
रिपोर्ट: Rohtas Darshan चुनाव डेस्क | बिहार | Updated: 18 नवंबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की ऐतिहासिक जीत ने न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी व्यापक ध्यान खींचा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में मिली इस जीत को कई वैश्विक अख़बार विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आयामों से देख रहे हैं। कैश ट्रांसफ़र, महिलाओं का समर्थन, जातीय समीकरण, बिहार का विकास मॉडल और नीतीश–मोदी गठबंधन—ये सभी मुद्दे विदेशों में सुर्खियों में हैं।
फाइनेंशियल टाइम्स: “भारत के जो बाइडन बन चुके हैं नीतीश कुमार”
ब्रिटिश अख़बार फाइनेंशियल टाइम्स में ग्लोबल इन्वेस्टर और स्तंभकार रुचिर शर्मा ने नीतीश कुमार की तुलना अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से करते हुए लिखा कि उनकी सेहत को लेकर चिंताएं थीं, फिर भी उन्होंने अपने गठबंधन को जीत दिलाई।
रुचिर शर्मा ने लिखा—
• नीतीश के लंबे शासन में क़ानून-व्यवस्था सुधरी
• सड़क और पुल बने
• गांवों में बिजली पहुंची
• लेकिन नौकरियों का संकट अब भी सबसे बड़ी चुनौती
उन्होंने माना कि बिहार आज भी बेहद गरीब है, और अगर यह एक देश होता तो यह दुनिया का 12वां सबसे गरीब देश होता। फ़िर भी नीतीश के प्रति पारंपरिक वोटरों की निष्ठा बरकरार है।
न्यूयॉर्क टाइम्स: 40 लाख नाम हटाने वाली ‘SIR प्रक्रिया’ के बीच मिली जीत
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बिहार चुनाव के सबसे विवादित पहलू—मतदाता सूची से 40 लाख से अधिक नाम हटाए जाने—का ज़िक्र किया।
अख़बार लिखता है कि:
• विपक्ष ने इसे “अव्यवस्थित और पक्षपातपूर्ण” बताया
• चुनाव आयोग ने मृत, डुप्लीकेट और फर्जी नाम हटाने को कारण बताया
• प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश की जीत का श्रेय “महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक गठबंधन” को दिया
NYT ने महिलाओं को ₹10,000 की राशि दिए जाने वाली योजना को चुनाव में निर्णायक कारक बताया है।
ब्लूमबर्ग: “कैश ट्रांसफ़र ने महिलाओं को एकजुट कर दिया”
ब्लूमबर्ग ने लिखा कि अंतिम समय में 1.2 करोड़ महिलाओं को बैंक खातों में दी गई ₹10,000 की सहायता राशि ने चुनाव का रुख बदल दिया।
स्तंभकार एंडी मुखर्जी के अनुसार—
• बिहार में बेरोजगारी और पलायन सबसे बड़े मुद्दे थे
• लेकिन कैश सपोर्ट ने महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा का भरोसा दिया
• इससे जातीय वोटिंग पैटर्न भी प्रभावित हुए
हालांकि ब्लूमबर्ग ने यह भी कहा कि नीतीश की राजनीति “अवसरवादी” रही है, और उनके कई बार पाला बदलने का इतिहास अब भी चर्चा में है।
वॉशिंगटन पोस्ट: मोदी के लिए बिहार क्यों है बेहद अहम?
वॉशिंगटन पोस्ट ने चुनाव परिणामों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीतिक रणनीति से जोड़कर विश्लेषण किया।
अख़बार के अनुसार—
• बिहार में जीत मोदी के लिए आने वाले चुनावों से पहले बड़ी राजनीतिक पूंजी है
• जेडीयू के 12 सांसद केंद्र में NDA की रीढ़ हैं
• बिहार में हार से मोदी सरकार की स्थिरता पर असर पड़ सकता था
अमेरिकी विश्लेषकों के मुताबिक, इस जीत ने मोदी और एनडीए दोनों को “राजनीतिक और नीतिगत निरंतरता” का मजबूत आधार दिया है।
द डिप्लोमैट: विपक्ष की सबसे बड़ी हार, सहानुभूति की लहर चली नीतीश के पक्ष में
द डिप्लोमैट ने इस चुनाव को विपक्ष के लिए करारी हार करार दिया।
अख़बार लिखता है—
• आरजेडी 25 सीटों पर सिमट गई
• कांग्रेस 6 सीटों पर आ गई
• लेफ्ट पार्टियां भी लगभग ख़त्म
• नए दल मुद्दे उठाने के बावजूद जनता का भरोसा न जीत सके
रिपोर्ट के अनुसार, नीतीश कुमार की “आखिरी चुनाव” वाली भावनात्मक अपील और उनकी उम्र को लेकर बने सहानुभूति भाव ने वोटरों पर बड़ा असर डाला।


