तिलौथू के पास सेवई में प्रवचन करते हुये श्री जीयर स्वामीजी महाराज ने कहा की
योग को चार भागों में बांटा गया है। पहला है मंत्र योग। दुसरा है लय योग। तीसरा है हठ योग। चौथा है हठ योग। मंत्र योग है भगवान के नामों को जो वैदिक परंपरा और ऋषियों द्वारा जो बताया गया है जप करना, अनुष्ठान करना, ही मंत्र है। मंत्र का अर्थ ज्ञान होता है। मंत्र का अर्थ है विज्ञान। जिसको मनन करने से जो हमारी रक्षा करे उसी का नाम है मंत्र। मंत्र का ही देन है कि जहाज आकाश में उड़ रही है।
मंत्र जितने अक्षर का हो उतने लाख बार जप करना चाहिए।
कलयुग में बताया गया है कि जो मंत्र जितने अक्षर का हो उतने लाख बार जप करना एक पुरस्चर कहलाता है। परंतु यह नियमित करना चाहिए। कलयुग में चार पुरस्चर करने को बताया गया है। जैसे नारायण मंत्र आठ अक्षर का है तो आठ लाख बार जप करना एक पुरस्चर कहलाता है। प्रथम पुरस्चर करने से हमारे पुर्व जन्म के प्रायश्चित समाप्त होता है। दुसरा पुरस्चर करने से वर्तमान का जो दोष है मिट जाता है। तीसरा पुरस्चर करने से कुल,खानदान,परिवार इत्यादि में किसी प्रकार की कोई त्रुटि हो गई है उसका मार्जन होता है। चौथा पुरस्चर करने पर मंत्र शक्तिशाली हो जाता है।
लय योग को हमेशा किया जा सकता है।
दुसरा योग है लय योग। खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते स्थित में लय रहना ही लय योग है। हर परिस्थिति में उस परमात्मा के नाम में रूप में गुण में अपने आप लय हो जाना, विलय हो जाना। यह हमेशा किया जा सकता है। प्रत्येक परिस्थिति में नारायण में लय रहा जाता है।
