
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 18 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर राजनीतिक चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं। एनडीए के सहयोगी दलों में तीनों शीर्ष नेता — चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी — पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री का चेहरा मानते हैं। बावजूद इसके पद-परिणाम और आगे की रणनीति को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। बीजेपी के कुछ स्थानीय नेता स्पष्ट हैं, पर दिल्ली वाला हाइ-कमान मौन साधे है — और यही मौन अफवाहों को हवा दे रहा है।
क्यों हैं नीतीश ‘ज़रूरी भी, मजबूरी भी’?
• जेडीयू का जोर: जेडीयू ने 43 सीट से बढ़कर 85 सीटें हासिल कीं — यानी सत्ता में उसकी ताकत दोगुनी साबित हुई।
• बीजेपी-JDU संतुलन: बीजेपी ने सबसे अधिक सीटें (लगभग 89) लाईं, पर जेडीयू की मजबूती और दोनों के बीच गठबंधन के समीकरण ने नीतीश को बीच का पिवट बना दिया है।
• लोक जनादेश का सांकेतिक चेहरा: चुनाव में ‘सुशासन’ और नीतीश की साख ने NDA के प्रदर्शन में अहम योगदान दिया — अतः गठबंधन के कई घटक उनके नेतृत्व को स्वीकारते दिखे।
• केंद्रीय सेंध-रोक: केंद्र में NDA सरकार के लिए जेडीयू सांसदों का समर्थन मायने रखता है — इसलिए दिल्ली स्तर पर भी समीकरणों का ध्यान रखना पड़ता है।
इन वजहों से नीतीश सिर्फ ‘विकल्प’ नहीं, बल्कि गठबंधन के लिए राजनीतिक ज़रूरत और रणनीतिक मजबूरी दोनों बन गए हैं।
BJP के पास फिलहाल 4 व्यावहारिक विकल्प
नीचे BJP के सामने मौजूदा परिस्थिति में जो 4 राहें दिखाई देती हैं, उन्हें विस्तार से बताया गया है:
1. नीतीश को ही CM बनाना — बदले में शक्तिशाली मंत्रालय लेना
गठबंधन को शांति और स्थिरता देने के लिए यह सबसे सहज विकल्प है। BJP मुख्य शक्ति बने रहने के बावजूद कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय/पावर शेयरिंग की माँग कर सकती है।
2. इंतज़ार करना — जब तक नीतीश संन्यास या खुद इस्तीफे का एलान न करें
छोटे समय के लिए धीरज रखना और पटना-पठार में अनावश्यक टकराव से बचना — इससे BJP अपना दांव मजबूत रख सकती है और आगे की रणनीति बना सकती है।
3. रोटेशन/फॉर्मूला — नीतीश के संन्यास के बाद 2.5-2.5 साल का फॉर्मूला लागू करना
विकल्प जिसमें शुरुआत में कोई ‘टेकओवर’ तय व शर्तों के साथ लागू हो: उदाहरण- 2.5 साल JDU-मुख्यमंत्री, बाद में BJP-मुख्यमंत्री (या उल्टा) — पर यह भी जटिल है और विश्वास संकट पैदा कर सकता है।
4. लंबी रणनीति — 2029 तक सब्र रखना और फिर अकेले चुनाव लड़कर बहुमत जुटाने की तैयारी
यह दीर्घकालिक विकल्प है: मौजूदा गठबंधन को सम्मान देते हुए BJP दीर्घकालीन राजनीतिक नक्शा तैयार करे और अगले लोकल/सामन्य चुनावों में अपना पुलिंदा और मज़बूत करे।
पटना-दिल्ली के संकेत और राजनीतिक परिदृश्य
• NDA के कई घटक अभी नीतीश-पक्ष में हैं। चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी ने सार्वजनिक रूप से नीतीश का समर्थन किया।
• वहीं दिल्ली में BJP हाई-कमान की बैठकें और पीएम आवास पर चर्चा की रिपोर्टें सत्तारूढ़ दलों के अंदर रणनीति-वार्ता का संकेत हैं। पर आधिकारिक रूप में कोई अंतिम घोषणा अभी नहीं आई।
• JDU ने खुद अपनी सीट-मान्यता और राजनीतिक क्लैस्टर दिखा दिया है — इसलिए BJP के लिए ठोस विकल्प अपनाना सरल नहीं।
राजनीतिक अर्थ और जोखिम
• BJP अगर ज़ोर देकर CM की माँग करे तो गठबंधन टूटने का जोखिम है — और नई सरकार बनाने के लिए फिर से सियासी गणित बदलना पड़ेगा।
• दूसरी ओर, अगर BJP सर्वथा संयम रखे तो उसे दीर्घावधि लाभ मिल सकता है — पर संगठन के अंदर दबाव और स्थानीय कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएँ भी बढ़ेंगी।
• किसी भी फैसले में JDU के सांसद और स्थानीय प्रभाव का पूरा ध्यान रखना होगा — केंद्रीय और राज्यीय हितों का संतुलन जटिल रहेगा।
निष्कर्ष
बिहार की सियासत में आज की तस्वीर यही दिखाती है कि नीतीश कुमार गठबंधन का वह केन्द्रिय चेहरा हैं जिनके बिना सरकार का सहज संचालन मुश्किल दिखता है। BJP के पास विकल्प मौजूद हैं, पर हर विकल्प का अपना जोखिम और लाभ है। इसलिए फिलहाल पटना-दिल्ली दोनों ओर से रणनीतिक चुप्पी और कूटनीतिक बातचीत का दौर चलता रहेगा — और जैसे-जैसे समय निकलेगा, राजनीतिक परिदृश्य में स्पष्टता आएगी।


