राष्ट्रपति की बिल पर सहमति मिलने के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची तैयार करने का अधिकार राज्यों को मिल जायेगा।

रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : 11 अगस्त 2021 : नई दिल्ली। लोकसभा से एक दिन  पहले पारित होने के बाद आज 127वां संविधान संशोधन बिल  राज्यसभा  से भी सर्वसम्मति से पास हो गया। राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 187 वोट पड़े जबकि विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। राज्यसभा से पारित किए जाने के बाद इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। ऐसा कम ही होता है जब संसद में किसी बिल के ख़िलाफ़ एक भी वोट न पड़े. पेगासस और कृषि कानूनों के मुद्दे पर संसद की कार्यवाही में लगातार हंगामा करती आईं विपक्षी पार्टियों ने पहले ही बिल के समर्थन का ऐलान कर दिया था. जाहिर है इस बिल के राजनीतिक परिणामों को देखते हुए कोई भी पार्टी इसके विरोध करने का रिस्क नहीं लेना चाहती थी.  लोकसभा में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यहबिल पारित हुआ है। बिल को लेकर हुए मत विभाजन के दौरान इसके पक्ष में कुल 385 सदस्यों ने वोट दिया, जबकि खिलाफ एक भी वोट नहीं पड़ा। संसद से इस  बिल के पास हो जाने के बाद राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची तैयार करने का अधिकार राज्यों को मिल जायेगा।इससे राज्यों और केंद्र शासित प्रदशों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की लिस्ट तैयार करने का अधिकार मिलेगा।

इसी साल 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर पुर्नविचार की याचिका पर सुनवाई करने की मांग खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद OBC लिस्ट जारी करने का अधिकार केवल केंद्र के पास है।नए बिल के हिसाब से राज्य सरकारें अपने स्तर पर ओबीसी जातियों की लिस्ट बनाएगी और उनके आरक्षण के बारे में राज्यपाल के जरिये फैसला होगा। दूसरी ओर केंद्र अपने स्तर पर ओबीसी लिस्ट बनाएगी जिसे राष्ट्रपति मंजूरी देंगे। सुप्रीम कोर्ट की पहले से रूलिंग है कि आरक्षण की सीमा 50 परसेंट से ज्यादा नहीं हो सकती जिसमें ओबीसी का कोटा 27 परसेंट निर्धारित है। लेकिन 10 परसेंट अलग से  आर्थिक पिछड़े सामान्य वर्ग के लिए रिजर्व रखा गया जिसका लाभ अभी लोगों को मिल रहा है। मौजूदा मामला इसलिए उठा है क्योंकि मराठा आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जिस पर अदालत ने कहा कि यह अधिकार केंद्र के पास है।अभी तक का नियम यह है कि राज्य ओबीसी की लिस्ट लेकर ओबीसी आयोग में जाते हैं जहां लिस्ट और उसकी जातियों पर फैसला लिया जाता है और आयोग मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजता है। अब नए नियम लागू होने पर विधेयक  राज्य अपनी लिस्ट बना सकते हैं और उस पर फैसला ले सकते हैं। इसके अलावा केंद्र की लिस्ट अलग से बनेगी।इससे संघीय ढांचे को बनाए रखने में मदद मिलेगी क्योंकि ओबीसी लिस्ट बनाने का अधिकार राज्यों के साथ केंद्र के पास भी होगा। अब राज्यों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाएगी क्योंकि उन्हें ही फैसला लेना है कि वाकई कौन सी जाति सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी है जिसे आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए। अगर कोई क्रिमी लेयर है तो उसे निकालने की जवाबदेही भी राज्यों पर होगी।

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