कृष्ण और सुदामा जी की मित्रता मैत्री का आदर्श – सुश्री राधाकिशोरी
आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 23 नवम्बर 2022 : पटना : कबीरपंथी मठ फतुहां में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सातवाँ दिन व्यासपीठ पर कथाव्यास सुश्री राधाकिशोरी जी का स्वागत अभिनंदन एवं व्यासपूजन मठ के संरक्षक महन्थ ब्रजेश मुनि, न्यास समिति के सदस्य विवेक मुनि, श्रीमती शारदा देवी, भाजपा नेत्री शोभा देवी, शोभा चौधरी ने किया।
भागवत कथा के अंतिम दिन भक्ति भाव पर सत्संग करते हुए योग विशेषज्ञ हृदय नारायण झा ने कहा भागवत में भक्ति ज्ञान वैराग्य की कथा है। भागवत माहात्म्य में भी इसकी चर्चा हुई है। सद्गुरु कबीर साहेब ने जो ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का उपदेश दिया है वह भाग भक्ति भाव इक रूप है, दोऊ एक सुभाव।। आशय है कि निश्छल प्रेम के बिना भक्ति नहीं होती और निष्काम भक्ति के बिना प्रेम नहीं होता, अर्थात प्रेम से भक्ति और भक्ति से प्रेम होता है। ये भिन्न-भिन्न नहीं है। ये दोनों तो एक ही रूप हैं और इनका गुण, लक्षण, स्वभाव भी एक जैसा ही होता है।
भाव बिना नहिं भक्ति जग, भक्ति बिना नहीं भाव।
विषय त्याग बैराग है, समता कहिए ज्ञान।
सुखदायी सब जीव सों, यही भक्ति परमान।
पांचों विषयों का त्याग ही वैराग्य है और भेदभाव से रहित सभी से समता का व्यवहार ज्ञान कहलाता है। संसार के सभी जीवों को सुख देने वाला आचरण तथा स्नेह, भक्ति का सत्य प्रमाण है। गुरु भक्त में इन सद्गुणों का समावेश होता है।
सातवें दिन की कथा में सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए राधाकिशोरी जी ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए ? यह भगवान श्री कृष्ण और सुदामा जी के परस्पर व्यवहार से समझा जा सकता है । उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र सुदामा से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया हुआ। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं।
इस अवसर पर सम्पूर्ण नगरवासियों की सेवा में भण्डारा का आयोजन किया गया जिसमें हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भण्डारा प्रसाद ग्रहण किया।