रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 24 नवंबर 2025: बिहार में नई नीतीश सरकार बनने के साथ ही सत्ता और प्रशासन के समीकरण में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। लगभग 19 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास गृह विभाग नहीं है। नई सरकार में गृह मंत्रालय की कमान भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को सौंप दी गई है। यह निर्णय सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

आमतौर पर देश के ज्यादातर राज्यों में गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास होता है, क्योंकि इस मंत्रालय का सीधा संबंध पुलिस प्रशासन और कानून-व्यवस्था से जुड़ा होता है। लेकिन बिहार में पहली बार यह जिम्मेदारी अलग कर दी गई है। सम्राट चौधरी के पास अब राज्य की पुलिस व्यवस्था की कमान होगी। उन्हें डीजी, आईजी और एसपी स्तर तक की फोर्स के संचालन और कार्यों की देखरेख करनी होगी।

लेकिन सवाल बड़ा – IAS और IPS अफसरों की नियुक्ति किसके हाथ?

यहीं पर तस्वीर बदल जाती है। गृह मंत्रालय भले सम्राट चौधरी को मिला हो, लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने अपने पास सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) रखा है, जो बिहार की नौकरशाही का “कंट्रोल सेंटर” माना जाता है।

सामान्य प्रशासन विभाग के पास अधिकार हैं:

• IAS–IPS अधिकारियों की नियुक्ति

• सीनियर अधिकारियों का ट्रांसफर

• विभागीय कैडर में पदस्थापन

• प्रशासनिक व्यवस्था की अंतिम स्वीकृति

इसका मतलब यह है कि डीजी, आईजी, एसपी जैसे प्रमुख अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर अंतिम आदेश अभी भी मुख्यमंत्री की मंजूरी से ही होंगे।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि:

• गृह विभाग की जमीन पर जिम्मेदारी सम्राट चौधरी निभाएँ

• लेकिन प्रशासनिक निर्णयों पर अंतिम नियंत्रण नीतीश के पास बना रहे

ऐसी व्यवस्था पहले कहाँ हुई है?

इस तरह की स्थिति महाराष्ट्र में भी देखने को मिली थी।

एकनाथ शिंदे सरकार में:

• गृह विभाग उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास था

• लेकिन चुनाव बाद शिंदे ने उसे अपने पास रख लिया

गुजरात में भी यही मॉडल दिखा, जहां मुख्यमंत्री के पास गृह विभाग नहीं है और यह कार्य उपमुख्यमंत्री हर्ष सांघवी संभाल रहे हैं। कर्नाटक में तो न सीएम और न ही डिप्टी सीएम – दोनों में से किसी के पास गृह विभाग नहीं है।

सम्राट चौधरी की चुनौती भी बड़ी

अब बिहार में नए राजनीतिक समीकरण लागू हो चुके हैं।

सम्राट चौधरी को:

• आपराधिक घटनाओं पर नियंत्रण

• जिलों में पुलिस की कार्यप्रणाली मजबूत करना

• महिलाओं की सुरक्षा

• संवेदनशील जिलों में कानून-व्यवस्था सुधार

जैसी बड़ी चुनौतियों से निपटना होगा।

लेकिन प्रशासनिक हस्तांतरण के लिए उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग – यानी मुख्यमंत्री – पर निर्भर रहना पड़ेगा।

बिहार में ऐसे टकराव पहले भी हो चुके हैं

पूर्व सरकार में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और तब के ACS (शिक्षा विभाग) केके पाठक के बीच खुला विवाद सामने आया था। मंत्री नाराज़ थे, लेकिन अपने स्तर पर वरिष्ठ अधिकारी का तबादला नहीं करा सके – क्योंकि अंतिम मंजूरी जीएडी यानी मुख्यमंत्री कार्यालय से ही आती थी।

निष्कर्ष

बिहार में विभागों के बंटवारे के बाद स्थिति यह बनी है:

• गृह मंत्रालय सम्राट चौधरी के पास – पुलिस संचालन की ज़िम्मेदारी

• सामान्य प्रशासन विभाग नीतीश के पास – अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर का अंतिम अधिकार

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि: “गृह विभाग की कमान बदली, लेकिन नौकरशाही पर अंतिम नियंत्रण अब भी नीतीश कुमार के पास है।” यह बदलाव जहां भाजपा की भूमिका बढ़ने का संकेत देता है, वहीं नीतीश कुमार ने प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखते हुए एक संतुलित राजनीतिक संदेश भी दिया है।

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