आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 18 नवम्बर 2022 : श्री त्रिदंडी देव समाधि स्थल चरित्रवन बक्सर में श्री जीयर स्वामी जी महाराज के सानिध्य में श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज की 23 वीं पुण्यतिथि बड़ी धूमधाम से मनाई गई। काशी मथुरा बनारस आदि से आए आचार्य द्वारा विधिवत पूजा पाठ किया गया तथा मंत्रोचार ध्वनि तथा जयकारे से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। पुण्यतिथि समारोह में हिस्सा लेने के लिए काफी दूर-दूर से लोग चरित्र वन में जुटे हुए थे। सुबह से ही समाधि स्थल पर काफी संख्या में लोग जूट चुके थे। श्री अयोध्यानाथ स्वामी जी महाराज के देखरेख में आने जाने वाले अतिथियों की प्रसाद की व्यवस्था की जा रही थी। श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि अनंत विभूषित श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज जैसा संत मिल पाना बहुत ही दुर्लभ है।श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के पूरे भारत में करोड़ों की संख्या में भक्त हैं जो हमेशा समाधि स्थल पर दर्शन करने हेतु आते जाते रहते हैं।यह हम सभी के लिए सभी के लिए गर्व की बात है।
श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि भ्रूण हत्या से पांच तरह के पाप लगते हैं : जीयर स्वामी।
गर्भ के बालक की हत्या नहीं करनी चाहिए। भ्रूण हत्या से वंश वध सहित पाँच तरह के दोष लगते हैं। इस तरह के कुकृत्य करने वाले वर्तमान एवं भावी दोनों जन्मों में पाप के भागी बनते हैं। मानव को सामान्य दिनचर्या में किसी का उपहास नहीं करना चाहिए, क्योंकि दूसरे पर हंसने वाला स्वयं हंसी का पात्र बन जाता है। इसमें संशय नहीं है। शास्त्र एवं समाज में इसके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं।
जीयर स्वामी जी ने कहा कि मानव द्वारा किए गए अपराध और अपचार का दंड उसे निश्चित रूप में भोगना पड़ता है। यह प्रकृति का शाश्वत एवं निरपवाद नियम है। यह आवश्यक नहीं कि कुकर्मों का फल तत्काल प्राप्त हो जाये। अपराध | का प्रतिफल प्रारब्ध के कारण कुछ दिनों तक टल सकता है। लोग समझते हैं कि अमूक दुराचारी को दंड नहीं मिल रहा है। यह समझना भारी भूल है। दुनिया में यह संभव ही नहीं कि किसी के सुकर्म और दुष्कर्म का उसके अनुरूप फल प्राप्ति नहीं हो। अपराधी में कुछ दिनों के लिये चमक दिखता है, लेकिन दंड अवश्य भोगना पड़ता है। भारतीय संस्कृति में कई ऐसे मत हैं, जो ईश्वर की सत्ता में स्पष्टरूप से विश्वास नहीं करते लेकिन चार्वाक को छोड़कर कोई भी ऐसा मत नहीं है, जो कर्म सिद्धांत में विश्वास नहीं करता। जैन, बौद्ध, सीख एवं सभी कर्म सिद्धांत में विश्वास करते है। कर्म-सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक कर्म (अच्छा या बुरा) फल उसके अनुसार होता है अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है और बूरे कर्म का फल बुरा होता है। कोई भी कर्म ऐसा नहीं होता, जिसका फल नहीं मिलता है। जो कर्म करेगा, वहीं उसका फल भोगेगा। कर्म-फल भोगने में नियम का उल्लंघन नहीं होता है। सभी अलौकिक व्यवस्थाएं नियमबद्ध होती हैं। वहॉ नियम का उल्लंघन नहीं होता। जब एक कर्म के फल–भोग की अवधि समाप्त होती है, तब दूसरे कर्म के फल भोग के प्रक्रिया शुरू होती है।