By Rohtas Darshan Digital Desk | Updated: October 23, 2025 | Patna : बिहार की राजनीति में अगर किसी विधानसभा सीट को “राजधानी का मिज़ाज तय करने वाली सीट” कहा जाए, तो वह है दीघा विधानसभा सीट। यह सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं, बल्कि शहरी विकास, जातीय समीकरण और महिला वोटरों की निर्णायक भूमिका का अनोखा संगम है।

यह सीट पटना जिले की सबसे चर्चित सीटों में से एक है, जहां हर चुनाव में राजनीतिक तापमान सबसे ज्यादा रहता है। कहा जाता है — “दीघा की महिलाएं जिस ओर जाती हैं, सत्ता की चाबी उसी दल के हाथ लगती है।”

दीघा का राजनीतिक सफर: जदयू से भाजपा तक

दीघा सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई।

•             2010 में यहां पहला चुनाव हुआ, जिसमें जदयू की पूनम देवी ने शानदार जीत दर्ज कर इस सीट का खाता खोला।

•             2015 में जब जदयू-भाजपा गठबंधन टूटा, तो भाजपा के संजीव चौरसिया ने पहली बार यहां परचम लहराया।

•             2020 के विधानसभा चुनावों में जदयू और भाजपा फिर से साथ आए, और संजीव चौरसिया ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की। उन्होंने सीपीआई (एमएल) की उम्मीदवार शशि यादव को 46,234 वोटों से मात दी।

मतदाता संरचना और जनसांख्यिकी

2020 में दीघा विधानसभा में 4,60,868 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 4,73,108 हो गए।

यह पूरी तरह से शहरी क्षेत्र है — यहां केवल 1.76% ग्रामीण मतदाता हैं।

मुख्य इलाके:

•             पटना नगर निगम के 14 वार्ड और 6 पंचायतें

•             पाटलिपुत्र हाउसिंग कॉलोनी, पटना के सबसे पॉश क्षेत्रों में से एक

•             गंगा नदी के किनारे बसा दीघा, भौगोलिक दृष्टि से भी रणनीतिक महत्व रखता है।

जातीय और सामाजिक समीकरण

हालांकि जातिगत जनगणना का कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, पर राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार:

•             कायस्थ समुदाय की बड़ी संख्या — भाजपा का परंपरागत वोट बैंक।

•             अनुसूचित जाति मतदाता: लगभग 10.68%

•             मुस्लिम मतदाता: लगभग 9.4%

यानी भाजपा को दीघा में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए शहरी कायस्थों और महिला मतदाताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, जबकि विपक्ष को नए वोट बैंक तलाशने की चुनौती है।

जेपी सेतु: विकास और राजनीति का प्रतीक

दीघा की पहचान अब जयप्रकाश नारायण सेतु (जेपी सेतु) के बिना अधूरी है।

यह पुल 4,556 मीटर लंबा रेल-सह-सड़क पुल है, जो दीघा को सारण जिले के सोनपुर से जोड़ता है।

यह भारत का दूसरा सबसे लंबा रेल-सह-सड़क पुल है (असम के बोगीबील पुल के बाद)।

इस पुल के निर्माण को लेकर रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव के बीच लंबी राजनीतिक रस्साकशी चली।

अंततः नीतीश कुमार के हस्तक्षेप से यह तय हुआ कि पुल का अंत सोनपुर में होगा।

जेपी सेतु के बनने से पाटलिपुत्र जंक्शन रेलवे स्टेशन अस्तित्व में आया और इससे उत्तर बिहार व पूर्वी यूपी (गोरखपुर) तक सीधी रेल सेवा शुरू हुई — जिसने दीघा की कनेक्टिविटी और आर्थिक प्रोफाइल दोनों बदल दिए।

क्यों है भाजपा का गढ़?

1.            शहरी और कायस्थ बहुल जनसंख्या

2.            महिला मतदाताओं की निर्णायक भूमिका

3.            विकास, कनेक्टिविटी और बुनियादी सुविधाओं में तेजी

4.            संजीव चौरसिया की व्यक्तिगत लोकप्रियता और संगठन पर पकड़

इन कारणों से दीघा सीट पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत भाजपा का एक अभेद्य किला बन चुकी है।

बिहार चुनाव 2025 में क्या रहेगा खास?

2025 के विधानसभा चुनाव में दीघा का मुकाबला फिर से रोमांचक रहने वाला है।

भाजपा अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश करेगी, जबकि महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-VIP) यहां शहरी वोटरों को लुभाने की रणनीति पर काम कर रहा है।

यह सीट न सिर्फ पटना, बल्कि पूरे बिहार के चुनावी ट्रेंड का संकेतक बन सकती है।

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