति द्वारा भरण-पोषण न दिए जाने पर वे अदालत पहुंचीं। निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक—
• हर जगह निर्णय शाहबानो के पक्ष में गया।
• सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को भरण-पोषण के अधिकार की पुष्टि की।
• साथ ही समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की सिफारिश की।
लेकिन इस फैसले के खिलाफ कट्टरपंथी संगठनों ने देशभर में विरोध शुरू कर दिया और इसे शरीयत में हस्तक्षेप बताया।
इस मुद्दे पर खड़े हुए – आरिफ मोहम्मद खान
तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान संसद में खड़े होकर बोले—
• सुप्रीम कोर्ट ने सही फैसला दिया
• शरीयत भी तलाकशुदा महिला का पालन-पोषण पति पर ही छोड़ता है
• मुस्लिम महिलाओं को बराबर अधिकार मिलना चाहिए
राजीव गांधी ने शुरू में उनसे सहमति जताई और कहा कि—”हम इस फैसले पर कोई समझौता नहीं करेंगे।”
लेकिन फिर आया बड़ा राजनीतिक मोड़
कट्टरपंथी दबाव बढ़ने के बाद राजीव गांधी सरकार ने—Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986
पारित कर दिया, जिससे—
• सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया गया
• मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार फिर सीमित हो गए
यही वह क्षण था जब आरिफ मोहम्मद खान ने मंत्री पद छोड़ दिया और फिर कांग्रेस से दूरी बना ली। उन्होंने कहा—“यह फैसला राजनीतिक तुष्टिकरण की वजह से लिया गया, और मैं इससे सहमत नहीं हो सकता।”
एक सुधारवादी और प्रगतिशील मुस्लिम आवाज
आरिफ मोहम्मद खान ने—
• मुस्लिम समाज में आधुनिकता
• महिलाओं के अधिकार
• धार्मिक सुधार
• संविधान आधारित नागरिक अधिकार
की खुलकर वकालत की।
हालांकि उन्हें मुस्लिम समाज से विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन आज भी उनकी छवि एक— साहसी, प्रगतिशील और सुधारवादी मुस्लिम नेता की है।


