रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : 30 मार्च 2021 : पटना : 2020 में कोरोना महामारी के संक्रमण को मद्देनज़र देखते हुए सभी राज्यों में निजी विद्यालयों के भौतिक सञ्चालन में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के द्वारा रोक लगायी गयी थे तत्पश्चात लगभग एक वर्ष के पश्चात् कुछ राज्यों में राज्य सरकार ने विद्यालयों को भौतिक रूप से संचालित करवाया है परन्तु कुछ राज्यों में निजी विद्यालयों के भौतिक सञ्चालन पर अभी अभी प्रतिबन्ध लगा हुआ है। इस दौरान निजी विद्यालयों की स्थिति बद से बत्तर होती चली गयी जिसके फलस्वरूप अधिकांशतः विद्यालय बंदी के कगार पर पहुंच गए।

प्राइवेट स्कूल्ज एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रिय अध्यक्ष सैयद शामायल अहमद ने कहा की कुछ ख़ास श्रेणी के अभिभावकों ने निजी विद्यालयों के इस मजबूरी का भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने पुरे साल अपने बच्चों को ऑनलाइन पठान पाठन करवाया परन्तु जब विद्यालय के मासिक शुल्क देने की बात आयी तो साफ़ मुकर गए और भद्दी भद्दी बातें विद्यालय के शिक्षक एवं शिकाओ को सुनाया और इतना ही नहीं उन्होंने सरकार के द्वारा चलाये गए सरकारी विद्यालयों में नामांकन के सुविधा के अंतर्गत अपने बच्चों का नामांकन बिना किसी स्थानांतरण प्रमाण पत्र के करवा लिया। एक तरफ तो लगभग सभी राज्य सरकार इस बात को स्वीकार कर रही है की शिक्षा में गुणवत्ता निजी विद्यालयों के द्वारा दी जा रही है परन्तु दूसरी तरफ बिना स्थानांतरण प्रमाण पत्र के बच्चों का नामांकन करना कहा तक सही ठहराया जा सकता है ? सभी राज्य सरकारों को इस बात पर संज्ञान लेने की आवश्यकता है की यदि निजी विद्यालयों की कमर तोड़ दिया जायेगा तो इस देश में शिक्षा व्यवस्था कैसे चलेगी ? क्या राज्य सरकार शिक्षा में गुणवत्ता के लिए तैयार है ? क्या उनके पास बच्चो को मानसिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए कोई उपयुक्त इन्फ्रा स्ट्रक्चर है ? आज भी बिहार बोर्ड की दसवीं एवं बारहवीं की परीक्षा लेने के लिए राज्य सरकार इन्ही निजी विद्यालयों का जबरन मदत लेती है। यदि यह निजी विद्यालय नहीं हो तो बिहार बोर्ड की परीक्षा भी नहीं सकती है। और जो आपका मदतगार है आपने अपने दुहरी निति से उनका ही विनाश करने पर आमादा है। निजी विद्यालय संचालक अपने जीवन का सभी पूंजी लगा कर विद्यालय को खड़ा करता है और उसके बाद खून पसीना एक कर के बच्चों को जुटाता है अलग अलग जगहों से मिन्नत कर के अच्छे से अच्छा शिक्षक एवं शिक्षाओं का इंतज़ाम करता है ताकि बिहार जैसे राज्य जहाँ रोजगार का कोई साधन उपलब्ध नहीं है वहां शिक्षा का अलक जलाता है। जिन असहाय , अतिपिछड़े , समाज के अंतिम पायदान पर खड़े बच्चों के पास पढ़ने के लिए पैसे नहीं है उन्हें मुफ्त शिक्षा देता है और आज आपने अपने गलत नीतियों से शिक्षा के मंदिरों को बंद करने का कार्य कर दिया है जो समझ से परे है।

आज तक शिक्षा के अधिकार के तहत पढ़ाये गए विद्यार्थियों का पैसा राज्य सरकार पर बकाया है और शिक्षा विभाग रोज नए नए फरमान जारी करते हुए निजी विद्यालय संचालको को प्रताड़ित करते है और अब ना तो राज्य सरकार से बकाया पैसे मिलने की आस है और ना ही अभिभावकों से जिन्होंने बिना स्थानांतरण प्रमाण पत्र के अपने बच्चो का नामांकन सरकारी विद्यालयों में करवाया है। ऐसी परिस्थिति में निजी विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाएं एवं कर्मचारियों में रोष की स्थिति पैदा हो रही है जिसपर राज्य सरकार को संज्ञान लेते हुए उचित दिशानिर्देश देने की ज़रुरत है।

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