रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | पटना | Updated: 14 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन और कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनावी हथियार रहा “वोट चोरी” का मुद्दा जनता को रास नहीं आया। पूरी चुनावी रैलियों और रोड शो में राहुल गांधी ने इसी मुद्दे को केंद्र में रखा, लेकिन नतीजों में इसका कोई असर नजर नहीं आया। कांग्रेस ने राज्यभर में लाखों लोगों की भीड़ जुटाई, लेकिन मतदान परिणामों में पार्टी महज दो सीटों – किशनगंज और मनिहारी – पर सिमटती दिखी।

राहुल गांधी ने इस चुनाव में लगभग 116 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया, लेकिन कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 2% से भी नीचे चला गया। महागठबंधन ने EVM, मतगणना प्रक्रिया और आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए “वोट चोरी” का नारा उछाला था, परंतु बिहार के मतदाताओं ने इन दावों को खारिज करते हुए विकास और स्थिरता को तवज्जो दी।

 कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक गिरावट

1952 में बिहार में 239 सीटें जीतने वाली कांग्रेस का ग्राफ आज जितना नीचे है, उतना कभी नहीं रहा।

2010 में पार्टी को मिली सबसे खराब सीटों का रिकॉर्ड भी इस बार टूटता नजर आ रहा है। यदि अंतिम नतीजे रुझानों के समान रहे, तो यह चुनाव कांग्रेस के इतिहास की सबसे बड़ी हार के रूप में दर्ज होगा।

महागठबंधन के मुद्दों की नहीं पड़ी छाप

राजद–कांग्रेस ने लगातार “वोट चोरी”, “EVM गड़बड़ी”, “लोकतंत्र खतरे में है” जैसे संदेशों से कड़ी कोशिश की, लेकिन मतदाताओं ने इन्हें गंभीरता से नहीं लिया। इसके विपरीत, जनता ने भाजपा के विकासवादी रोडमैप और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की योजनाओं पर भरोसा जताया।

राहुल गांधी पर भाजपा का तंज

लगातार मिल रही चुनावी हारों पर भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने चुटकी लेते हुए कहा—

“अगर चुनावी निरंतरता का कोई अवॉर्ड होता तो राहुल गांधी सभी को पछाड़ देते। असफलताएं भी सोच रही होंगी कि वह उन्हें इतनी नियमितता से कैसे हासिल कर लेते हैं।”

कुल मिलाकर संदेश साफ—

बिहार की जनता ने इस बार जज़्बाती नारों की बजाय ठोस नीतियों और स्थिर सरकार को चुना है। महागठबंधन के “वोट चोरी” अभियान की चर्चा तो खूब रही, लेकिन सीटों में बदलने की ताकत इसमें बिल्कुल नहीं दिखाई दी।

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