स्वामी जी महाराज ने बताया कि श्री शुकदेवजी कहते हैं कि धन, संपदा, पद, प्रतिष्ठा सब यहीं रह जाएंगे। नारी पत्नी जो होगी बहुत स्नेह करने वाली द्वार तक रोते रोते लौट जाएगी। बंधु जन जो हैं बहुत स्नेह करने वाले होंगे तो श्मशान तक जाएंगे। और जो आपका बेटा है जिसके लिए आपने अनीति, अन्याय, कुकर्म किया है वह बहुत स्नेह करने वाला होगा तो आपको चिता पर सुला करके मुंह में अग्नि दे करके आपकी परिक्रमा करके आपकी साथ छोड़ देगा। वह भी कामना यही करेगा कि जल्दी इनका लाश जल जाए। कोई साथ में जाता नही है। जो साथ जाता है वह है नैतिकता,
भगवान के चतुर्भुज रूप का ही ध्यान करना चाहिए।
भगवान के जिस स्वरूप में प्रेम हो उसी स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।शुकदेवजी ने परिक्षित को बताया कि भगवान के अनंत अवतार है। सभी अवतार का दर्शन कर सकते हो परंतु भगवान के चतुर्भुज रूप का ध्यान करना चाहिए। मुरली वाले की ध्यान आती है तो उसी का ध्यान करो, वंशी वाले की ध्यान आये तो उनकी ध्यान करो, मोर मुकुट वाले में प्रेम हो तो उनमे ध्यान करो। धनुर्धारी भगवान श्री राम के ध्यान आये तो उन्ही का ध्यान करो। जिसकी जो भावना है उस रूप में ध्यान कर सकता है। परंतु सही मायने में ध्यान किया जाय तो भगवान का चतुर्भुज रूप का ही ध्यान करना चाहिए। क्योंकि की हो सकता है अलग अलग रूपों में माया और मोह हो सकता है लेकिन चतुर्भुज रूप में भ्रम होता भी है तो भ्रम समाप्त हो जाता है।
भगवान के चरण से लेकर मुख मंडल तक ध्यान करना चाहिए।
यदि भगवान का दर्शन करना होता है। समय कम है तो आंख बंद मत करीए। पुरे अच्छे तरीके से देख लीजिए। तभी तो आप ध्यान करेंगे तो उनका दर्शन कर पाएंगे ।भगवान का चरण का ध्यान करते हुए यही भावना करनी चाहिए कि यहीं भगवान का चरण है। चरण से शुरू करते हुए पुरे स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
