By Rohtas Darshan Digital Desk | Updated: October 23, 2025 | Patna : बिहार में विधानसभा चुनावी माहौल तेज़ हो चुका है और चुनावी शेड्यूल के मद्देनज़र एक बड़ा राजनीतिक और प्रशासनिक प्रश्न उभर कर सामने आ गया है — छठ पूजा के बाद लाखों प्रवासी मतदाताओं को कैसे रोका जाए ताकि वे मतदान कर सकें? भाजपा ने इस चुनौती से निपटने के लिये व्यापक प्लान तैयार कर लिया है।

संदर्भ — तारीखें व प्रवासी आंकड़े

• बिहार में विधानसभा मतदान दो चरणों में होगा — 6 नवंबर (पहला चरण) और 11 नवंबर (दूसरा चरण)।

• इस बार छठ पूजा 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर 2025 तक मनाई जाएगी।

• सरकारी अनुमानों के अनुसार लगभग 48 लाख से अधिक प्रवासी सालाना छठ मनाने बिहार आते हैं — जिनमें लगभग 45.78 लाख घरेलू प्रवासी और 2.17 लाख विदेशी श्रमिक शामिल बताए जा रहे हैं। ये संख्या प्रदेश के कई जिलों में मतदान परिणामों को प्रभावित कर सकती है।

भाजपा की रणनीति — बूथ-स्तर से तालमेल तक

भाजपा के नेताओं और स्थानीय संगठन ने बताया कि पार्टी ने प्रवासी मतदाताओं को रोकने और उन्हें मतदान कराने के लिए बहुस्तरीय योजना बनाई है:

1. बूथ-स्तर अभियान तेज़ — हर वार्ड/बूथ में पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रवासी परिवारों से संपर्क कर रहे हैं, उन्हें मतदान का महत्व समझा रहे हैं और अपील कर रहे हैं कि वे मतदान समाप्ति तक यहीं रहें।

2. डिस्ट्रीक्ट व ब्लॉक कमेटियां सक्रिय — जिला अध्यक्ष और बूथ प्रभारी प्रवासियों की सूची बनवाने, उनकी यात्रा योजनाओं पर नज़र रखने और स्थानीय सदस्यों से समन्वय करने लगे हैं।

3. स्थानीय व्यवस्था सहायता — पार्टी की ओर से स्थानीय नेताओं के माध्यम से रुकने वालों के लिये अस्थायी आवास, खानपान व मेडिकल सपोर्ट की व्यवस्था का आश्वासन दिया जा रहा है।

4. ग्रुप कॉल/व्हाट्सएप कैंपेन — प्रवासी मजदूरों व परिवारों को प्रेरित करने हेतु डिजिटल ग्रुप्स पर लगातार संदेश भेजे जा रहे हैं।

5. निगरानी व रिपोर्टिंग मैकेनिज्म — हर बूथ को निर्देश दिया गया है कि वे प्रवासी मतदाताओं की लौटने की तिथियों की जानकारी रखें और रेजिमेंट/नौकरी छूट का आश्वासन देने हेतु स्थानीय नियोक्ताओं से समन्वय करें।

भाजपा सूत्रों का कहना है: “हम समझते हैं कि छठ के बाद बहुत से बिहारवासी अपने काम पर लौटने को मजबूर होते हैं। हमारा काम उन्हें यह विश्वास दिलाना है कि मतदान कर वे अपने लोकतांत्रिक हक का प्रयोग करें — और उसके बाद सुरक्षित रूप से अपने कार्यस्थल जा सकें।”

प्रशासनिक और वैधानिक चुनौतियाँ

• निर्वाचन आयोग द्वारा प्रवासी मतदाताओं के रुकने-जाने पर सख्त नियम हैं; किसी भी प्रकार का दबाव या प्रलोभन अवैध माना जा सकता है। राजनीतिक दलों को कानून और आयोग की गाइडलाइन्स का पालन करना अनिवार्य है।

• चुनाव आयोग/प्रशासन यदि आवश्यक समझे तो विशेष वाहन, मेडिकल सहायता केंद्र और मतदान केंद्रों का संचालन देर तक सुनिश्चित कर सकता है — ताकि जो लोग छठ के बाद कुछ दिनों तक रुकते हैं, वे वोट कर सकें।

• कर्म-आधारित चिन्ता: बहुत से प्रवासी मजदूर/कर्मचारी नौकरी गंवाने के डर से समय से पहले लौट जाते हैं — इस मानसिकता को बदलना चुनौती बनी रहेगी।

जिलागत-प्रभाव: किन जिलों में प्रवासियों की संख्या अधिक?

सरकारी आँकड़ों के आधार पर प्रवासी मतदाताओं की सबसे अधिक संख्या निम्न जिलों में पाई जाती है (सूत्र/अनुमान):

•  पूर्वी चंपारण (~6.14 लाख)

•  पटना (~5.68 लाख)

•  सीवान (~5.48 लाख)

•  मुजफ्फरपुर (~4.31 लाख)

•  दरभंगा (~4.3 लाख)

ये जिले पहले मतदान चरण में शामिल हैं और इसलिए छठ-समग्र रुकावटें वहां विशेष रूप से चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। भाजपा-कुशलता से यदि इन प्रवासी वोटरों को बनाए रखने में सफल रहती है तो इसका असर मतगणना पर दिख सकता है।

विपक्ष का रुख और राजनीतिक निहितार्थ

महागठबंधन और विपक्षी दलों ने भाजपा की रणनीति को लेकर चिंता जताई है। विपक्ष का कहना है कि:

•  “प्रवासी मतदाताओं को रोकने की राजनीति लोकतंत्र की रक्षा के बजाय दबाव की नीति में बदल सकती है।”

•  अनेक पार्टियां चुनाव आयोग से पारदर्शिता, अतिरिक्त मॉनिटरिंग और प्रवासी मतदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा की मांग कर रही हैं।

विश्लेषकों के अनुसार, छठ-समय पर लौटकर वोट ना कर पाना परंपरागत रूप से राजनैतिक नतीजे प्रभावित करता आया है — इसलिए इस बार की तैयारी और प्रबंधन का प्रभाव स्पष्ट दिखेगा।

वोटिंग-टेक्निकल्स: प्रवासी मतदाता कैसे प्रभावित होंगे?

• मतदाता सूची व पते: अधिकतर प्रवासी के पते उनके स्थायी पते पर दर्ज होते हैं; इसलिए मतदान स्थान पर उपस्थित रहना अनिवार्य है।

• पोस्टल बैलट/ई-वोटिंग: वर्तमान में भारत में व्यापक स्तर पर पोस्टल-बैलट या ई-वोटिंग प्रवासियों के लिये उपलब्ध नहीं है (सिवाय सीमित श्रेणियों के), अतः उनकी फिजिकल उपस्थिति मायने रखती है।

• निजी और सार्वजनिक व्यवस्था: पारिवारिक जिम्मेदारियों, नौकरी के दबाव और यात्रा-खर्च प्रवासियों के रुकने के निर्णय पर भारी प्रभाव डालते हैं।

विशेषज्ञों का विश्लेषण — क्या इससे चुनाव पर असर पड़ेगा?

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि प्रवासी मतदाता-प्रबंधन से कुछ जिलों में मुकाबला बदलेगा, विशेषकर जहाँ मतविभाजन बहुत नज़दीकी रहा है। भाजपा द्वारा किए जा रहे प्रयास सफल रहे तो इसकी मदद से पार्टी कुछ संवेदनशील सीटें जिंदा रख सकती है। वहीं, यदि विपक्ष समय पर प्रवासी मतदाताओं को आश्वासन और सुविधा दे, तो मुकाबला और रोचक बन सकता है।

निष्कर्ष: संवेदनशील संतुलन आवश्यक

छठ पूजा के बाद प्रवासी मतदाताओं का रुझान और उनकी उपलब्धता इस चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती है। भाजपा ने बूथ-स्तर से लेकर जिले स्तर तक व्यापक योजना तैयार कर ली है, पर प्रशासनिक नियम, चुनाव आयोग की निगरानी और विपक्षी दलों की तैयारियों के बीच यह देखने की बात होगी कि अंतिम परिणाम पर इसका असली असर कितना पड़ेगा।

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