आर० डी० न्यूज़ नेटवर्क : 07 मार्च 2022 : बक्सर : खरवनीया में प्रवचन करते हुये श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि बिना गुरु का परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं है।गुरु के द्वारा ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। अतः जीवन में गुरु होना अति आवश्यक है। और सधे हुए गुरु मिल जाए तो फिर क्या कहना है। साक्षात नारायण का दर्शन है। उन्होंने कहा कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा महत्व सत्संग का है। जिस पर भगवत कृपा  होती है उसी को सत्संग करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। किसी के भी जीवन में अगर सच्चे संत का दर्शन हो जाए तो पूरा जीवन सफल माना जाता है। जो सात जन्मों में मिलना संभव नहीं है वह एक सच्चे संत के दर्शन मात्र से संभव हो सकता है इस कलिकाल में संत दर्शन का बहुत ही बड़ा महत्व है।

मनुष्य मात्र भगवत प्राप्ति का अधिकारी है। वह प्रत्येक परिस्थिति में भगवान को प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की प्राप्ति में देरी नहीं लगती। देरी लगती है। सुख की इच्छा का त्याग करने में। केवल भगवान की इच्छा हो तो भगवान प्रकट हो जाएंगे। अथवा कोई भी इच्छा ना हो तो भगवान प्रकट हो जाएंगे। अधूरापन नहीं होना चाहिए। सच को जानो चाहे मत जानो पर जिसको जानते हो उसका त्याग कर दो। ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी। परमात्मा प्राप्ति में मनुष्य जितना स्वतंत्र है उतना और किसी कार्य में स्वतंत्र नहीं है। परमात्मा प्राप्ति के लिए उपायों की इतनी जरूरत नहीं है जितनी भीतर की लगन की जरूरत है। धन की प्राप्ति में तो क्रिया की मुख्यता है परमात्मा की प्राप्ति मे लालसा की आवश्यकता है।

संसार के बारे  में जानने से बैराग्य हो जाएगा और परमात्मा को जानने से प्रेम हो जाएगा।

श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि संसार में जितनी भी दिखने वाली वस्तुएं हैं वे सब नास्वर है।ईश्वर प्राप्ति में यह सब बाधा है। क्योंकि जब तक संसार से बैराग्य नहीं होगा जब तक ईश्वर की प्राप्त नहीं हो सकती।जब मनुष्य संसार के बारे में हकीकत जान लेगा तो उसे बैराग्य ले लेगा लेकिन जब ईश्वर के बारे में जान लेगा तो उनसे प्रेम हो जाएगा। भगवान की तरफ खिंचाव होने का नाम भक्ति है। भक्ति कभी पूर्ण नहीं होती। प्रत्यूष उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती है। भेद मत में होता है प्रेम नहीं। प्रेम संपूर्ण मत वादों को खा जाता है।भागवत प्रेम में जो आनन्द है वह ज्ञान में नहीं है। ज्ञान में तो अखंड आनन्द है पर प्रेम में अनंत आनन्द है। तपस्या से प्रेम नहीं मिलता प्रत्यूष शक्ति मिलती है। प्रेम भगवान में अपनापन होने से मिलता है। जिसका मिलना अवश्यंभावी है उस परमात्मा से प्रेम करो और जिसका बिछुड़ना अवश्यंभावी है उस संसार की सेवा करो। प्रेम वही होता है जहां अपने सुख और स्वार्थ की गंदगी नहीं होती। जब तक साधक अपने मन की बात पूरी करना चाहेगा तब तक उसका न शगुण में प्रेम होगा न निर्गुण में। जो चीज़ अपनी होती है वह सदा अपने को प्यारी लगती है। अतः एकमात्र भगवान को अपना मान लेने पर भगवान में प्रेम प्रकट हो जाता है। जब तक संसार से प्रेम है तब तक भगवान में असली प्रेम नहीं है।जब तक नाशवान की तरफ खिंचाव रहेगा तब तक साधन करते हुए भी भगवान की तरफ खिंचाव और उसका अनुभव नहीं होगा। प्रेम मुक्ति से भी आगे की चीज है मुक्ति तक तो जीव रस का अनुभव करने वाला होता है। पर प्रेम में वह रस का दाता बन जाता है। ज्ञान मार्ग में दुख बंधन मिट जाता है और स्वरूप में  स्थित हो जाताहै। पर मिलता कुछ नहीं। परंतु भक्ति मार्ग में प्रतिक्षण  प्रेम मिलता है।

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