
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | नई दिल्ली | Updated: 9 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनावों के बीच राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को ‘लैंड फॉर जॉब’ (जमीन के बदले नौकरी) मामले में अस्थायी राहत मिली है।
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में फैसला सुनाने की तारीख 4 दिसंबर तय की है।
क्या है मामला?
यह मामला उस आरोप से जुड़ा है जिसमें कहा गया है कि 2004 से 2009 के बीच, जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे, तब रेलवे में नौकरियां देने के बदले उनके परिवार के नाम पर जमीन ली गई।
सीबीआई के अनुसार, इस दौरान
• किसी भी तरह का सार्वजनिक विज्ञापन या सूचना जारी नहीं की गई,
• लेकिन कुछ लोगों को मुंबई, जबलपुर, कोलकाता, जयपुर और हाजीपुर जोन में सब्स्टीट्यूट पदों पर नियुक्ति दी गई।
इसके बदले, आरोप है कि उन लोगों या उनके परिवारों ने लालू परिवार और उनके करीबी लोगों से जुड़ी कंपनियों को जमीनें उपहार या सस्ते दामों पर बेच दीं।
कौन-कौन हैं आरोपी?
इस केस में सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटे तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, बेटियां मीसा भारती और हेमा यादव समेत 100 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया है।
चार्जशीट में कहा गया है कि
• ज्यादातर लेनदेन नकद (कैश) में हुआ,
• और इससे रेलवे की भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार हुआ।
सीबीआई ने आईपीसी की कई धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act) के तहत यह चार्जशीट दाखिल की है।
अब अगली सुनवाई 4 दिसंबर को
कोर्ट को सोमवार (21 अक्टूबर) को आरोप तय करने पर फैसला सुनाना था, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे स्थगित करते हुए अब 4 दिसंबर की नई तारीख तय की गई।
इससे लालू परिवार को बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों तक राहत मिल गई है, क्योंकि चुनाव परिणाम 14 नवंबर को आने हैं।
पृष्ठभूमि: कैसे शुरू हुआ था केस
• 18 मई 2022 को सीबीआई ने यह केस दर्ज किया था।
• एफआईआर में आरोप लगाया गया कि लालू यादव ने रेल मंत्री रहते हुए जमीन के बदले नौकरी देने का सौदा किया।
• इस मामले में दिल्ली और पटना में सीबीआई ने कई बार छापेमारी की थी।
राजनीतिक असर और विश्लेषण
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार,
यह केस बिहार चुनाव के दौरान राजद के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता था, लेकिन कोर्ट द्वारा सुनवाई टलने से लालू परिवार को फिलहाल राहत मिली है।
राजद समर्थक इसे “राजनीतिक साजिश” बता रहे हैं, जबकि एनडीए इसे “भ्रष्टाचार का क्लासिक उदाहरण” कह रहा है।


