रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : डेहरी आन सोन : महिला कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा कालेज सभागार में शनिवार को ‘श्री अरविंद के आलोक में शिक्षा नीति एवं दर्शन ‘ विषय पर सेमिनार आयोजित हुआ । अरविंद दर्शन की ज्ञाता ओडिशा के कोरापुट से आई श्वेता पद्मा ने कहा कि श्री अरविंद ने भारतीय शिक्षा महत्वपूर्ण योगदान किया ।उन्होंने सर्वप्रथम घोषणा की कि मानव सांसारिक जीवन में भी देवी शक्ति प्राप्त कर सकता है ।वे मानते थे कि मानव भौतिक जीवन व्यतीत करते हुए तथा अन्य मानव की सेवा करते हुए अपने मानस को अति मानस ( सुपर माइंड )और स्वयं को अति मानव ( सुपरमैन ) में परिवर्तित कर सकता है ।शिक्षा द्वारा यह संभव है ।
श्री अरविंद दर्शन की मर्मज्ञ लिपिका ( हैदराबाद )ने श्री अरविंद की मस्तिष्क की धारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि मस्तिष्क के विचार स्तर चित्र, मनासा बुद्धि तथा अंतर्ज्ञान होते हैं। जिनका क्रमशः विकास होता है ।श्री अरविंद ने आग्रह किया है कि शिक्षक को अपने शिष्य की प्रतिभा का नैतिक का अर्थ द्वारा दमन नहीं करना चाहिए। वर्तमान शिक्षा पद्धति से श्री अरविंद का असंतोष इसी कारण था कि विद्यार्थियों की प्रतिभा के विकास का अवसर नहीं दिया जाता। शिक्षक को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विद्यार्थियों की प्रतिभा के विकास हेतु उनके प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। सेमिनार का उद्घाटन प्राचार्य डॉ सतीश नारायण लाल ,दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष शंभू शरण शर्मा , अजय कुमार सिन्हा व अतिथियों ने किया । विषय परिवर्तन दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ शर्मा ने किया।उन्होंने कहा कि श्री अरविंद ने भारतीय शिक्षा चिंतन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। वे मानते थे कि मानव जीवन व्यतीत करते हुए तथा अन्य मानवों की सेवा करते हुए अपने मानस को अति मानस तथा स्वयं को अति मानव में परिवर्तित कर सकता है। शिक्षा द्वारा यह संभव है । उन्होंने श्री अरविंद के जीवन और उनके द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन अध्यात्म और शिक्षा में किये गए योगदान पर प्रकाश डाला। स्थानीय श्री अरविंद सोसाइटी केंद्र के सचिव कृष्णा प्रसाद ने सोसाइटी की गतिविधियों से पर प्रकाश डाला । एनएसएस के कार्यक्रम पदाधिकारी आशुतोष कुमार ने सेमिनार का संचालन किया। प्राचार्य डॉ सतीश नारायण लाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि श्री अरविंद का विश्वास था कि मानव देवी शक्ति से समन्वित है। शिक्षा का लक्ष्य इस चेतना शक्ति का विकास करना है। वह मस्तिष्क को छठी ज्ञानेंद्रिय मानते थे शिक्षा का प्रयोजन इन छह का सदुपयोग करना सिखाना होना चाहिए ।सेमिनार में कॉलेज के शिक्षक शिक्षकेतर और छात्राएं मौजूद थे ।


