बेन्सिल में प्रवचन करते हुए श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि ब्रम्हा का आत्मा हीं जो है उससे आकाश तत्व प्रकट हुआ। आकाश तत्व के कारण ही हम बातचीत करते हैं। जहां आकाश तत्व का अभाव है वहां एक फीट की दुरी से भी आवाज सुनाई नही देता है। आकाश तत्व से नाद प्रकट हुआ। नाद से ओउम् उत्पन्न हुआ। यहीं ओउम् शब्द से स्वर तथा व्यंजन का उत्पति हुआ।
समर्पण का भावना ही नमस्कार है।
मेरा कुछ नही है इस प्रकार समर्पण की भावना ही नमस्कार कहा जाता है। अर्थात मै कुछ नही हुं।
अपने जानने के बावजूद भी दुसरे से पुष्ट होना बड़प्पन है।
नारद जी जानने के बावजूद भी ब्रम्हा जी से सृष्टि के आरंभ के बारे में पूछते हैं। बड़े लोग अपने जानने के बावजूद भी दुसरे से जानकारी प्राप्त कर पुष्ट होते हैं। मान लीजिए कोई लंबी यात्रा कर रहे हों रास्ते की जानकारी होने के बावजूद दूसरों से पुछ कर पुष्टि करते हैं ये बड़प्पन कहलाता है। परंतु जो समान्य व्यक्ति है वह जानता अधूरा है परंतु अपने को कन्फर्म और पुष्टि मानता है। यही कारण है कि वह भटक जाता है। तब जाकर नारद जी ने कहा कि पिताजी परमात्मा ही कुसंग से बचा सकते हैं। हम तीर्थ करें, पूजा करें, दान करें लेकिन परमात्मा ही हमें कुसंग से बचा सकते हैं। वह परमात्मा यदि कुसंग से नही बचाते हैं तो हम कितना ही पूजा-पाठ साधना करें कुसंग से नही बच पाएंगे।
