रोहतास दर्शन न्यूज़ नेटवर्क : सासाराम। भगवान श्री सीताराम के विवाह को हम अन्तर्हृदय में देखें, ध्यान करें, लीला में स्वयं सम्मिलित हों, इस विवाह का उद्देश्य है।’ इस तरह से देखा जाए तो श्रीराम विवाह के गंभीर अर्थ की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। वे हमें जीवन के इस महत्वपूर्ण प्रसंग के वास्तविक अर्थ से रूबरू करवाते हैं। श्रीराम के विवाह में घटनाएं केवल मनोरंजन प्रधान नहीं, सांसारिक व्यवहार की अपेक्षा मनस्तत्त्व की प्रधानता है पर यहां मन, बुद्धि, चित्त के द्वारा हम परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं। उक्त बातें श्री शंकर ज्ञान महायज्ञ के दौरान प्रवचन करते संत ने कही। उन्होंने विवाह के संदर्भ में कहा कि गोस्वामीजी ने वर्णन किया है कि विवाह को ज्ञानियों ने किस दृष्टि से देखा, योगियों ने क्या अर्थ लिया? भक्तों ने इसमें कैसा परमानंद पाया? उन्होंने दो कथित विरोधी काम और राम में विलक्षण समन्वय तब बैठाया, जब विवाह मंडप में दोनों को एक साथ प्रस्तुत किया। विवाह का प्रमुख देवता ‘काम’ है। पर इस प्रसंग में ‘काम’ राम का विरोधी न रहकर सहयोगी बन गया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम-सीता के शुभ विवाह के कारण ही विवाह पंचमी का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। भारतीय संस्कृति में श्रीराम-सीता आदर्श दंपति हैं। श्रीराम ने जहां मर्यादा का पालन करके आदर्श पति और पुरुषोत्तम पद प्राप्त किया वहीं माता सीता ने सारे संसार के समक्ष अपने पतिव्रता धर्म के पालन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। इस पावन दिन सभी दंपतियों को श्रीराम-सीता से प्रेरणा लेकर अपने दांपत्य को मधुरतम बनाने का संकल्प करना चाहिए। श्रीसीतारामविवाह रसिकों का प्राण प्रसंग है।विवाह का तात्पर्य है संबंध की स्थापना।जनकपुरवासिनी स्त्रियों को यह भलीभाँति ज्ञात है कि ईश्वर से यदि संबंध जुड़ेगा तो श्रीसीताजी के नाते से ही जुड़ेगा, सीधे हमारे नाते से नहीं। अगर भक्ति-स्वरूपा श्रीजानकीजी से हमारा नाता नहीं होगा तो समस्त विशेषताओं के होते हुए भी हम लोग प्रभु को आकृष्ट करने में समर्थ नहीं होंगे। इस विवाह का मुख्य तात्पर्य है जीव और ईश्वर में संबंध स्थापित करना, और संबंध स्थापित करने के लिए जिस मूल केन्द्र की अपेक्षा है वही जनकनन्दिनी श्रीसीता हैं।


