
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 20 नवंबर 2025: 20 नवंबर 2025 को पटना के गांधी मैदान में जब नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उससे ज्यादा चर्चा एक बात की हुई— उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश का अचानक मंत्री बन जाना।
सबसे खास बात यह रही कि—
• दीपक ना विधायक हैं
• ना एमएलसी
• उनका नाम किसी सूची में पहले से नहीं था
• और उनके कंधे पर कोई बड़ा राजनीतिक प्रोफ़ाइल भी नहीं
फिर ऐसा क्या हुआ कि जिस मंत्री पद के लिए बड़े-बड़े नेता लॉबिंग करते हैं, वह सीट एक युवा को अचानक मिल गई?
आइए अंदर की परतें खोलते हैं।
पावर गेम की शुरुआत – सीट शेयरिंग में नाराज थे उपेंद्र कुशवाहा
एनडीए में चुनाव से पहले सीटों का बंटवारा हुआ, जिसमें—
• उपेंद्र कुशवाहा की RLM को 6 विधानसभा सीटें मिलीं
• जबकि जीतन राम मांझी की HAM को भी 6 सीटें मिलीं
दोनों दल यह मान रहे थे कि— “हम NDA का मुद्दा बनाकर खड़े हैं, हमें और सीटें मिलनी चाहिए थीं।” यही नाराजगी अंदर ही अंदर जमा होती रही। फिर चुनाव नतीजे आने के बाद जब NDA को बड़ी जीत मिल गई तो—
NDA नेताओं को लगा कि अब दोनों दलों को मनाना पड़ेगा, वरना सत्ता बनते-बनते बिगड़ सकती है। इसी मोड़ पर कुशवाहा ने चुपचाप अपनी रणनीति बदल दी।
नीतीश, मोदी और अमित शाह की असल राय क्या थी?
विश्वसनीय सूत्रों का दावा:
• शुरुआत में बीजेपी और जेडीयू टॉप लेवल नहीं चाहती थी कि दीपक जैसे बिना चुनावी अनुभव वाले चेहरे को मंत्री बनाया जाए।
• उपेंद्र कुशवाहा को केवल एमएलसी सीट देने पर विचार चल रहा था।
• यानी “एक पोस्ट – एक व्यक्ति” फॉर्मूला माना जा रहा था।
लेकिन कुशवाहा जानते थे—“एमएलसी का वादा चुनाव बाद कभी भी कमजोर किया जा सकता है।” इसलिए कुशवाहा ने सीधा मंत्री पद की मांग रख दी, और वह भी अपने बेटे के लिए।
यह मांग आखिरी फेज़ में रखी गई जब—
• शपथ ग्रहण की तैयारी पूरी
• मंत्रियों की लिस्ट लगभग तैयार
• राजनीतिक परिस्थितियाँ इतनी बन चुकी थीं कि “ना” कहना मुश्किल हो गया
यही वह समय था जब सिस्टम कुशवाहा की मांग मानने को मजबूर हो गया।
कुशवाहा का ‘मल्टी-लेयर प्रेशर गेम’
उपेंद्र कुशवाहा ने दबाव एक ही लाइन में नहीं बनाया, बल्कि—
➤ 1️⃣ नंबर गेम का दबाव
चुनाव में NDA की जीत बड़ी थी, लेकिन कुशवाहा का वोट बैंक कोइरी–कुशवाहा समुदाय में असरदार माना जाता है।
वे चाहते थे कि यह संदेश जाए— “RLM केवल सहयोगी नहीं, सत्ता में हिस्सेदार है।”
➤ 2️⃣ जातीय प्रतिनिधित्व का तर्क
बिहार की पॉलिटिक्स में जाति सबसे बड़ा समीकरण है।
• कुशवाहा (कोइरी) वोटबैंक
• यादव बनने का विकल्प
• बीजेपी और JDU के लिए इस आधार को पकड़ना जरुरी
कुशवाहा ने यह कार्ड खेला—
“अगर यादव–कुशवाहा समीकरण नीतीश–लालू गुट में सेट हो सकता है, तो NDA क्यों नहीं?”
➤ 3️⃣ मांझी फैक्टर
HAM प्रमुख जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन का भी कार्यकाल खत्म हो रहा था।
अगर:
• मांझी को एमएलसी मिलता
• और कुशवाहा को नहीं
तो यह राजनीतिक रूप से गलत मैसेज जाता।
कुशवाहा ने सीधे कहा—“अगर मांझी के बेटे को रास्ता मिलता है, तो मेरे बेटे को क्यों नहीं?”
➤ 4️⃣ सही वक्त पर दांव
कभी-कभी राजनीति में “टाइमिंग” सबसे बड़ी रणनीति होती है।
यहां भी वही हुआ—
• शपथ ग्रहण से चंद घंटे पहले
• सूची अंतिम चरण में
• स्क्रीनिंग पूरी
• मीडिया की नज़र विवरण पर
ठीक उसी समय दीपक का नाम फाइनल कर दिया गया।
दीपक के कपड़ों से भी समझिए – फैसला कितनी देर में बदला
शपथ के दिन—
• बाकी मंत्री पहुंचे कुर्ता–पायजामा में
• दीपक पहुंचे जींस और शर्ट में
यह दृश्य खुद ही संकेत था: “शायद उन्हें भी कल रात तक यह तय नहीं बताया गया था।”
पूछने पर दीपक ने क्या कहा?
शपथ के बाद मीडिया ने पूछा—“आप मंत्री कैसे बन गए?”
दीपक मुस्कुराए और बोले—“जाकर पापा से पूछिए… वही बता पाएंगे।”
एक लाइन में उन्होंने—
• जवाब भी दे दिया
• सिस्टम भी एक्सपोज़ कर दिया
• और संकेत भी दे दिया कि फैसला टॉप लेवल पर नहीं, पापा की रणनीति से हुआ।
आगे क्या?
✓ RLM का वजन बढ़ा
कुशवाहा अब NDA में केवल “छोटे सहयोगी” नहीं दिखेंगे।
✓ जातीय राजनीति में नया सेंटर
कोयरी–कुशवाहा समाज में यह संदेश जाएगा— “हम सत्ता में हिस्सेदार हैं, न कि सिर्फ वोट बैंक।”
✓ विरोध भी शुरू होगा
बीजेपी और जेडीयू के कुछ MLA यह सवाल उठाएंगे—
• “हमने चुनाव लड़ा, फिर मंत्री कौन बन गया?”
मतलब आने वाले महीनों में:
• सरकार चलेगी
• लेकिन असंतोष की राजनीति पनपेगी


