रिपोर्ट : रोहतास दर्शन डिजिटल डेस्क | पटना | Updated: 23 नवंबर 2025 :

लोकतंत्र या धन-बल का खेल?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में लोकतंत्र का चेहरा एक बार फिर सवालों के घेरे में है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ताज़ा रिपोर्ट ने बिहार की राजनीति की वो हकीकत उजागर की है, जिसे अक्सर चुनावी नारों की चकाचौंध में दबा दिया जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक —

•             32% उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं,

•             27% पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं,

•             और 42% उम्मीदवार करोड़पति हैं।

यानी बिहार की राजनीति में आज भी बाहुबल और धनबल दोनों का वर्चस्व कायम है।

आंकड़े बताते हैं राजनीति का अपराधीकरण कितना गहरा

2600 उम्मीदवारों में से 838 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जो 2020 के चुनाव के समान ही है। लेकिन चिंताजनक यह है कि गंभीर अपराधों वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत 25% से बढ़कर 27% हो गया है।

🚨 94 उम्मीदवारों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस दर्ज हैं, जिनमें से 5 पर बलात्कार के आरोप हैं।

इससे साफ है कि बिहार की राजनीति में न अपराध की लकीर मिट रही है, न नैतिकता की परिभाषा बदल रही है।

कौन हैं सबसे ज्यादा “क्रिमिनल फेस” वाले दल?

एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक —

•             सीपीआई (एम) के 100% उम्मीदवार आपराधिक मामलों में आरोपी हैं।

•             सीपीआई (एमएल) के 90%,

•             सीपीआई के 78%,

•             और उसके बाद कांग्रेस, राजद और भाजपा के उम्मीदवारों के नाम आते हैं।

243 विधानसभा सीटों में से 164 सीटों को “रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र” घोषित किया गया है।

मतलब, इन क्षेत्रों में कम से कम तीन उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

 कानून के साथ-साथ ‘नोट’ का भी खेल तेज

राजनीति में अपराध के साथ-साथ धनबल का असर भी तेज़ी से बढ़ा है। 2020 में जहाँ करोड़पति उम्मीदवारों की हिस्सेदारी 33% थी, वहीं अब यह बढ़कर 42% (1,081 उम्मीदवार) हो गई है।

पार्टीवार आंकड़े चौंकाने वाले हैं —

•             जदयू (91%),

•             राजद (91%),

•             एलजेपी (रामविलास) (89%),

•             उसके बाद भाजपा और कांग्रेस।

उम्मीदवारों की औसत घोषित संपत्ति ₹1.72 करोड़ से बढ़कर ₹3.35 करोड़ पहुँच गई है। और दोबारा चुनाव लड़ रहे 192 विधायकों की संपत्ति में औसतन 47% की बढ़ोतरी हुई है।

एडीआर रिपोर्ट का कटाक्ष: “अब बाहुबल पैसे की चमक बढ़ाता है, और पैसा बाहुबल की पहुँच”

रिपोर्ट में कहा गया है — “हलफ़नामे अब भ्रष्टाचार को रोकते नहीं, बल्कि उसे साफ-सुथरा दिखाते हैं।”

“सत्ता का लेन-देन अब अपराध और पूँजी में होता है — जहाँ पैसा पद खरीदता है और पद पैसा बनाता है।”

राजनीतिक प्रतिक्रिया और विश्लेषण

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह रिपोर्ट सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि बिहार के चुनावी चरित्र का आईना है।

एनडीए और महागठबंधन दोनों पर एक बड़ा सवाल यह है कि जब जनता अपराधमुक्त राजनीति की उम्मीद करती है, तो वही दल ऐसे उम्मीदवारों को टिकट क्यों दे रहे हैं जिन पर गंभीर आरोप हैं?

रोहतास दर्शन की संपादकीय दृष्टि:

बिहार की राजनीति का यह चेहरा लोकतंत्र की आत्मा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। अगर पार्टियां अपराध और पूंजी को टिकट देने की परंपरा नहीं तोड़तीं, तो जनता का भरोसा तंत्र से बाहर जाकर “तानाशाही विकल्पों” की ओर झुक सकता है।

बिहार को विकास चाहिए, लेकिन विकास के रास्ते में अपराध और पूंजी की दीवार पहले गिरनी जरूरी है।

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