रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : 10 जुलाई 2021 : बिक्रमगंज(रोहतास)। कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास द्वारा शनिवार को विश्व मत्स्य दिवस के अवसर पर वेबीनार का आयोजन किया गया । यह वेबीनार जिले एवं जिले के अन्य किसानों के लिए ऑनलाइन जूम एप के माध्यम से संपन्न किया गया । इस वेबीनार में जिले के 55 कृषकों एवं जिले के बाहर से 35 कृषकों ने भाग लिया । इस वेबीनार का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अरुण कुमार एवं निदेशक प्रसार शिक्षा डॉक्टर आर के सोहाने के मार्गदर्शन में कराया गया ।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारत के अमृत महोत्सव के भाग के रूप में आज कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास में आयोजित कराया गया था । इस वेबीनार के माध्यम से मत्स्य कृषकों को उन्नत मत्स्य पालन की वैज्ञानिक एवं आधुनिक तकनीक की जानकारी विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा दी गई ।  इस वेबीनार में विशेषज्ञ के तौर पर डॉ बृजेंद्र कुमार, वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान कृषि विज्ञान केंद्र नालंदा डॉ आर के जलज, वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास एवं डॉ ज्ञानचंद, मत्स्य वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, सुपौल ने भाग लिया । डॉ ब्रजेनंदू कुमार ने बताया कि विदेशी थाई मांगुर का पालन मत्स्य कृषकों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए । यह मछली पर्यावरण को वृहद पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकती है । यदि यह मछली बिहार की नदियों में चली गई तो वहां की सभी मछलियों की प्रजातियां खत्म  हो जायेगी । अतः इसके पालन का बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए । उन्होंने यह बताया कि विगत 6-7 वर्षों से पूरे बिहार में 10% की दर से मछली पालन का व्यवसाय लगातार बढ़ रहा है । कोविड -19 के दौरान कई नए मत्स्य कृषकों ने बिहार राज्य में मत्स्य पालन का व्यवसाय शुरू किया है । बिहार सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं पर अनुदान की भी व्यवस्था है ।

कार्यक्रम में उपस्थित आर के जलज ने बताया कि बायो फ्लॉक मत्स्य पालन की आधुनिक तकनीक है। जिसमें मछलियों को कम दाना खिलाकर भी पाला जा सकता है। इसके लिए मिट्टी के बड़े बड़े तालाब की कोई आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि एक छोटे से टैंक में 5000 लीटर पानी के साथ भी मछली का पालन किया जा सकता है । प्रति टैंक 5000 से ₹10000 शुद्ध आमदनी की प्राप्ति हो सकती है । डॉ ज्ञान चंद्र ने मत्स्य पालन के साथ-साथ मवेशी पालन, बत्तख पालन, सूअर पालन, मुर्गी पालन इत्यादि विधियों के बारे में बताते हुए कहा कि यह पर्यावरण के अनुकूल खेती है जो किसानों के लिए अत्यंत लाभप्रद है ।

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