रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : डिहरी के नारायणपुर में स्वामी जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि संसार में भगवान की प्राप्ति के लिए, व्यक्ति के कल्याण के लिए, उद्धार के लिए अलग अलग साधन बताया गया है। इसके लिए भक्ति योग बताया गया है। भक्ति योग सबसे श्रेष्ठ है। सबके लिए है, सबके लिए सहज, सरल, सुलभ भी है। इससे बढ़ करके कोई श्रेष्ठ साधन नही है। भगवान के प्रति प्रेम रखना, होना ही भक्ति योग है। हमारे भीतर जो चिंगारी है, हमारे भीतर जो प्रकाश है, हमारे भीतर जो ज्ञान है, वैराग्य है उन ज्ञान का वैराग्य का प्रेम का तेज का जगत् में प्रैक्टिकल करना अपने जीवन को शांतिमय जीते हुए हर परिस्थिति में अपने दिल को, अपने दिमाग को, उन परमात्मा में लगाए रखना यहीं श्रेष्ठ है। परमात्मा का ध्यान करना ही भक्ति योग है। यहीं सबसे श्रेष्ठ है।

पृथ्वी पर सोने से काम चल सकता है तो पलंग की क्या जरूरत।
शुकदेवजी जी महाराज ने परिक्षित से कहा कि न जाने इस दुनिया के लोग भी उस धनांधो के पास, उस कमांधो के पास जो रात दिन अपने काम में ही डूबे रहते हैं। धन का नशा में डूबे रहते हैं, पद की नशा में डूबे रहते हैं। रूप की नशा में डूबे रहते हैं, बैभव की नशा में डूबे रहते हैं। वैसे लोगों के आश्रय से अपना जीवन अपना पेट पालते रहते हैं। ऐसे अपने आप में व्यक्तियों पर तरस आता है। क्योंकि पृथ्वी पर सोने से काम चल सकता है। तो उन मनांधो, कमांधो, के लिए गद्देदार पलंग के लिए क्यों प्रयास करना।