आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 11 जनवरी 2023 : पटना : बिहार सरकार जनगणना नहीं बल्कि जातिय सर्वेक्षण करा रही है. जनगणना कराने का अधिकार भारत सरकार को है. राज्य सरकारें जनगणना नहीं करा सकती हैं. लेकिन सर्वेक्षण करा सकती हैं. बिहार समेत वैसे राज्य जो पंचायतों या नगर निकायों के चुनावों में अति पिछड़ों के लिए सीट आरक्षित करना चाहती हैं उनको उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार जातीय सर्वेक्षण कराना  ही होगा. उनको ये बताना होगा कि अति पिछड़ों को आरक्षण देने का आधार क्या है. उच्चतम न्यायालय ने इसके लिए तीन कसौटियां, यानी ट्रिपल निर्धारित किया है . इसके लिए भी जातीय सर्वेक्षण कराना आवश्यक है. मालूम होगा कि 2011 तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के दबाव में सामाजिक और आर्थिक आधार को भी जन गणना शामिल किया था. लेकिन बाद में बताया गया कि वो आंकड़े त्रुटिपूर्ण थे. इसलिए उनको प्रकाशित नहीं किया जा रहा है. हालाँकि कमजोर तबकों के लिए योजनाओं के निर्धारण में उन आंकड़ों की मदद ली जा रही है. 

उसी समय भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता गोपीनाथ मुंडे जी ने भी जनगणना में जाति को भी शामिल करने की माँग उठाई थी. राजनाथ जी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने भी पिछड़ों की हालत का जायज़ा लेने के लिए जातीय सर्वेक्षण कराया था. उसी के आधार पर आरक्षण देने का प्रस्ताव भी किया था.

आख़िर जातिय सर्वेक्षण का विरोध कौन और क्यों कर रहा है. स्वाभाविक है कि इसका विरोध उन लोगों की ओर से हो रहा है जो अपनी संख्या के अनुपात से कहीं ज़्यादा जगहों पर क़ब्ज़ा जमाए हुए बैठे हैं . उनको लगता है कि जातीय सर्वेक्षण से यह भेद खुल जाएगा और समाज में ग़ुस्सा पैदा होगा. इस लिए वे इसका विरोध कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस बात को समझेगा और बिहार सरकार द्वरा सर्वेक्षण कराने का जो अभियान चलाया जा रहा है उसको पुरा करने में किसी प्रकार का अवरोध पैदा नहीं करेगा.

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